राजनीति में ‘यादव परिवार’ का झगड़ा 2016 में सड़क पर आ चुका था। उस समय शिवपाल यादव और अमर सिंह, मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल का समाजवादी पार्टी में विलय कराने पर आमादा थे।
उत्तर प्रदेश की राजनीति में ‘यादव परिवार’ का झगड़ा 2016 में सड़क पर आ चुका था। उस समय शिवपाल यादव और अमर सिंह, मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल का समाजवादी पार्टी में विलय कराने पर आमादा थे। अखिलेश यादव अपने चाचा शिवपाल के विरोध में थे। विवाद बढ़ जाने पर एक बड़ी बैठक बुलाई गई। तब मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश को समझाते हुए कहा था, ‘‘जानते हो मुख्तार अंसारी किस परिवार का है। उस परिवार के लोग देश के बड़े-बड़े पदों पर रहे हैं।’’
जिस आदमी के खिलाफ 61 मुकदमे दर्ज हों, उस माफिया का सपा सरकार में इस तरह से महिमामंडन किया जाता था। ऐसे में उस पर कार्रवाई होती भी तो कैसे! बहरहाल राजनीति बदली और 2017 में योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने तो मुख्तार सरीखे माफिया के दिन लदने लगे। प्रदेश सरकार के अभियोजन पक्ष ने मुकदमों में प्रभावी तरीके से पैरवी की, जिसका परिणाम अब दिखने लगा है।
अंसारी बंधुओं के दिन लद गए
लोगों को डरा-धमका कर अपराध का साम्राज्य स्थापित करने वाले अंसारी बंधुओं की माफियागीरी अब मटियामेट हो चुकी है। मुख्तार अंसारी 18 वर्ष से जेल में है। योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद माफिया अब गवाहों को डरा-धमका नहीं पा रहा है। बीते 29 अप्रैल को गैंगस्टर मुकदमे में मुख्तार को 10 साल और अफजाल अंसारी को चार साल की सजा सुनाई गई। इसी के बाद अफजाल अंसारी की लोकसभा की सदस्यता समाप्त कर दी गई। इससे पहले मुख्तार को तीन और मुकदमों में सजा हो चुकी है।
कुल मिलाकर 60 वर्षीय मुख्तार को 4 अलग-अलग मुकदमों में 32 साल की सजा हो चुकी है। उसका बेटा अब्बास अंसारी और उसकी पत्नी निखत अंसारी भी जेल में है। मुख्तार की पत्नी अफशा अंसारी और छोटा बेटा उमर अंसारी फरार हैं। इसके अलावा, गैंगस्टर एक्ट के तहत मुख्तार की 2,91,19,22,347 रुपये की संपत्ति जब्त की जा चुकी है, अन्य कानून के तहत 2,84,77,72,810 रुपये की संपत्ति ध्वस्त की गई। साथ ही, ठेका और अवैध कारोबार बंद होने के कारण मुख्तार अंसारी गिरोह को 2,12,46,,83,432 रुपये का सालाना नुकसान हुआ है।
मुख्तार पर दस बड़े मुकदमे
- 1997 में अपहरण के बाद कोयला व्यवसायी नंदकिशोर रूंगटा की हत्या कर दी गई थी। इसमें मुख्तार मुख्य आरोपी है।
- 2005 में मऊ जिले में दंगा हुआ था। अपने खिलाफ मुकदमा दर्ज होने के बाद मुख्तार अंसारी काफी दिनों तक फरार रहा।
- 2005 में भाजपा विधायक कृष्णानंद राय हत्याकांड में गवाहों की हत्या और शेष गवाहों के मुकर जाने से मुख्तार बरी हो गया।
- अपर पुलिस अधीक्षक उदय शंकर जायसवाल पर हुए जानलेवा हमले में मुख्तार अंसारी को आरोपी बनाया गया।
- त्रिभुवन सिंह के भाई राजेंद्र सिंह की हत्या में भी मुख्तार के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया था।
- 1993 में मुख्तार पर टाडा (आतंकवाद निरोधक कानून) लगाया गया, लेकिन केंद्र सरकार ने इस कानून को ही खत्म कर दिया।
- वाराणसी जनपद के मुगलसराय में दो पुलिसवालों की हत्या के मामले में मुख्तार अंसारी के खिलाफ अभियोग पंजीकृत किया गया।
- 1996 में मुख्तार के खिलाफ 5 मुकदमों के आधार पर गैंगस्टर एक्ट के तहत कार्रवाई और 26 वर्ष बाद दस साल की सजा हुई।
- लखनऊ के थाना आलमबाग में 2003 में दर्ज एफआईआर पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मुख्तार को 7 वर्ष कैद की सजा सुनाई।
- 1999 में लखनऊ के थाना हजरतगंज में मुख्तार अंसारी के खिलाफ दर्ज एफआईआर में न्यायालय ने 5 वर्ष की सजा मिली है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का कहना है कि जो माफिया-अपराधी धमकी देते थे, आज वे सब गायब हैं। उन पर कोई दो बूंद आंसू बहाने वाला भी नहीं है। याद कीजिए 6 साल पहले क्या स्थिति थी। कैराना-कांधला में पलायन, गुंडाराज, दंगों का दंश, बुनियादी सुविधाओं का अभाव, बेरोजगारी, व्यापारियों से गुंडा टैक्स की वसूली, बिजली आपूर्ति में भेदभाव तो होता ही था, बेटियां स्कूल तक नहीं जा पाती थीं। राज्य के 75 में से 4 जिलों को बिजली मिलती थी, शेष 71 जिले अंधेरे में रहते थे। भाजपा की सरकार बनने के बाद 6 वर्ष में कैसे तकदीर बदली जा सकती है, उत्तर प्रदेश इसका उदाहरण है।
सपा-बसपा ने बढ़ाया कद
मुख्तार अंसारी राजनीति में आने के बाद बड़ा माफिया बना। मुख्तार पहली बार 1996 में बसपा के टिकट पर विधायक बना। 2003 में जब सपा सत्ता में आई तो पूरे प्रदेश में सुबह 10 बजे से दोपहर 1 बजे तक की घोषित बिजली कटौती कई घंटे तक चलती थी। लेकिन मुलायम सिंह यादव का गृह जनपद इटावा और राजधानी लखनऊ इससे मुक्त थे, जबकि गाजीपुर जनपद के कुछ इलाकों में मुख्तार अंसारी के खौफ के कारण बिजली कटौती नहीं होती थी। इस तरह, सपा और बसपा सरकार में उसकी मनमानी चलती थी। उसकी राह में कोई अधिकारी रोड़ा बनता था तो उस पर हमले होते थे या उसका तबादला हो जाता था। इसलिए उसके खिलाफ आम आदमी तो छोड़िए, पुलिस अफसर भी मुंह खोलने से डरते थे।
‘‘अब माफिया राज का अंत हो रहा है। अंसारी परिवार ने माननीय का कवच ओढ़ रखा था, जो न्यायालय के निर्णय के बाद उतर गया है। इस बार विधानसभा चुनाव में मुख्तार का बेटा अब्बास अंसारी कह रहा था-भइया (अखिलेश यादव) से बात हो गई है, हमारी सरकार बनी तो 6 महीने तक अधिकारियों के तबादले नहीं होंगे। पहले उनसे हिसाब-किताब होगा। -पूर्व डीजीपी बृजलाल
उसी दौर में अपर पुलिस अधीक्षक उदय शंकर जायसवाल पर हमला हुआ था। 2005 में गाजीपुर में भाजपा विधायक कृष्णानंद राय के साथ सहित 7 लोगों की हत्या कर दी गई थी। कृष्णानंद राय ने मुख्तार के भाई को चुनाव में हरा दिया था। इसी कारण वह कृष्णानन्द राय से चिढ़ गया था। 29 अप्रैल को इसी मामले में मुख्तार और अफजाल को सजा हुई है। मुख्तार अंसारी के खिलाफ 1996 में पांच मुकदमों के आधार पर गैंगस्टर एक्ट के तहत कार्रवाई की गई थी। इसमें कांग्रेस नेता अजय राय के बड़े भाई अवधेश राय की हत्या, अतिरिक्त अपर पुलिस अधीक्षक पर जानलेवा हमले का मुकदमा भी शामिल था। एक अन्य मामले में लखनऊ के आलमबाग थाने में 2003 में दर्ज मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मुख्तार को 7 वर्ष और 1999 में हजरतगंज थाने में दर्ज मामले में 5 वर्ष की सजा सुनाई है।
प्रदेश के पूर्व डीजीपी बृजलाल कहते हैं, ‘‘अब माफिया राज का अंत हो रहा है। अंसारी परिवार ने माननीय का कवच ओढ़ रखा था, जो न्यायालय के निर्णय के बाद उतर गया है। इस बार विधानसभा चुनाव में मुख्तार का बेटा अब्बास अंसारी कह रहा था-भइया (अखिलेश यादव) से बात हो गई है, हमारी सरकार बनी तो 6 महीने तक अधिकारियों के तबादले नहीं होंगे। पहले उनसे हिसाब-किताब होगा।
जो माफिया-अपराधी धमकी देते थे, आज वे सब गायब हैं। उन पर कोई दो बूंद आंसू बहाने वाला भी नहीं है। याद कीजिए 6 साल पहले क्या स्थिति थी। कैराना-कांधला में पलायन, गुंडाराज, दंगों का दंश, बुनियादी सुविधाओं का अभाव, बेरोजगारी, व्यापारियों से गुंडा टैक्स की वसूली, बिजली आपूर्ति में भेदभाव तो होता ही था, बेटियां स्कूल तक नहीं जा पाती थीं। राज्य के 75 में से 4 जिलों को बिजली मिलती थी, शेष 71 जिले अंधेरे में रहते थे। भाजपा की सरकार बनने के बाद 6 वर्ष में कैसे तकदीर बदली जा सकती है, उत्तर प्रदेश इसका उदाहरण है।
– मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ
अब मुख्तार अंसारी समेत जितने भी माफिया हैं, अब उन सबका हिसाब हो रहा है। अब इनकी इतनी हैसियत नहीं है कि ये गवाहों को प्रभावित कर सकें। इनको माननीय बनाने में बसपा और सपा की बड़ी भूमिका रही। बनारस रैली में तो मायावती ने मुख्तार अंसारी को ‘गरीबों का मसीहा’ कहा था, जबकि सपा ने मुख्तार और अफजाल को सांसद बनाया। सपा सरकार में भाजपा विधायक कृष्णानंद राय हत्याकांड में मुख्तार को बचाया गया।’’
वहीं, कृष्णानंद राय के बेटे पीयूष राय ने न्यायालय से सजा होने के बाद कहा कि अपराध करने के बाद मुख्तार और अफजाल गवाहों को डरा-धमका कर मुकदमे में बच जाते थे। मुख्तार जेल से अपना साम्राज्य चलाता था। लेकिन जब से योगी आदित्यनाथ प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं, मुख्तार जेल में है। कानून का राज क्या होता है, अब उसे अहसास हो रहा है।
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