उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के एक कड़े फैसले ने देश में मजार जिहाद की साजिश का पर्दाफाश किया है। जमीन जिहाद नाम तो सभी ने सुना था, लेकिन मजार जिहाद का नाम पहले कभी नहीं सुना गया, जिसका उल्लेख देवभूमि उत्तराखंड से होना शुरू हुआ।
उत्तराखंड को देवभूमि इस लिए कहा जाता है कि यहां सनातन धर्म के चारधाम हैं और हर पहाड़ी चोटी पर एक कुलदेवता, कुलदेवी, ग्राम देवता आदि के मंदिर हैं, यहां के लोग धार्मिक और सनातनी रहे हैं, लेकिन पिछले कई सालों से उत्तराखंड के देवस्वरूप को खंडित करने की साजिश होने लगी है। “पाञ्चजन्य” ने भी अपने लेखों में इस विषय को प्रमुखता से बार-बार उठाया कि उत्तराखंड के मैदानी जिलों से लेकर अब पहाड़ी जिलों में भी एक साजिश के तहत मजार जिहाद चल रहा है। जनसंख्या असंतुलन की समस्या के कारण देवभूमि की सनातन संस्कृति को खतरा महसूस होने लगा है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को भी इस बारे में आभास होने लगा था कि उत्तराखंड के कुछ क्षेत्रों में असामान्य हालात बने हुए हैं। उन्होंने वन विभाग, पीडब्ल्यूडी, सिंचाई और राजस्व विभाग द्वारा धार्मिक स्थलों का एक सर्वे करवाया तो उसके चौकाने वाले परिणाम सामने आए। खास तौर पर वन भूमि पर कब्जा करके बनाई गई अवैध मजारों की संख्या सामने आई तो उन्होंने तत्काल एक नोडल अधिकारी डॉ पराग मधुकर धकाते की नियुक्ति की और इस पर कार्रवाई करने का निर्देश दिया।
पनपने नहीं दिया जाए मजार जिहाद और जमीन जिहाद
मजार जिहाद के खिलाफ देश में किसी भी राज्य के मुख्यमंत्री ने पहले कभी ऐसा सख्त निर्णय नहीं लिया होगा। उन्होंने स्पष्ट कहा कि उत्तराखंड में मजार जिहाद, जमीन जिहाद पनपने नहीं दिया जाए और वन भूमि को इस अतिक्रमण से मुक्त किया जाए। जिसके बाद वन विभाग की जमीन पर बनी इन अवैध मजारों को हटाने का काम शुरू हुआ। खास बात ये है कि इन मजारों पर पहले नोटिस चस्पा किया गया और नोटिस लगते ही यहां अंधविश्वास का धंधा या कहें कि मजार जिहाद का षड्यंत्र रच रहे लोग भाग खड़े हुए। इन मजारों पर जब धामी सरकार का बुलडोजर चला तो उनमें कोई मानव अवशेष अथवा किसी भी तरह के जीव अवशेष नहीं मिले। यानी ये मजार जिहाद एक साजिश की तरह उत्तराखंड में फैलाया गया, जहां अंधविश्वास का धंधा करने मुस्लिम, सरकारी जमीनों पर कब्जे करने और हिंदू समुदाय को लक्ष्य बनाने के लिए यहां आकर बसने लगे।
मजार जिहाद के जरिए करते हैं इस्लाम का प्रचार
उल्लेखनीय है कि अधिकांश मुस्लिम तबका मजारों को नहीं मानता है। देवबंद से तो कई साल पहले बाकायदा ये फतवा जारी किया गया था कि कोई भी सच्चा मुस्लिम केवल खुदा के आगे ही सर झुकता है और किसी के आगे नहीं। इसलिए वे मजारों को नहीं मानते। हालांकि, इस मामले में बरेलवी मुस्लिम की राय अलग है और वे ही अपने फकीर समुदाय के माध्यम से इस मजार जिहाद के जरिए, इस्लाम का प्रचार करते आए हैं। खास बात ये भी है कि किसी भी अरब देश में एक भी मजार नहीं है। वहां इस्लाम में इस तरह की इबादत को मान्यता नहीं है।
अब तक करीब 300 अवैध मजारें ध्वस्त
उत्तराखंड में एक सर्वे में जब एक हजार से ज्यादा मजारें चिन्हित हुईं। उसके बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कड़े फैसले लेकर इन अवैध मजारों के खिलाफ अभियान शुरू करवाया और ये ऐसा अभियान है जो अभी तक किसी भी राज्य में नहीं चलाया गया। सीएम धामी के इस फैसले से उनकी देशभर में चर्चा हुई है। जानकारी के मुताबिक उत्तराखंड के जंगलों से अब तक करीब 300 अवैध मजारें ध्वस्त कर दी गई हैं।
हरिद्वार में भी सात अवैध मजारें चिन्हित
हरिद्वार शहर जोकि हिंदू तीर्थ नगरी है, जहां मस्जिद या गैर हिंदू इमारत बनाने की अनुमति नहीं है। वहां भी सात मजारें चिन्हित की गईं। इनमें से तीन ध्वस्त कर दी गई हैं। शेष पर कार्रवाई नहीं करने के लिए हरिद्वार जिले के कांग्रेसी विधायकों ने जिला प्रशासन पर दबाव बनाने की कोशिश की है। जबकि मुख्यमंत्री धामी का स्पष्ट कहना है कि तीर्थ नगरी का इस राज्य का सनातन स्वरूप बनाए रखा जाएगा। इसको संरक्षित की जिम्मेदारी उनकी खुद की है क्योंकि वे इस देवभूमि के प्रथम और मुख्य सेवक हैं।
आखिर कैसे बन गईं मजारें?
मजार जिहाद केवल उत्तराखंड में ही नहीं, बल्कि अन्य प्रदेशों में भी देखा सुना जा रहा है। संवेदनशील स्थानों पर मजारें बनती जा रही हैं। रेलवे स्टेशन, पुल, फ्लाई ओवर, बस अड्डों, बैराजों किनारे आखिरकार क्यों और कैसे मजारें बन गईं? इस पर भी सवाल खड़े हुए हैं। एक नाम के शख्स की 10-10 मजारे हैं, जो इस बात का द्योतक है कि ये मजार जिहाद है और एक धंधे की तरह पनप रहा है। जहां मुस्लिम पांच फीसदी भी नहीं जाते वहां भी बाहर चादर, अगरबत्ती प्रसाद बेचने वाले हैं और शेष 95 फीसदी हिंदू यहां अंधविश्वास पर जाते हैं, यहां कोई फकीर या सूफी नहीं दफनाए गए, मात्र सीमेंट का चबूतरा होता है। ऐसे कई उदाहरण भी मिल जाएंगे कि “लव जिहाद” के खेल भी यहीं से शुरू होता है।
40 किमी में 70 से अधिक अवैध मजारें चिन्हित
बहरहाल उत्तराखंड का देव स्वरूप बचाने के लिए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के फैसले ने इस हिमालय राज्य की सनातन संस्कृति को संरक्षित किया है। मजार जिहाद के खिलाफ अभियान अभी जारी है। धामी सरकार को मुश्किल तब आएंगी जब शहरी क्षेत्र की मजारें ध्वस्त होंगी। मजार जिहाद का अनुमान इस आधार पर लगाया जा सकता है कि करीब 40 किमी की परिधि वाले देहरादून में 70 से अधिक मजारें चिन्हित की गई हैं, जिन्हे हटाने के लिए प्रशासनिक तैयारियां चल रही है।
मुख्यमंत्री धामी के मजार जिहाद के खिलाफ इस अभियान की संत समाज, अखाड़ा परिषद ने भी सराहना की है। महामंडलेश्वर स्वामी यतींद्र आनंद गिरि महाराज, महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद महाराज, अखाड़ा परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वामी रविंद्र पुरी, प्राचीन अवधूत आश्रम के महामंडलेश्वर स्वामी रूपेंद्र प्रकाश महाराज आदि ने धामी सरकार के मजार जिहाद के खिलाफ अभियान को पुण्य का काम बताया है।
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