बच्चों के मानसिक विकास तथा चरित्र निर्माण में बाल साहित्य की महिमा असंदिग्ध है।
गत दिनों अप्रैल को कोलकाता में 18वीं आचार्य विष्णुकांत शास्त्री स्मृति व्याख्यानमाला का आयोजन हुआ। विषय था-‘हिन्दी का बाल साहित्य : संभावनाएं एवं चुनौतियां।’ इसे संबोधित करते हुए प्रख्यात बाल साहित्यकार डॉ. नागेश पाण्डेय ‘संजय’ ने कहा कि बच्चों के मानसिक विकास तथा चरित्र निर्माण में बाल साहित्य की महिमा असंदिग्ध है।
संवेदना के अंकुर उपजाने, राष्ट्रीयता का भाव जगाने तथा संस्कृति से सुपरिचित कराने में बालकों से जुड़े गद्य-पद्य साहित्य की बड़ी भूमिका होती है। समारोह की अध्यक्षता उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान की डॉ. अमिता दुबे ने की। उन्होंने कहा कि शास्त्री जी का व्यक्तित्व बहुआयामी था। उनका मन बालकों की भांति निष्कपट था।
‘हिन्दी का बाल साहित्य : संभावनाएं एवं चुनौतियां।’ इसे संबोधित करते हुए प्रख्यात बाल साहित्यकार डॉ. नागेश पाण्डेय ‘संजय’ ने कहा कि बच्चों के मानसिक विकास तथा चरित्र निर्माण में बाल साहित्य की महिमा असंदिग्ध है। संवेदना के अंकुर उपजाने, राष्ट्रीयता का भाव जगाने तथा संस्कृति से सुपरिचित कराने में बालकों से जुड़े गद्य-पद्य साहित्य की बड़ी भूमिका होती है।
कार्यक्रम के आरंभ में सुप्रसिद्ध गायक ओमप्रकाश मिश्र ने शास्त्री जी रचित राम वंदना एवं गीतों की सांगीतिक प्रस्तुति दी तो डॉ. ऋषिकेश राय ने स्वागत भाषण एवं विषय की प्रस्तावना रखी।
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