आज हम इसी ‘चरैवेति चरैवेति’ की भावना के साथ ‘मन की बात’ का 100वां एपिसोड पूरा कर रहे हैं। हर एपिसोड में देशवासियों के सेवा और सामर्थ्य ने दूसरों को प्रेरणा दी है। ‘मन की बात’ हमेशा सद्भवना, सेवा-भावना और कर्तव्य-भावना से ही आगे बढ़ा है। आजादी के अमृतकाल में यही सकारात्मकता देश को आगे ले जाएगी, नई ऊंचाई पर ले जाएगी और मुझे खुशी है कि ‘मन की बात’ से जो शुरुआत हुई, वह आज देश की नई परंपरा भी बन रही है। एक ऐसी परंपरा जिसमें हमें सबका प्रयास की भावना के दर्शन होते हैं।
मेरे प्यारे देशवासियों, नमस्कार! आपने ‘मन की बात’ के सौवें एपिसोड पर बधाई दी है, लेकिन बधाई के पात्र तो आप सभी श्रोता, हमारे देशवासी हैं। ‘मन की बात’ कोटि-कोटि भारतीयों की भावनाओं का प्रकटीकरण है। 3 अक्तूबर, 2014 को विजय दशमी के दिन हम सबने मिलकर ‘मन की बात’ की यात्रा शुरू की थी। विजय दशमी यानी बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व। ‘मन की बात’ भी देशवासियों की अच्छाइयों का, सकारात्मकता का, एक अनोखा पर्व बन गया है। ऐसा पर्व जो हर महीने आता है, जिसका इंतजार हम सभी को होता है। हम इसमें सकारात्कता और लोगों की सहभागिता का उत्सव मनाते हैं। बेटी-बचाओ बेटी-पढ़ाओ की बात हो, स्वच्छ भारत आंदोलन, खादी के प्रति प्रेम या प्रकृति की बात हो, आजादी का अमृत महोत्सव हो या अमृत सरोवर की बात, ‘मन की बात’ जिस विषय से जुड़ा, वह जन-आंदोलन बन गया।
साथियो! ‘मन की बात’ मेरे लिए तो दूसरों के गुणों की पूजा करने की तरह ही रहा है। मेरे एक मार्गदर्शक थे-श्री लक्ष्मणराव जी इनामदार। वह हमेशा कहते थे कि हमें दूसरों के गुणों की पूजा करनी चाहिए। सामने कोई भी हो, आपके साथ का हो, आपका विरोधी हो, हमें उसके अच्छे गुणों को जानने, उनसे सीखने का प्रयास करना चाहिए। ‘मन की बात’ दूसरों के गुणों से सीखने का बहुत बड़ा माध्यम बन गई है। मुझे याद है, जब मैं गुजरात का मुख्यमंत्री था, तो वहां सामान्य जन से मिलना-जुलना स्वाभाविक रूप से हो ही जाता था। लेकिन 2014 में दिल्ली आने के बाद मैंने पाया कि यहां का जीवन तो बहुत ही अलग है। जो देशवासी मेरे सब कुछ हैं, मैं उनसे ही कट करके जी नहीं सकता था। ‘मन की बात’ ने मुझे इस चुनौती का समाधान दिया। सामान्य मानव से जुड़ने का रास्ता दिया। ‘मन की बात’ मेरे मन की आध्यात्मिक यात्रा बन गयी है।
‘मन की बात’ स्व से समष्टि की यात्रा है।
‘मन की बात’ अहम् से वयम् की यात्रा है।
यह तो मैं नहीं, तू ही इसकी संस्कार साधना है।
कल्पना करिए, मेरा कोई देशवासी 40-40 साल से निर्जन पहाड़ी और बंजर जमीन पर पेड़ लगा रहा है। कितने ही लोग 30-30 साल से जल-संरक्षण के लिए बावड़ियां और तालाब बना रहे हैं, उसकी साफ-सफाई कर रहे हैं। कोई 25-30 साल से निर्धन बच्चों को पढ़ा रहा है, कोई गरीबों की इलाज में मदद कर रहा है। ‘मन की बात’ में जिन लोगों का हम जिक्र करते हैं, वे सब हमारे नायक हैं, जिन्होंने इस कार्यक्रम को जीवंत बनाया है। आज जब हम 100वें एपिसोड के पड़ाव पर पहुंचे हैं, तो मेरी यह भी इच्छा है कि हम एक बार फिर इन सारे नायकों के पास जाकर उनकी यात्रा के बारे में जानें।
हरियाणा के भाई सुनील जगलान जी का मेरे मन पर इतना प्रभाव इसलिए पड़ा, क्योंकि हरियाणा में लिंगानुपात पर काफी चर्चा होती थी। मैंने भी ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ का अभियान हरियाणा से ही शुरू किया था। इसी बीच, जब सुनील जी के ‘सेल्फी विद डॉटर’ अभियान पर मेरी नजर पड़ी तो मुझे बहुत अच्छा लगा। मैंने भी उनसे सीखा और इसे ‘मन की बात’ में शामिल किया। देखते-देखते ‘सेल्फी विद डॉटर’ एक वैश्विक अभियान में बदल गया। ऐसे ही अनेकों प्रयासों का परिणाम है कि आज हरियाणा में लिंगानुपात में सुधार आया है।
मुझे इस बात का बहुत संतोष है कि ‘मन की बात’ में हमने देश की नारी शक्ति की सैकड़ों प्रेरणादायी गाथाओं का जिक्र किया है। चाहे हमारी सेना हो या खेल जगत, मैंने जब भी महिलाओं की उपलब्धियों पर बात की है, उसकी खूब प्रशंसा हुई है। जैसे-हमने छत्तीसगढ़ के देउर गांव की महिलाओं की चर्चा की थी। ये महिलाएं स्वयं सहायता समूहों के जरिए गांव के चौराहों, सड़कों और मंदिरों की सफाई के लिए अभियान चलाती हैं। ऐसे ही तमिलनाडु की आदिवासी महिलाएं, जिन्होंने हजारों पर्यावरण अनुकूल टेराकोटा कप निर्यात किए, उनसे भी देश ने खूब प्रेरणा ली। तमिलनाडु में ही 20,000 महिलाओं ने साथ आकर वेल्लोर में नाग नदी को पुनर्जीवित किया था। ऐसे कितने ही अभियानों को हमारी नारी-शक्ति ने नेतृत्व दिया है और ‘मन की बात’ उनके प्रयासों को सामने लाने का मंच बना है।
‘मन की बात’ में जम्मू-कश्मीर की पेंसिल स्लेट के बारे में बताते हुए मंजूर अहमद जी का जिक्र हुआ था। अब उनकी पहचान बन गई और 200 से ज्यादा लोगों को रोजगार भी दे रहे हैें विशाखापतनम के वेंकट मुरली प्रसाद जी ने आत्मनिर्भर भारत चार्ट साझा किया था। उन्होंने बताया था कि वह कैसे ज्यादा से ज्यादा भारतीय उत्पाद ही इस्तेमाल करेंगे। जब बेतिया के प्रमोद जी ने एलईडी बल्ब बनाने की छोटी यूनिट लगाई या गढ़मुक्तेश्वर के संतोष जी ने मैट बनाने का काम किया, ‘मन की बात’ ही उनके उत्पादों को सबके सामने लाने का माध्यम बना। हमने मेक इन इंडिया के अनेक उदाहरणों से लेकर स्पेस स्टार्टअप तक की चर्चा ‘मन की बात’ में की है।
कुछ एपिसोड पहले मैंने मणिपुर की बहन विजयशांति देवी जी का भी जिक्र किया था। विजयशांति जी कमल के रेशों से कपड़े बनाती हैं। ‘मन की बात’ में उनके इस अनोखे इको फ्रेंडली विचार की बात हुई तो उनका काम और लोकप्रिय हो गया। ‘मन की बात’ की एक और विशेषता रही है। इसके जरिए कितने ही जन-आंदोलनों ने जन्म भी लिया है और गति भी पकड़ी है। जैसे-हमारे खिलौने, खिलौना उद्योग को फिर से स्थापित करने का अभियान, देसी नस्ल के श्वान को लेकर जागरुकता बढ़ाने की शुरुआत भी ‘मन की बात’ से ही की थी। हमने एक और मुहिम शुरू की थी कि हम गरीब छोटे दुकानदारों से मोल-भाव नहीं करेंगे, झगड़ा नहीं करेंगे। जब ‘हर घर तिरंगा’ मुहिम शुरू हुई, तब भी ‘मन की बात’ ने देशवासियों को इस संकल्प से जोड़ने में खूब भूमिका निभाई। ऐसे हर उदाहरण समाज में बदलाव का कारण बने हैं। समाज को प्रेरित करने का ऐसे ही बीड़ा प्रदीप सांगवान जी ने भी उठा रखा है। ‘मन की बात’ में हमने प्रदीप सांगवान जी के ‘हीलिंग हिमालयाज’ अभियान की चर्चा की थी।
देश में पर्यटन बहुत तेजी से विकास कर रहा है। हमारे प्राकृतिक संसाधन हों, नदियां, पहाड़, तालाब या हमारे तीर्थ स्थल हों, उन्हें साफ रखना बहुत जरूरी है। पर्यटन में स्वच्छता के साथ-साथ हमने अतुल्य भारत अभियान की भी कई बार चर्चा की है। इस अभियान से लोगों को पहली बार ऐसे कितनी ही जगहों के बारे में पता चला, जो उनके आस-पास ही थे। मैं हमेशा कहता हूं कि हमें विदेशों में घूमने जाने से पहले देश के कम से कम 15 पर्यटन स्थलों पर जरूर जाना चाहिए। ये स्थान आपके राज्य से बाहर किसी अन्य राज्य के होने चाहिए। ऐसे ही हमने स्वच्छ सियाचिन, प्लास्टिक के एकल उपयोग और ई-कबाड़ जैसे गंभीर विषयों पर भी लगातार बात की है। आज पूरी दुनिया पर्यावरण के जिस मुद्दे को लेकर इतनी परेशान है, उसके समाधान में ‘मन की बात’ का यह प्रयास बहुत अहम है।
‘मन की बात’ को लेकर मुझे इस बार एक और खास संदेश यूनेस्को की महानिदेशक औद्रे आॅजुले का आया है। उन्होंने सभी देशवासियों को सौ एपिसोड्स की इस शानदार यात्रा के लिए शुभकामनाएं दी हैं। साथ ही, उन्होंने कुछ सवाल भी पूछे हैं। उन्होंने शिक्षा और संस्कृति संरक्षण को लेकर भारत के प्रयासों के बारे में जानना चाहा है। ये दोनों ही विषय ‘मन की बात’ के पसंदीदा विषय रहे हैं। बात शिक्षा की हो या संस्कृति, उसके संरक्षण या संवर्धन की हो, भारत की यह प्राचीन परंपरा रही है। इस दिशा में आज देश जो काम कर रहा है, वह वाकई बहुत सराहनीय है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति हो या क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाई का विकल्प हो, शिक्षा में तकनीक समाकलन हो, आपको ऐसे अनेक प्रयास देखने को मिलेंगे। वर्षों पहले गुजरात में बेहतर शिक्षा देने और ड्रॉपआउट दर को कम करने के लिए ‘गुणोत्सव और शाला प्रवेशोत्सव’ जैसे कार्यक्रम जनभागीदारी की एक अद्भुत मिसाल बन गए थे। ‘मन की बात’ में हमने ऐसे कितने ही लोगों के प्रयासों को रेखांकित किया है, जो नि:स्वार्थ भाव से शिक्षा के लिए काम कर रहे हैं। आपको याद होगा, एक बार हमने ओडिशा में ठेले पर चाय बेचने वाले स्वर्गीय डी. प्रकाश राव जी के बारे में चर्चा की थी, जो गरीब बच्चों को पढ़ाने के मिशन में लगे हुए थे। झारखंड के गांवों में डिजिटल पुस्त्कालय चलाने वाले संजय कश्यप जी हों, कोविड के दौरान ई-लर्निंन के जरिये कई बच्चों की मदद करने वाली हेमलता एन.के. जी हों, ऐसे अनेक शिक्षकों के उदाहरण हमने ‘मन की बात’ में लिए हैं।
लक्षद्वीप का कुमेल ब्रदर्स चैलेंज क्लब हो या कर्नाटक के ‘क्वेमश्री’ जी ‘कला चेतना’ जैसे मंच, देश के कोने-कोने से लोगों ने मुझे चिट्ठी लिखकर ऐसे उदाहरण भेजे हैं। हमने उन तीन प्रतियोगिताओं पर भी बात की थी, जो देशभक्ति पर ‘गीत’, ‘लोरी’ और ‘रंगोली’ से जुड़े थे। आपको ध्यान होगा, एक बार हमने देश भर के स्टोरी टेलर से स्टोरी टेलिंग के माध्यम से शिक्षा की भारतीय विधाओं पर चर्चा की थी। मेरा अटूट विश्वास है कि सामूहिक प्रयास से बड़े से बड़ा बदलाव लाया जा सकता है। इस साल हम जहां आजादी के अमृतकाल में आगे बढ़ रहे हैं, वहीं जी-20 की अध्यक्षता भी कर रहे हैं। यह भी एक वजह है कि शिक्षा के साथ-साथ विभिन्नक वैश्विक संस्कृतियों को समृद्ध करने के लिए हमारा संकल्प और मजबूत हुआ है।
हमारे उपनिषदों का एक मंत्र सदियों से हमारे मानस को प्रेरणा देता आया है- चरैवेति चरैवेति। यानी चलते रहो-चलते रहो। आज हम इसी ‘चरैवेति चरैवेति’ की भावना के साथ ‘मन की बात’ का 100वां एपिसोड पूरा कर रहे हैं। हर एपिसोड में देशवासियों के सेवा और सामर्थ्य ने दूसरों को प्रेरणा दी है। ‘मन की बात’ हमेशा सद्भवना, सेवा-भावना और कर्तव्य-भावना से ही आगे बढ़ा है। आजादी के अमृतकाल में यही सकारात्मकता देश को आगे ले जाएगी, नई ऊंचाई पर ले जाएगी और मुझे खुशी है कि ‘मन की बात’ से जो शुरुआत हुई, वह आज देश की नई परंपरा भी बन रही है। एक ऐसी परंपरा जिसमें हमें सबका प्रयास की भावना के दर्शन होते हैं।
मुझे विश्वास है कि आप सब मेरी भावनाओं को समझेंगे। आपके परिवार के एक सदस्य के रूप में ‘मन की बात’ के सहारे आपके बीच में रहा हूं, आपके बीच में रहूंगा। अगले महीने हम एक बार फिर मिलेंगे।
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