‘द केरल स्टोरी’ फिल्म ने उस दुरावस्था की एक झलक दिखाई है जिसमें आज केरल को पहुंचा दिया गया है। कांग्रेस और कम्युनिस्टों ने वहां जिस प्रकार से इस्लामी कट्टरपंथी ताकतों का पोषण किया है, उससे कभी धर्म और अध्यात्म की भूमि रहे केरल को ‘लव जिहाद’, ‘नार्को जिहाद’ और हिन्दू धर्म पर आघात की भूमि बना दिया गया। 2018 में सबरीमला मंदिर की प्राचीन परंपराओं पर कुठाराघात करने की सेकुलर चाल का जिस प्रकार वहां समाज के सभी वर्गों ने मिलकर प्रतिकार किया और हिन्दुत्व विरोधी ताकतों को परास्त किया, उसने यह आभास कराया था कि प्रदेश अब शायद बदलाव की ओर है। फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ से सामने आए प्रश्नों, कम्युनिस्टों और कांग्रेस की मुस्लिम तुुष्टीकरण राजनीति, इस्लामी कट्टरपंथियों के बढ़ते जाने की वजहों और आध्यात्मिक जागृति के संकेत आदि पर पाञ्चजन्य के सहयोगी संपादक आलोक गोस्वामी ने प्रज्ञा प्रवाह के अखिल भारतीय संयोजक श्री जे. नन्दकुमार से लंबी बातचीत की। प्रस्तुत हैं उस वार्ता के संपादित अंश
‘द केरल स्टोरी’ फिल्म को लेकर पूरे देश में बेवजह का एक तमाश खड़ा किया जा रहा है। कांग्रेस, कम्युनिस्ट और कट्टर इस्लामी जमातेंयह कहते हुए फिल्म का विरोध कर रही हैं कि यह फिल्म ‘सच नहीं दिखा रही बल्कि केरल को लेकर एक भ्रम पैदा कर रही है’। लेकिन अनेक विद्वान लोग हैं जिन्होंने फिल्म देखने के बाद इसे वास्तविकता पर आधारित बताया है। आपका इस पर क्या कहना है?
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‘द केरल स्टोरी’ के बारे में हमने पढ़ा है और इससे जुड़े हुए प्रोफेशनल लोगों, निर्माता, कहानी पर शोध करने वालों आदि के साथ मैंने बात की है। उससे यह समझ में आया है कि यह फिल्म सचाई के आधार पर बनाई गई है। इस फिल्म को बनाने वाले ही नहीं, बल्कि आज केरल के लोग भी बताते हैं कि प्रदेश का महौल कितना खराब हो चुका है। बहुत सी आतंकवादी ताकतें केरल को लक्ष्य करके लड़कियों को बहला-फुसलाकर जिहाद में झोंक रही हैं। केरल के पूर्व मुख्यमंत्री वी.एस.अच्युतानंदन ने एक बार खुद कहा था कि ‘केरल में इस तरह का षड्यंत्र चल रहा है कि आने वाले 20 साल के अंदर केरल एक इस्लामिक स्टेट बन जाएगा’।
यह षड्यंत्र है हिन्दू और ईसाई लड़कियों को ‘प्रेम’ जाल में फंसाकर इस्लामी देशों में ले जाना। इसके प्रमाण भी उपलब्ध हैं। अनेक लोगों ने बताया है कि हिन्दू लड़कियों को इस्लामी देशों में ले जाया गया है। केरल में डीजीपी रहे लोकनाथ बेहेड़ा ने बयान दिया था कि ‘केरल के इस्लामीकरण का षड्यंत्र तेजी से चल रहा है’। ये सामान्य लोग नहीं हैं, ये इस विषय के बारे में बहुत पहले से बताते आ रहे हैं। ‘लव जिहाद’ शब्द का प्रयोग सबसे पहले केरल में न्यायाधीश रहे न्यायमूर्ति के.टी. शंकरन ने प्रमाण सहित किया था। उन्होंने कहा था, यहां पर सरकार से लेकर पुलिस प्रशासन तक को इस विषय को गंभीरता से लेने की आवश्यकता है। यहां तक कि केरल के ईसाई बिशप जैसे लोगों का भी कहना है कि इस्लामी षड्यंत्र से लड़कियों को सजग रहने की आवश्यकता है। यह बात बिशप ने चर्च में रविवार की प्रार्थना सभा में बोली थी। आज जैसे केरल एक ज्वालामुखी के ऊपर बैठा है। स्थिति विस्फोटक है।
इस विषय पर केरल उच्च न्यायालय ने 14 साल पहले फैसला दिया था। उसमें स्पष्ट कहा था कि इस मामले को संज्ञान में लेकर इस पर आगे जांच होनी चाहिए। इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी वहां पर सरकार के स्तर पर इस विषय को गंभीरता से क्यों नहीं लिया गया?
केरल की आज जो राजनीतिक परिस्थिति है उसमें आप भाजपा को छोड़कर किसी भी अन्य पार्टी को देख लीजिए, वे सारी इस्लामी कट्टरता से डरती हैं। केरल में मुस्लिम आबादी लगभग 29 प्रतिशत है। इन तथाकथित सेकुलर पार्टियों के नेताओं ने सुनियोजित ढंग से इस षड्यंत्र को बढ़ावा ही दिया है। सब तरह के प्रमाण मिलने के बाद भी, एक तरह से कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी के बीच प्रतियोगिता जैसी चल रही है कि कौन मुसलमानों का ज्यादा तुष्टीकरण कर रहा है। आज केरल में पिनरई विजयन की सरकार है। वर्तमान में, और इससे पहले भी जब पिनरई सरकार रही, दोनों बार इस्लामी कट्टरपंथियों का बहुत ज्यादा तुष्टीकरण किया गया है। शुरुआत में तो मुख्यमंत्री पिनरई विजयन ने भी माना था कि केरल से लड़कियों को बाहर ले जाया गया है। तब यह भी बताया था कि ऐसी लड़कियों में कितने प्रतिशत हिन्दू हैं और कितने प्रतिशत ईसाई हैं। लेकिन बाद में उनको इस्लामी कट्टरपंथियों ने पूरी तरह से जैसे अपने चंगुल में ले लिया। पिनरई विजयन के कई मुस्लिम कारोबारियों के साथ संबंध हैं। पिछले दिनों पिनरई का दुबई जाने का एक कार्यक्रम था, जबकि केन्द्र सरकार ने किसी भी राज्य के मुख्यमंत्री को उस कार्यक्रम के लिए दुबई जाने की अनुमति नहीं दी थी। केन्द्र सरकार ने पिनरई से पूछा कि क्या आपका वहां किसी व्यक्तिगत व्यवसाय से जुड़ा काम है? पिनरई ने इस प्रश्न का कोई जवाब नहीं दिया। अंतत: केन्द्र सरकार ने अनुमति नहीं दी।
दुबई से भारत में सोने की तस्करी का एक प्रकरण केरल में चल रहा है। उसमें भी मुख्यमंत्री पिनरई की संलिप्तता पाई गई है। इस पर क्या कहेंगे?
अभी पूरे भारत में हो रही सोने की तस्करी में से ज्यादातर केरल में हो रही है। इसमें भी सीधे तौर पर मुख्यमंत्री पिनरई का नाम आ रहा है। इसलिए इस्लामी कट्टरपंथ के बारे में वे कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हैं। कई अन्य कारणों से भी कम्युनिस्ट सत्ता इन इस्लामी कट्टरपंथियों के कब्जे में जा चुकी है। नि:संदेह, यह बहुत खतरनाक परिस्थिति है। इस वजह से ऐसी ताकतों के विरुद्ध वे मुंह नहीं खोलते।
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फिल्म ने केरल को ग्रस रहे एक और अपराध की तरफ इशारा किया है!
फिल्म में मुख्यत: तीन लड़कियों की कहानी है। इस फिल्म का ट्रेलर देखने से ही पता चलता है कि यह किसी एक मजहब के खिलाफ नहीं, बल्कि आतंकवाद के खिलाफ है। इसमें एक और दृश्य ध्यान खींचता है। इसमें गिरफ्त में आईं, लड़कियों को खाने के लिए एक खास नशीली गोली दी जाती है। जैसे, किसी लड़की ने कहा कि उसके सिर में दर्द है, तो उसे जो दवा दी जा रही है, वह एक तरह की नशीली गोली है। तो इस तरह यह फिल्म ‘नारकोटिक जिहाद’ की तरफ भी संकेत करती है।
मुझे लगता है कि यह बहुत संतोष की बात है कि इस तरह की फिल्में बनाने के लिए कुछ लोग पैसा खर्च करने के लिए तैयार हो रहे हैं। यह बहुत हिम्मत की बात है। इस फिल्म को रुकवाने के लिए जो भी न्यायालय में गया, उसकी अपील को न्यायालय ने खारिज कर दिया। फिल्म में क्या सही है क्या गलत, इसकी जांच करना तो पुुलिस प्रशासन का काम है, ये न्यायालय का काम नहीं है।
फिल्म में बताया गया कि 32,000 लड़कियां इस षड्यंत्र में अब तक फंस चुकी हैं! इस आंकड़े को लेकर ही सेकुलर दल सवाल उठा रहे हैं, जबकि निर्माता का कहना है कि तथ्य सबके सामने हैं! ये विरोध करने वाले तथ्यों को क्यों नहीं देखते?
ये लोग जो सवाल उठा रहे हैं, इन्हें समझना चाहिए कि ये 32,000 वाली बात ट्रेलर में है, टीजर में है, फिल्म में भी है। टीजर तो छह महीने पहले आया था। उसमें मुख्य कलाकार बताती है कि ‘मेरे साथ 32 हजार महिलाएं हैं’। वह ऐसा नहीं बोल रही कि सिर्फ केरल से 32 हजार महिलाएं हैं। यह सच है कि आईएसआईएस के इस्लामी देशों में स्थित अड्डों पर विभिन्न देशों से लाई गई लड़कियां हैं। इस फिल्म में मुख्यत: तीन लड़कियां दिखाई गई हैं जिनमें से दो हिन्दू हैं और एक ईसाई। अगर कोई ठीक तरह से अध्ययन करे तो पूर्व मुख्यमंत्री अच्युतानंदन का बयान है, पूर्व कांग्रेसी मुख्यमंत्री ओमन चांडी, केरल के पूर्व डीजीपी लोकनाथ बेहेड़ा, टी.पी. सेनकुमार, जैकब थॉमस जैसे लोगों के बयान हैं, ये कोई सामान्य लोग नहीं हैं। न्यायमूर्ति शंकरन और खुद पिनरई विजयन 32 हजार की बात कर चुके हैं, आंकड़ा शायद इससे ज्यादा ही होगा।
फिल्म में बताए इस आंकड़े को लेकर विरोध करने वाले लोगों की दिक्कत क्या है, ये 32,000 का आंकड़ा? मान लीजिए अगर यह संख्या 31,999 है, तब उनको कोई दिक्कत नहीं है क्या? आखिर इस 32,000 को पकड़कर वे समाज को गुमराह क्यों कर रहे हैं? इसलिए ये विरोध पूरी तरह निराधार है। इनका एक ही उद्देश्य दिखता है कि कैसे भी फिल्म को कमतर बताया जाए। लेकिन किस्मत से अभी 3 मई को केरल उच्च न्यायालय के न्यायाधीश ने विरोध करने वाले से पूछा कि, आप बेमतलब की बात उठा रहे हैं। आप जिस तरह से बातें कर रहे हैं उससे तो इस फिल्म का और ज्यादा प्रचार हो रहा है।
पूरा सामुरिन क्षेत्र हिन्दू संस्कृति का गढ़ है। वहां एक तलि शिवमंदिर है, जहां पर हाल ही में मुख्यमंत्री के ‘इस्लामो-लेफ्टिस्ट’ दामाद की शह पर उस पूरे क्षेत्र का इस्लामी नामकरण करने की कोशिश चली। इसके विरुद्ध कालीकट की आम हिन्दू जनता ने संघर्ष प्रारंभ किया है। वहां आम जनता के साथ ही प्रबुद्ध वर्ग के लोग, साहित्यकार आगे आ रहे हैं। यह कोई हिन्दू-मुस्लिम वाला विषय नहीं है, बल्कि यह यहां की संस्कृति को बदलने के षड्यंत्र से जुड़ा है। इसी के विरुद्ध यह संघर्ष खड़ा हो रहा है। इस बदलाव को तेजी से लाने का दायित्व केरल के आध्यात्मिक नेतृत्व के पास है। संन्यासी हैं। इन सबको आगे आना होगा। केरल के हिन्दू सामाजिक संगठनों, जैसे एनएसएस, एसएनडीपी आदि को भी सामने आने की आवश्यकता है। आदि शंकराचार्य की, परशुराम की भूमि को वैसा ही गरिमामय बनाने के लिए राजनीतिक ही नहीं, सामाजिक और आध्यात्मिक संगठनों को भी अपनी भूमिका निभानी होगी।
कांग्रेस सांसद शशि थरूर का कहना है कि ‘ये आपके केरल की स्टोरी होगी, हमारे केरल की स्टोरी तो नहीं’ है। इस पर आपका क्या कहना है?
शशि थरूर जैसे पढ़े-लिखे व्यक्ति को ऐसा नहीं बोलना चाहिए। मैंने तो सवाल भी उठाया था कि क्या इस व्यक्ति को ‘सेलेक्टिव एमनीशिया’ (सुविधानुसार विस्मरण) का रोग है? ये एक प्रकार से हिपोक्रेसी (दोगलापन) है। मेरी इस बात पर कई लोगों का कहना था कि ‘शशि थरूर को ये दोनों रोग हैं’। आज से लगभग 18 महीने पहले उन्होंने ही बताया था कि ‘मेरे पास ऐसी तीन लड़कियों के माता-पिता मिलने आए हैं जो अपने दिशाहीन पतियों के कारण अफगानिस्तान में फंसी हुई हैं। मुझे इसी हालात में फंसी एक और लड़की की जानकारी है। अपने लोकसभा क्षेत्र से जुड़े इस विषय को लेकर मैं पूर्व विदेश मंत्री (सुषमा स्वराज) से भी बात कर चुका हूं।’ उनका ये ट्वीट सबके सामने है। इसके बावजूद आज वे कहते हैं कि ऐसा कुछ नहीं है! इसलिए मैंने उनके संबंध में कहा किक्या वे दोगली बात करने वाले व्यक्ति हैं या दिमागी तौर पर अशांत हैं? थरूर को विस्मरण का रोग है क्या? ऐसे लोगों के इन बयानों से साफ लगता है कि वे इस्लामी कट्टरपंथियों के साथ खड़े हैं।
इस्लामी कट्टरपंथियों के तुष्टीकरण की वजह से ही क्या वहां पीएफआई जैसे उग्र इस्लामिक गुट सिर उठाने की हिमाकत करते हैं? राहुल गांधी जीत के भरोसे के साथ वायनाड से चुनाव लड़ने जाते हैं? और तो और कांग्रेस के लोग बीच सड़क पर गाय काटते हैं?
देखिए, गाय को सबके सामने बीच सड़क पर काटने वाले ये लोग कौन हैं? ये लोग हैं खुद को गांधी जी का शिष्य कहने वाले यूथ कांग्रेस के प्रदेश महामंत्री रिजिल माक्कुटी। यही माक्कुटी कर्नाटक में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डी.के. शिवकुमार के लिए चुनाव प्रचार कर रहे हैं। राहुल गांधी अपनी ‘भारत जोड़ो यात्रा’ में सार्वजनिक रूप से गाय को काटने वाले इसी व्यक्ति को सबसे ज्यादा साथ लेकर चले थे। हम तो यहां तक कहते हैं कि ऐसा काम तो किसी से छुपकर भी नहीं करना चाहिए। लेकिन ये लोग ऐसा कार्य सार्वजनिक रूप से करते हैं। और तो और, इन्होंने उसी गाड़ी में गोमांस भरकर पूरे शहर में उसका वितरण किया। इसलिए मैं कहता हूं कि इन सब वजहों से ही आज स्थिति ऐसी बन गई है कि केरल में इस्लामी कट्टरपंथी तय करते हैं कि यहां किसका राज होगा, कौन सरकार बनाएगा। और यही वजह है कि कांगे्रस और कम्युनिस्ट इन तत्वों का साथ पाने के लिए किसी भी हद तक गिरने को तैयार रहते हैं।
मराड की मस्जिद सहित अन्य अनेक मस्जिदों में घातक हथियारों का मिलना, घरों में पेट्रोल बम बनाने के कारखाने चलना, हिन्दू संगठनों के कार्यकर्ताओं की हत्याएं होना आदि दिखाते हैं कि केरल में राजनीतिक हिंसा का सिलसिला चलता आ रहा है। 1968 में सबसे पहले संघ कार्यकर्ता की हत्या की गई थी। मुख्यत: मार्क्सवादियों की सरपरस्ती में चल रही इस राजनीतिक हिंसा की संस्कृति के बारे में क्या कहेंगे?
देखिए, कम्युनिस्ट हों या कांगे्रेसी, दोनों इस संस्कृति को चलाने वाले हैं। कम्युनिस्ट शारीरिक हमले भी करते हैं। कम्युनिस्टों को लगता है कि यदि रा.स्व. संघ या किसी अन्य हिन्दू संगठन के कार्यकर्ता पर आक्रमण करते हैं तो इससे इस्लामी कट्टरपंथियों को वे अपने लोग लगते हैं। यानी यहां ‘हमारे शत्रु का शत्रु हमारा मित्र’ जैसी बात है। लेकिन 1968-69 में मुसलमानों में ये आतंकवादी प्रवृत्ति नहीं थी। मुसलमानों को इस मानसिकता में पहुंचाने में कम्युनिस्ट और कांग्रेस, दोनों का हाथ रहा है, इसकी शुरुआत कम्युनिस्टों ने ही की थी। पिनरई विजयन के नेतृत्व में ही 1968 में वाडिकल रामकृष्णन की हत्या हुई, जो पहली राजनीतिक हत्या थी। उस कांड में पिनरई पहले अभियुक्त थे। उस वक्त कम्युनिस्ट शासन में ईएमएस नम्बूदिरीपाद मुख्यमंत्री थे। यहां हमारे समाज को यह भी समझने की जरूरत है कि आज जो आरोप लगाए जाते हैं कि न्यायपालिका का राजनीतिकरण किया जा रहा है वह दरअसल कम्युनिस्ट राज में होता है। तब नम्बूदिरीपाद के शासन में रामकृष्णन की हत्या के सारे सबूत मिटाकर पिनरई विजयन को बचाया गया, जबकि पिनरई ही मुख्य अभियुक्त थे। हत्या उनके तहसील केन्द्र में हुई थी। उस वक्त पिनरई केएसवाई यानी केरल स्टेट यूथ फेडरेशन के नेता थे, तब डीवाईएफआई नहीं बनी थी। उस समय के सेशन अदालत के जज ने टिप्पणी की थी कि, अभियोग पक्ष घटना से जुड़े सबूत पेश करने में नाकाम रहा, इसलिए इन्हें छोड़ा जाता है। सबूत क्यों नहीं मिले, क्योंकि पुलिस विभाग ने केस को ठीक से नहीं देखा। दिलचस्प बात है कि अभी दो साल पहले दो ऐसे लोग सामने आए थे, जिनका कहना था कि वे उस घटना के प्रत्यक्षदर्शी थे, उन्होंने देखा था कि पिनरई विजयन ने हत्या कैसे की थी। हत्यारों ने ‘स्टोन एक्स’ यानी मिट्टी से पत्थर खोद कर निकालने वाली कुल्हाड़ी से रामकृष्णन का पेट फाड़ा था। हमें आज नहीं पता कि तब असल में क्या हुआ था, पर ये उन प्रत्यक्षदर्शियों ने ही बताया है। बाद के काल में भी इस तरह से जितनी संघ कार्यकर्ताओं की हत्याएं हुईं उनमें इन कम्युनिस्टों ने प्रशिक्षित मुसलमान हत्यारों को साथ में लेकर घटना को अंजाम दिया था।
ऐसे आरोप हैं कि 2016 के विधानसभा चुनावों में भी मार्क्सवादी पार्टी ने इस्लामी कट्टरपंथियों के साथ गुपचुप समझौता किया हुआ था। यह कहां तक सही है?
यह सही बात है। 2016 के चुनाव के दौरान पिनरई विजयन ने एक यात्रा निकाली थी। उस दौरान जिन जिन क्षेत्रों में इस्लामी गुट ताकतवर थे वहां वहां उन्होंने आतंकवादी नेताओं के साथ वार्ता की। यह तथ्य है। फिर 2021 के चुनाव में भी उन्होंने इन कट्टर इस्लामी नेताओं के साथ खुलेआम होटल आदि में भेंट की। जमायते इस्लामी, पीएफआई, कोयंबतूर बम विस्फोट मामले के मुख्य अभियुक्त मदनी के साथ तो मंच पर उनकी फोटो भी है। ऐसे हालात में भी वे दावे करते हैं कि हम तो ‘गॉड्स ओन कंट्री’ हैं!
सांस्कृतिक रूप से समृद्ध केरल सच में कभी ‘गॉड्स ओन कंट्री’ ही कहलाता था। लेकिन आज ईश्वर की धरती की दुर्दशा देखकर आपके मन में क्या भाव आता है?
केरल ‘गॉड्स ओन कंट्री’ ही था। संस्कृति और हिन्दुत्व की दृष्टि से केरल एक महत्वपूर्ण प्रदेश था। केरल के महत्व को रेखांकित करते हुए एक मलयाली कवि ने लिखा है-‘उत्तर में शिव, दक्षिण में देवी। देवी और शिव आपस में एक दूसरे को निहारते हैं, और दोनों के नयनों के मिलन के बीच का स्थान है यह केरल’। एक और पुरानी उपमा है कि कन्याकुमारी‘ में देवी और गोकर्ण (कर्नाटक) में शिवजी के नेत्रों के मिलन के बीच का स्थान केरल है’। इसी तरह ‘कन्याकुमारी में देवी और कैलास पर विराजमान शिव के परस्पर देखने के मध्य का स्थान है भारत’। तो सांस्कृतिक, आध्यात्मिक दृष्टि से केरल भारत का लघु रूप ही है।
केरल में कई ऐतिहासिक विश्व प्रसिद्ध मंदिर हैं। त्योहारों पर अपूर्व उत्साह का माहौल रहता है। हिन्दू धर्म के प्रति समर्पित केरल पर फिर भी वाममोर्चा का शासन होता है! इस विडंबना को कैसे देखते हैं?
इस स्थिति के पीछे अनेक कारण हैं। सबसे अधिक हिन्दू आस्थावानों का प्रदेश है तमिलनाडु। लेकिन देखिए, आज वहां पर आस्था पर आघात करने वाली, ‘हम भारत के अंग नहीं हैं’ कहने वाली द्रविड़मुनेत्र कषगम द्रमुक सत्ता में है। लेकिन अब बदलाव आ रहा है, धीरे धीरे। ये कम्युनिस्ट हिन्दुओं के लिए कितना खतरा पैदा कर रहे हैं, अब लोग इसे समझ रहे हैं। एक नई चेतना करवट ले रही है। अब वहां मंदिरों की मुक्ति के लिए भी संघर्ष प्रारंभ हो गया है। मैं राजनीति का उतना जानकार नहीं हूं, लेकिन देखने में आया है कि केरल में सामान्य लोगों को लगता है कि उनके पास दो ही विकल्प हैं, एक कम्युनिस्ट और दूसरा कांग्रेस। तीसरा राष्ट्रीय विकल्प, या कहें भाजपा वहां पर अभी तक लोगों को उस परिमाण में अपनी तरफ आकर्षित नहीं कर पाई है। इसका संदर्भ आया इसलिए बताता हूं कि भाजपा राष्ट्रहित में काम करने वाली ताकत है। लेकिन केरल में जहां जहां भाजपा के जीतने की संभावना लगती है वहां वहां ये कम्युनिस्ट ‘महागठबंधन’ बना लेते हैं। राष्ट्रवादी शक्तियों के विरुद्ध यह काम आज से नहीं, बल्कि पिछले 40-50 साल से चल रहा है। केरल में कम्युनिस्ट और कांग्रेस में समझौता होता है कि अगर कहीं हम आपस में टकराए तो भाजपा के जीतने की संभावना बन जाएगी। इसलिए सीट दर सीट वे तय कर लेते हैं कि कौन मुस्लिम वोट ज्यादा लेने की स्थिति में है, उसे ही मदद करते हैं। क्योंकि कौन जीतेगा इसको मुस्लिम वोट तय करता है। अब केरल के मतदाता में बहुत परिवर्तन आ रहा है। मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि एक बहुत बड़ा बदलाव हमें आने वाले आम चुनाव और विधानसभा चुनावों में देखने को मिलेगा।
इस विश्वास के पीछे ठोस वजह क्या है?
केरल में आज अनेक संगठन हैं, जिनमें ईसाई संगठन भी हैं, उन्होंने गंभीरता से केरल को लगे इस रोग के बारे में सोचना शुरू किया है। हाल में इस द केरल स्टोरी फिल्म को लेकर भी ऐसेअनेक संगठन सच के साथ खड़े होने के लिए आगे आए हैं, जिन्होंने कभी संघ या भाजपा से निकटता नहीं दर्शाई थी। अभी हाल ही में कालीकट में ईसाई बिशपों के नेतृत्व में एक बहुत बड़ा प्रदर्शन हुआ था। उसमें जो नारे लगे थे, उसमें भाव था कि-‘आपने (कांग्रेस और कम्युनिस्ट) आज तक हमारी बात नहीं सुनी, अब हम आपकी बात नहीं सुनेंगे। हम आपको (कांग्रेस और कम्युनिस्ट) अपना नेता नहीं मानते’। सोचिए, उस दिन जबरदस्त बारिश के बीच यह प्रदर्शन चलता रहा था। इसमें भाग ले रहे बिशपों और ननों के पहनावे पूरे भीग चुके थे, पर सब खड़े रहे। इतना प्रचंड आक्रोश है ईसाइयों के अंदर। पाला डायोसिस के जिस बिशप ने ‘नारकोटिक्स जिहाद’ के खिलाफ पहली बार सबको सचेत किया, कम्युनिस्टों ने उस बिशप के विरुद्ध उसी डायोसिस के बिशपों को खड़ा कर दिया। पिनरई सरकार और उसकी पुलिस ने इस आरोप पर कोई कार्रवाई नहीं की। ये सारी चीजें ईसाई भी देख रहे हैं। इसलिए वे अब अपने विचारों में बदलाव ला रहे हैं। इनके साथ ही एनएसएस यानी नायर सर्विस सोसायटी और एसएनडीपी जैसे संगठन हैं जिनकी वजह से जमीनी स्तर पर बहुत बड़ा परिवर्तन आ रहा है।
उत्तर में शिव और दक्षिण में देवी के नयनों के परस्पर दृष्टिपात के बीच की भूमि केरल में इस बदलाव के लिए समाज से क्या अपेक्षा है? यह बदलाव कब वास्तव में फिर से ‘गॉड्स ओन कंट्री’ के दर्शन कराएगा?
इस दृष्टि से मैं कई संकेत देख रहा हूं। मैं उस पंदलम नामक स्थान से आता हूं जहां के राजकुमार थे भगवान अयप्पा। सबरीमला का पूरा आंदोलन धार्मिक-आध्यात्मिक आंदोलन था। मैं गर्व से कह सकता हूं कि यह आंदोलन मेरे गांव पंदलम से प्रारंभ हुआ था। इसमें महिलाओं ने नेतृत्व दिया। पंदलम से पहली जप यात्रा निकली। बचपन में मुझे जिन्होंने पढ़ाया, मेरे वे मार्क्सवादी सोच के अध्यापक, अध्यापिकाएं, वे सब उस अयप्पा नाम जप यात्रा में शामिल हुए। मैंने तभी समझ लिया था कि अब कुछ तो बड़ा होने वाला है। इसके फौरन बाद, पंदलम में निकाय चुनाव में भाजपा की जबरदस्त जीत हुई, केरल में भाजपा का सबसे अच्छा प्रदर्शन यहीं देखने में आया। आज पंदलम नगर निकाय पर भाजपा का शासन है। वहां भाजपा के 18 पार्षद हैं। अयप्पा मंदिर की कुल सीढ़ियां 18 हैं। मंदिर के चारों तरफ जो जंगल है उसमें 18 पवित्र पहाड़ हैं। आप जानते हैं, यह 18 की संख्या हिन्दू संस्कृति में बहुत महत्वपूर्ण है। तो मुझे लगता है यह दैव योग है।
दूसरी बात, कालीकट के सामुरिन लोग पुर्तगाल के आक्रमण के विरुद्ध लड़े थे। पुर्तगालियों को हराने वाले राजा मानविक्रम सामुरिन थे। लेकिन इन कम्युनिस्टों ने इसका सारा श्रेय एक मुसलमान कुंजालि मुरैक्कार को दे दिया। पूरा सामुरिन क्षेत्र हिन्दू संस्कृति का गढ़ है। वहां एक तलि शिवमंदिर है, जहां पर हाल ही में मुख्यमंत्री के ‘इस्लामो-लेफ्टिस्ट’ दामाद की शह पर उस पूरे क्षेत्र का इस्लामी नामकरण करने की कोशिश चली। इसके विरुद्ध कालीकट की आम हिन्दू जनता ने संघर्ष प्रारंभ किया है। वहां आम जनता के साथ ही प्रबुद्ध वर्ग के लोग, साहित्यकार आगे आ रहे हैं। यह कोई हिन्दू-मुस्लिम वाला विषय नहीं है, बल्कि यह यहां की संस्कृति को बदलने के षड्यंत्र से जुड़ा है। इसी के विरुद्ध यह संघर्ष खड़ा हो रहा है। इस बदलाव को तेजी से लाने का दायित्व केरल के आध्यात्मिक नेतृत्व के पास है। संन्यासी हैं। इन सबको आगे आना होगा। केरल के हिन्दू सामाजिक संगठनों, जैसे एनएसएस, एसएनडीपी आदि को भी सामने आने की आवश्यकता है। आदि शंकराचार्य की, परशुराम की भूमि को वैसा ही गरिमामय बनाने के लिए राजनीतिक ही नहीं, सामाजिक और आध्यात्मिक संगठनों को भी अपनी भूमिका निभानी होगी।
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