पश्चिम बंगाल : बारिश ने तोड़ी किसानों की कमर, 70 फीसदी मक्के की फसल बर्बाद

'पश्चिम बंगाल के किसान केंद्र सरकार की किसान सम्मान निधि के लाभ से भी वंचित हैं क्योंकि ममता बनर्जी की सरकार ने आज तक किसानों की सूची ही केंद्र को नहीं दी है।'

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WEB DESK

पश्चिम बंगाल में बीते माह गर्मी होने के बजाय रुक-रुक कर बारिश होने से राज्य के विभिन्न हिस्सों में बोई जाने वाली मक्के की फसल को भारी नुकसान पहुंचा है। इस बार बारिश का बहुत अधिक असर आम की फसल पर नहीं पड़ा है, क्योंकि मालदा और मुर्शिदाबाद के लंगड़ा सहित अन्य प्रजाति के आम के पेड़ों पर मंजर बारिश से पहले ही मजबूत हो चुकी थी।

वैसे पूर्वी भारत के बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में अप्रैल से मई महीने के बीच आम के पेड़ों पर मंजर आते हैं और जुलाई-अगस्त तक आम बड़े होकर पकने लगते हैं, लेकिन पश्चिम बंगाल में दो महीने पहले ही मंजर आ जाते हैं। राज्य के मुर्शिदाबाद और मालदा जिले में विशेष तौर पर आम की खेती होती है। यहां मालदा और मुर्शिदाबाद के लंगड़ा सहित अन्य प्रजाति के आम के पेड़ों पर फरवरी महीने से ही मंजर आने शुरू हो जाते हैं और अप्रैल महीने तक आम बड़े हो जाते हैं। इसलिए इस बार बारिश का बहुत अधिक असर आम की फसल पर नहीं पड़ा है, लेकिन मक्का की फसल को भारी नुकसान पहुंचा है।

खड़गपुर क्षेत्र में मक्के की खेती करने वाले किसान बबलू सिकदर बताते हैं कि अप्रैल महीने में पहले कभी भी बारिश नहीं होती थी, लेकिन इस बार अप्रैल के मध्य से लगातार हो रही बारिश की वजह से मक्के की फसल खेत में ही सड़ गई। इसी तरह ललिता भुइयां की भी फसल बर्बाद हो गई है। ललिता कहती हैं कि राज्य सरकार की ओर से कृषक बंधु परियोजना के तहत फसल बीमा का प्रावधान तो है, लेकिन उन्होंने कभी करवाया नहीं। इसलिए इस बार भी उसकी जरूरत महसूस नहीं की।

मालदा में आम की खेती करने वाले मिलन बांस कहते हैं कि आम की फसल को तो बहुत अधिक नुकसान नहीं हुआ है, लेकिन लगातार बारिश की वजह से अन्य फसलों को नुकसान हुआ है। वह सब्जियों की खेती करते हैं, जिसमें आलू और पटल शामिल हैं। इस बार लगातार बारिश की वजह से इन सब्जियों की फसल खेत में ही सड़ने लगी है। वह कहते हैं कि वैसे भी खेती करके लागत भी निकाल पाना मुश्किल हो जाता है। इस बार बारिश की वजह से और अधिक दुर्दशा है।

सरकार पर किसानों की अनदेखी का आरोप
राज्य कृषक कांग्रेस के अध्यक्ष तपन दास कहते हैं कि किसानों के मुद्दों को लेकर कोई भी सरकार सजग नहीं है। उन्होंने कहा कि बंगाल ही नहीं, पूरे देश के किसानों को लगातार बारिश की वजह से नुकसान हो रहा है, लेकिन केंद्र सरकार हो अथवा राज्य सरकार, किसी को कोई चिंता नहीं। खासतौर पर ममता बनर्जी की सरकार की खामियों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि राज्य में किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य तक नहीं मिलता। मंडी व्यवस्था तो है, लेकिन किसान मंडियों तक पहुंच ही नहीं पाते। बिचौलिए फसल खरीद लेते हैं और तय कीमत से बहुत कम पर।

उन्होंने बताया कि बंगाल में एक क्विंटल आलू उगाने में कम से कम 6.5 हजार रुपये का खर्च आता है, लेकिन राज्य सरकार इसे महज छह हजार क्विंटल के दर से खरीदती है। इससे आलू के किसानों को लागत भी नहीं मिलती। बिचौलियों के पड़ जाने की वजह से और कम कीमत मिलती है। इसी वजह से बंगाल में आलू के कई किसानों ने खुदकुशी कर ली। आम के फसलों को लेकर पूछे गए सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि बंगाल के केवल दो जिलों मालदा और मुर्शिदाबाद में आम की खेती अधिक होती है। इस बार लगातार बारिश की वजह से बहुत अधिक नुकसान की संभावना इसलिए कम है, क्योंकि बारिश होने तक आम बड़े हो चुके थे।

भाजपा किसान मोर्चा की नेत्री श्रीरूपा मित्रा चौधरी कहती हैं कि पूरे देश के किसानों को केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी किसान सम्मान निधि का लाभ मिल रहा है। उन्हें साल में तीन बार दो-दो हजार रुपये मिलते हैं, लेकिन पश्चिम बंगाल के किसान इससे विगत कई सालों से वंचित हैं। आज तक ममता बनर्जी की सरकार ने किसानों की सूची ही केंद्र को नहीं दी। काफी आंदोलन करने के बाद सरकार इसके लिए तैयार हुई थी कि वह किसानों की सूची देगी, लेकिन आज तक यह बात केवल कागजी रह गई है।

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