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बौद्ध दर्शन की प्रासंगिकता

- बुद्ध ने सभी प्रश्नों का बारीकी से तार्किक एवं मानव मूल्यों के आधार पर अध्ययन किया और उनका समाधान खोजने की कोशिश की I

by WEB DESK
May 5, 2023, 10:22 am IST
in मत अभिमत
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लेखक – देवराज सिंह

असिस्टेंट प्रोफेसर, राजनीतिक विज्ञान विभाग, गार्गी कॉलेज दिल्ली विश्वविधालय, दिल्ली

विश्व के प्राचीन इतिहास का अगर हम अध्ययन करे तो हम पाएंगे कि सभी जगह समाज के अंदर सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक कुछ न कुछ समस्याएँ थी I मानवता, मूल्यों, आदर्शो व नैतिकता का स्तर दिन प्रति गिर रहा था I उस काल, समय, परिस्थिति एवं वातावरण की मांग के अनुरूप एशिया महादीप में 563 ई० पू० भारत में तथागत महात्मा भगवान् बुद्ध का जन्म हुआ I बुद्ध विश्व की समस्याओं का बारीकी से अध्ययन किया तथा उनके समाधान के नियम या मार्ग बताये, जिनको आदर्श मानकर विश्व के अनेक देशों ने उन्हें अपना लिया I इसी आधार पर डॉ. बी आर अम्बेडकर ने तथागत बुद्ध को दुनिया का प्रथम समाज सुधारक कहा है I

बुद्ध के समय में भारतीय समाज बहुत सी समस्याओं से पीड़ित था इन समस्याओं ने बुद्ध का ध्यान अपनी और आकर्षित किया I आगे चलकर इन समस्याओं के समाधान के रूप में महात्मा बुद्ध के सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक दर्शन का विकास हुआ I आधुनिक विचारक अरविन्द घोष एवं विवेकानंद ने भी सेनफ्रांसिस्को में भगवान बुद्ध को प्रथम हिन्दू धर्म सुधारक कहा है I महात्मा गाँधी ने भी श्रीलंका में अंतर्राष्ट्रीय बोद्ध सम्मेलन में बुद्ध को हिन्हू धर्म सुधारक माना I गुरु रविन्द्रनाथ टेगोर पर भी बुद्ध के अध्यात्मिक, भौतिकता एवं प्रक्रति प्रेम का प्रभाव पड़ा I यह बात सही है कि बुद्ध से प्रभावित होकर हिन्दू धर्म में बहुत से सुधार हुए I  डॉ. आंबेडकर एवं अनेक ऐसे विचारकों के लिए मार्ग प्रशस्त किया, जिससे उन्होंने अपने विचारों में आध्यात्मिकता एवं भौतिकता को एक साथ जोड़कर विश्व के कल्याण की बात कही है I जब तक इन दोनों विचारो में तालमेल नहीं होगा तब तक कोई भी समाज अपना सम्पूर्ण विकास नही कर सकता है I

बुद्ध पूर्णिमा का महत्व महात्मा बुद्ध के जीवन की तीन महत्वपूर्ण घटनाओ के साथ जुड़ा हुआ हे, पूर्णिमा के दिन ही बुद्ध के जन्म का होना, उनका ज्ञान प्राप्त करना और उनकी म्रत्यु का होना I बुद्ध को एक ही दिन जन्म, ज्ञान और म्रत्यु का होना बुद्ध पूर्णिमा के साथ जुडी हुई महत्वपूर्ण घटनाये है I

महात्मा बुद्ध का जन्म वैशाखी पूर्णिमा को कौशल जनपद के प्रधान नगर कपिलवस्तु (गणराज्य) के शाक्य वंश के राज परिवार में हुआ था, उनके पिता का नाम शुदोधन था तथा माता का नाम महामाया था, जन्म देने के 7 वे दिन बाद ही आप की माँ की म्रत्यु हो गयी थी, आप का लालन पालन विमाता रानी प्रजावती ने किया तथा आप का बचपन का नाम शिदार्थ रखा गया I बुद्ध बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी थे तथा विभिन्न विषयों की  शिक्षा ग्रहण करने के बाद 19 वर्ष की आयु में आप का विवाह देवदह की राजकुमारी यशोदरा के साथ किया गया I बुद्ध प्रारम्भ से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी थे I बुद्ध के जीवन में जब वे राजमहल में रह रहे थे तब अपने भ्रमण के समय चार व्यक्तियों को देखा बुड्डा, बीमार, शव एवं सन्यासी, इन घटनाओं  ने बुद्ध के जीवन पर गहरा प्रभाव डाला I  बुद्ध का मन भौतिकवाद जिन्दगी से विचलित होने लगा था तथा उन के मन में सामाजिक जीवन के बहुत से प्रश्न उत्त्पन्न होने लगे थे, उन प्रश्नों के उत्तरों की तलाश में उन्होंने 29 वर्ष की आयु में राज्य एवं परिवार का त्याग कर दिया, अपने जीवन के अंतिम समय तक वे लोटकर घर वापिस नही देखा I लेकिन इस सम्बन्ध में डॉ. अम्बेडकर जी के विचार थोडा अलग है, उन्होंने अपनी पुस्तक “The Buddha and His Damma” में बुद्ध के ग्रह त्याग का एक अलग कारण बताया है I वे कहते है कि संघ की शर्तों के अनुसार जो प्रतिज्ञाएँ ली गई थी उनके अनुसार बुद्ध ने अपना अलग मत रखा, जो कि संघ के निर्णय के विरुद्ध था I इसी लिए बुद्ध ने संघ के निर्णय के अनुरूप, अपना ग्रह त्याग किया I

बुद्ध के द्वारा जो उपदेश या विचार व्यक्त किये गये वे आम जनता की भाषा पाली में दिए गये, क्योकि पाली भाषा आम जनों में बोली जाने वाली भाषा थी बुद्ध अच्छी तरह से जानते थे कि अपने विचारों को किस माध्यम से जनता के बीच लाया जाये और उनकी उपयोगिता बढ़ायी जाये विचारों का संकलन त्रिपटक में किया गया है, जो तीन भागो में बटे हुए है – विनयपिटक, सुत्तपिटक एवं अभिधम्मपिटक I

कबीर की तरह से ही बुद्ध ने आम जन की जो भाषा थी उसी के माध्यम से लोगो के बीच सम्वाद किया I किसी भी विचार की सफलता उस विचार की ज्यादा से ज्यादा लोगो के बीच पहुँचे इस पर निर्भर करता है I मध्यम मार्ग की बात महात्मा बुद्ध ने कही इस के आधार पर ही अपने लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है I

बुद्ध के समय की सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक परिस्थितियाँ का अध्ययन करना अनिवार्य है I उस समय के समाज में भयंकर असमानता व्याप्त थी लोग स्वार्थी, जाति, पंथ, हिंसा, महिलाओं की दयनीय दशा, धार्मिक आडम्बर, कर्मकांड, उंच-नीच, छुआ-छूत, चोरी,  नैतिकता, आदर्श, मूल्य, मानवता का स्तर गिर चुका था, अमीर-गरीब के बीच अंतर तथा राजनीतिक वैमनस्यता व्याप्त थी I बुद्ध के मष्तिस्क में ऐसे बहुत सारे प्रश्न थे जिनपर विचार करने पर मजबूर कर दिया था I ऐसा भी नही है कि बुद्ध से पहले इन विषयों पर किसी ने विचार न किया हो I भारतीय परंपरा में सम्वाद का स्थान हमेशा से रहा है, श्रमण स्कूल के विचारक इसी श्रेणी में आते है, बुद्ध के समकालीन 6 तीर्थकरों के नाम बुद्ध तथा जैन ग्रंथो में मिलते है – पूर्णकाश्यप, अजित केशकम्बल, प्रकुन्ध कात्यायन, मक्खलि गोसाल, संजय येलतिपुट एवं निगंठ नाथपुत्त I बुद्ध ने उस समय समाज में व्याप्त भेदभाव असमानता व वैर-भाव के खिलाफ समानता, स्वतंत्रता एवं बन्धुता के विचार को जन्म दिया I समानता, स्वतन्त्रता व बंधुत्व की बात बुद्ध के समय से ही थी, इसीलिए डॉ. आंबेडकर ने कहा था की मैंने समानता, स्वतन्त्रता एवं बंधुत्व का विचार आधुनिक यूरोप की क्रांति से नहीं बल्कि मैंने यह बुद्ध के विचारों से लिया है I

बुद्ध ने सभी प्रश्नों का बारीकी से तार्किक एवं मानव मूल्यों के आधार पर अध्ययन किया और उनका समाधान खोजने की कोशिश की I अंधविश्वास के अंधकार ने वैराग्य तथा निव्रती की सुन्दरता को ढक लिया था उसे पुन: स्थापित किया I बुद्ध के धर्म का आधार आचार है – शील, समाधि एवं प्रज्ञा I ये बुद्ध धर्म के तीन तत्व है शील से काया की शुधि, समाधी से चित्त की शुधि तथा प्रज्ञा से अज्ञानता का नाश होता हैI  बुद्ध ने एक ऐसे धर्म को प्रतिष्ठित किया जो युक्ति व तर्क पर आधारित था, जिसमें व्यक्ति बिना प्रोहित व देवता के अपना मोक्ष स्वयं प्राप्त करने में सक्षम होता है I

बुद्ध ने अपने विचारों को तीन स्तरों में बांटा है, 1 विचार की उत्त्पति, 2.वर्तमान स्थिति 3. समाधान I ये विचार बुद्ध के दर्शन में देखने को मिलते है I डॉ. आंबेडकर ने भी अपने विचारों को इसी तरह से तीन स्तरों में बांटकर अध्ययन किया है I बुद्ध ने उस समय के समाज का अध्ययन करके पाया की इस संसार में चार सत्य है, इन्हें बुद्ध के चार आर्य सत्य के नाम से जाना जाता हे I बुद्ध ने सबसे पहले इन्ही चार आर्य सत्यों की खोज की – 1. संसार दुखमय है, 2. दुख उत्पन्न होने का कारण है, 3. दुख का निवारण संभव है, 4. दुःख निवारण का मार्ग है I

बुद्ध धर्म के तीन रत्न है – बुद्ध, धर्म एवं संघ I बुद्ध ने अपने कार्यों को स्थाई बनाने के लिए संघ की स्थापना की, क्योंकी शाक्य लोग गणतन्त्र में विश्वास करते थे जो लोकतंत्र का मूल आधार है I बुद्ध ने भी अपने पंथ या अनुयायियों को व्यवस्थित रखने के लिए संघ की स्थापना लोकतान्त्रिक तरीके से की थी, संघ के द्वारा जो भी निर्णय लिए जाते थे वे सभी को मान्य थे, इसलिए हम कह सकते हैं कि संघ निर्णय लेने वाली सर्वोच्च संस्था थी इसी की वजह से बोध धर्म लम्बे समय तक चला I

बुद्धम शरणम गच्छामि I

धम्मम शरणम गच्छामि I

संघं शरणम गच्छामि I

 

बुद्ध ने अष्टांग मार्ग के द्वारा सभी दुखों से छुटकारा पाना तथा निर्माण या मोक्ष को प्राप्ति की बात कही है – अष्टांग मार्ग को बुद्ध ने तीन भागो में विभक्त किया है –

तीन भाग –

I.        प्रज्ञा – द्रष्टि, संकल्प एवं वाणी |

II.      शील – कार्य एवं आजीविका I

III.     समाधि – व्यायाम, स्म्रति एवं समाधि I

अष्टांग मार्ग –

1.   सम्यक द्रष्टि – चार आर्य सत्य है I

2.   सम्यक संकल्प – मानसिक एवं नैतिक विकास की प्रतिज्ञा I

3.   सम्यक वाणी – अपनी वाणी पर नियन्त्रण रखना I

4.   सम्यक कार्य – गलत कार्यो को न करना I

5.   सम्यक आजीविका – कोई गलत व्यवसाय न करना I

6.   सम्यक व्यायाम – स्वस्थ रहना I

7.   सम्यक स्म्रति – स्पष्ट ज्ञान को परखने की मानसिक योग्यता I

8.   सम्यक समाधि – समाधि के माध्यम से निर्माण प्राप्ति I

व्यक्ति के आचार की शुद्धता के  लिए बुद्ध ने पंचशील के सिद्धान्त दिए ये पांच नियम थे I महत्मा गाँधी के विचारों पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा उन्होंने अपने जीवन में उनको अंगीकार किया और वर्तमान समय में उसकी प्रासंगिकता को पहचाना , डॉ अम्बेडकर भी उनके पंचशील सिधांत में विश्वास करते थे I बुद्ध द्वारा अपने अनुयायिओं को दिया गया पंचशील सिद्धांत आज समाज के लिए बहुत जरूरी है। देश में लगातार बढ़ रही आपराधिक घटनाओं को रोकने सरकारों ने कई कानून बनाए लेकिन वह समाज में बढ रही आपराधिक घटनाओं पर रोक लगाने में नाकाम साबित हो रही है। यदि समाज में भगवान बुद्ध के पंचशील सिद्धांत का प्रचार प्रसार किया जाए तो देश और समाज में हो रही अपराधिक घटनाओं में कमी आएगी। महात्मा बुद्ध ने समाज में बढ़ती अपराधिक प्रवृत्ति को रोकने के लिए ही पंचशील सिद्धांत की स्थापना की थी। जो इस प्रकार थे – 1. अस्तेय, 2. अहिंसा, 3. ब्रह्मचर्य, 4. सत्य, 5. मादक द्रव्य विरति I

भगवान बुद्ध ने दुनिया के लोगों को अहिंसा, दया, करुणा का संदेश दिया है। बाबा साहब डॉ बी आर आंबेडकर ने बुद्ध के विक्षरों को स्पष्ट करते हुए कहा  था “सभी मानव प्राणी समान हैं। मनुष्य का मापदंड उसका गुण होता है, जन्म नहीं। जो चीज महत्त्वपूर्ण है, वह है उच्च आदर्श, न कि उच्च कुल में जन्म। सबके प्रति मैत्री का साहचर्य व भाईचारे का कभी भी परित्याग नहीं करना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति को विद्या प्राप्त करने का अधिकार है। मनुष्य को जीवित रहने के लिए ज्ञान विद्या की उतनी ही आवश्यकता है, जितनी भोजन की। अच्छा आचारणविहीन ज्ञान खतरनाक होता है। युद्ध यदि सत्य तथा न्याय के लिए न हो, तो वह अनुचित है। पराजित के प्रति विजेता के कर्तव्य होते हैं।

किसी भी व्यक्ति के विचार उस काल के वातावरण, समय एवं परिस्थितियों की उपज होते है I  बाबासाहब ने दुःख के निराकरण के लिए पंचशील के आचरण को महत्वपूर्ण बताया। भगवान बुद्ध के पंचशील में निम्नलिखित बातें आती हैं :-

1.   किसी जीवित वस्तु को न ही नष्ट करना और न ही कष्ट पहुंचाना।

2.   चोरी अर्थात दूसरे की संपत्ति की धोखाधड़ी या हिंसा द्वारा न हथियाना और न उस पर कब्जा करना।

3.   झूठ न बोलना।

4.   तृष्णा न करना।

5.   मादक पदार्थों का सेवन न करना।

डॉ. आम्बेडकर “मानवता के लिए केवल आर्थिक मूल्यों की ही आवश्यकता नहीं होती, उसके लिए आध्यात्मिक मूल्यों को बनाए रखने की आवश्यकता भी होती है। स्थाई तानाशाही ने आध्यात्मिक मूल्यों की ओर कोई ध्यान नहीं दिया और वह उनकी ओर ध्यान देने की इच्छुक भी नहीं है। मनुष्य का विकास भौतिक रूप के साथ-साथ आध्यात्मिक रूप से भी होना चाहिए।” बुद्ध के विचारो को ध्यान में रखते हुए भारतीय संविधान में राज्य के नीति निर्देशक तत्वों में कल्याणकारी राज्य के विचार को स्थान दिया गया है I

बुद्ध के अनुसार यज्ञ का अर्थ है धन की जिसको आवश्यकता है उसे दिया जाये I दुःख अनुभूति का अर्थ है जिस समय मुझे दुःख होता है उसी समय दूसरों को भी दुःख का अनुभव हो या दुःख की संवेदना हो I दुःख विश्व व्यापी है I संघ में बीमार भिक्छुओ की सेवा बुद्ध स्वयं किया करते थे I लोग दुसरे लोगो के दुखो की चिंता भूल गये थे, तब बुद्ध ने लोगो के दुखो के समाधान के लिए ज्ञान प्राप्त किया I एक राजा का कर्तव्य है जनता व् राज्य की सुरक्षा करना है I वह अपने राज्य की जनता, जीव-जन्तु पेड-पोधे सभी का संरक्षण करे I

समरसता के अंतर्गत जाति-प्रथा, ऊंच-नीच सभी को ख़त्म कर देना चाहिए I ब्रह्मभाव, मैत्री, करुणा, जो सुधर नही सकता उसकी उपेक्षा करनी चाहिए I बुद्ध से एक बार एक ब्राह्मण के साथ प्रश्न-उत्तर होते है I ब्राह्मण कहता है हम ब्रह्मा के मुख से पैदा हुए है हम उच्च है, इसके उत्तर में बुद्ध कहते है ब्राह्मण महिला किस मार्ग से बच्चे को जन्म देती है आप को पता है I बुद्ध कहते है कोई भी व्यक्ति जन्म के आधार पर ब्राह्मण, क्षत्रिय, वेश्य एवं शुद्र नहीं होता बल्कि कर्म के आधार पर होता है I

संघ की सामाजिक समरसता गतिविधि – का उद्देश्य भी वही है जिस बेदभाव को खत्म करना बुद्ध का उद्देश्य था I बुद्ध ने लोगों की मानसिकता को बदलने के लिए सम्पूर्ण प्रयास किये, क्यो कि भेद-भाव लोगों की मानसिकता का विषय है I जब तक लोगों के हिर्दय में परिवर्तन नहीं होता तब तक समस्या का पूर्ण समाधान नही किया जा सकता है I इसी विचार को गाँधी जी ने भी महत्व दिया I आज संघ भी इसी विचार के आधार पर समाज मै अपना काम कर रहा है I

वर्तमान में चाइना वाइरस का प्रकोप पूरे विश्व में महामारी के रूप में फेला, कुछ समाचार पत्रो में खबरे भी छपी कि ये वायरस प्राक्रतिक नही है चीन के द्वारा लैब में तैयार किया गया वायरस है जिससे आज सारी दुनिया जूझ रही है I चीन एक बुद्धिस्ट देश है, लेकिन क्या चीन ने बुद्ध के सिदान्तो का पालन किया है या फिर वह अपने आर्थिक हितो के सामने वह बुद्ध के मानवता, मूल्यों, नेतिकता आदर्शो विचारो को भूल गया है ? हम कैसे माने चीन एक बुद्धिस्ट देश है I

आज विश्व में अशांति, आतंक, हिंसा, भय एव युद्ध का वातावरण, महामारी, असमानता, गरीबी, मानवीय मूल्यों का हास, अनैतिकता, लालच, वैमनस्यता एवं चोरी इत्यादि समस्याएँ है I बुद्ध के समय में भी ये समस्याएँ थी बुद्ध ने उस समय उन समस्याओं के समाधान के लिए कार्य किये, समाज के सामने नये सिद्धान्त दिए थे I आज भी ये समस्याएँ है I बुद्ध के विचारो को अपने आचरण में लाकर हम एक बार फिर से शांति पूर्ण मानवता, नैतिकता एवं मूल्यों  पर आधरित समाज की कल्पना कर सकते है तथा अहिसा पर आधारित विश्व में शांति, सद्भ्वना एवं कल्याण की कल्पना कर सकते है I

Topics: National Newsराष्ट्रीय समाचारबौद्ध दर्शन की प्रासंगिकताबौद्ध पूर्णिमाrelevance of Buddhist philosophyBuddhist full moon
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