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लेपाक्षी मंदिर: जमीन से आधा इंच हवा में झूलता स्तंभ, जिसके रहस्य को अंग्रेज भी जानने में रहे असफल

लेपाक्षी मंदिर के हवा में लटके पिलर के रहस्य को जानने के लिए ब्रिटिश इंजीनियर ने की जांच पड़ताल, लेकिन हजार कोशिशों के बाद भी हारकर वापस लौटना पड़ा था।

by Masummba Chaurasia
May 4, 2023, 06:38 pm IST
in भारत, यात्रा
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भारत ऐसे महान मंदिरों की धरती है, जो न सिर्फ अपनी अनूठी वास्तुकला और पौराणिक इतिहास के लिए जाने जाते हैं, बल्कि रहस्यों से भी भरे होते हैं, जो इन्हें अन्य मंदिरों से अलग बनाते हैं। ऐसा ही एक मंदिर आंध्र प्रदेश के अनंतपुर में स्थित है, ज‍िसके रहस्‍य को सुलझाने में अंग्रेज भी हार गए थे। यह मंदिर भगवान शिव, भगवान व‍िष्‍णु और भगवान वीरभद्र को समर्पित है। इस मंदिर का नाम है ”लेपाक्षी” मंदिर है।

लेपाक्षी मंदिर का इतिहास
मंदिर के निर्माण को लेकर कई मान्याताएं है, माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण अगस्त्य ऋषि ने करवाया था और मंदिर का इतिहास भी रामयणकालीन बताया जाता है। यह भी मान्यता है कि जब लंकापति रावण, माता सीता का हरण करके उन्हें लंका ले जा रहा था, तब पक्षीराज जटायु ने माता सीता की रक्षा के लिए इसी स्थान पर रावण से युद्ध किया था। जिसमें रावण के प्रहार से जटायु घायल होकर यहीं धरा पर गिर गए थे, वहीं बाद में जब श्रीराम माता सीता की खोज करते हुए इस स्थान पर पहुंचे थे, तब उन्होंने जटायू को घायल अवस्था में यहां पाया था, जिसके बाद जटायू ने श्रीराम को पूरा वृत्तांत बताया था, जटायू से सारी बातें सुनकर प्रभु श्रीराम ने करुणा भाव से जटायु को अपने गले से लगा लिया था, और तभी से इस स्थान का नाम ”लेपाक्षी” पड़ गया था ।

हालांकि, वर्तमान दृष्टि से देखें तो मंदिर का निर्माण वर्ष 1533 के दौरान विजयनगर साम्राज्य से संबंधित बताया जाता हैं। मंदिर में स्थापित शिलालेखों से जानकारी मिलती है, कि मंदिर का निर्माण विजयनगर के राजा अच्युत देवराय के अधिकारियों विरूपन्ना और विरन्ना द्वारा करवाया गया था।

लेपाक्षी मंदिर की संरचना
यह मंदिर दो बड़े बाड़ों के अंदर स्थित है। पहले बाड़े में प्रवेश करने के लिए तीन द्वार हैं। मुख्य द्वार पर एक अद्भुत गोपुरम का निर्माण किया गया है। दूसरे बाड़े के केंद्र में उत्तरमुखी मुख्य मंदिर स्थित है। मंदिर में गर्भगृह, अंतराल, मुखमंडप, प्रदक्षिणा मार्ग और कई विशाल स्तंभों वाला एक हॉल भी है। मुखमंडप के पास एक पूर्व मुखी भगवान विष्णु को समर्पित मंदिर स्थित है। वहीं भगवान विष्णु के मंदिर के समक्ष भगवान शिव को समर्पित एक दूसरा मंदिर भी है, जिन्हें पाप विनाशेश्वर के नाम से जाना जाता है। इनके साथ ही तीसरा मंदिर भी है, जिसे पार्वती तीर्थ कहा जाता है।

मंदिर के गर्भगृह में भगवान वीरभद्र विराजमान हैं। वीरभद्र, भगवान शिव का क्रोध का स्वरूप माना जाता है, जो राजा दक्ष के यज्ञ के समय माता सती द्वारा आत्मदाह किए जाने के बाद अवतरित हुए थे। इस मंदिर का मुख्य आकर्षण का केंद्र महामंडप है। यह महामंडप कई स्तंभों से मिलकर बनाया गया है, जिसमें तुंबुरा, ब्रह्मा, पद्मिनी, नारद, दत्तात्रेय, रंभा और नटराज की आकृतियों को उकेरा गया है।

लेपाक्षी मंदिर के रहस्य
लेपाक्षी मंदिर अपने उस एक स्तंभ के लिए विश्वविख्यात है, जो जमीन से आधा इंच ऊपर है, अर्थात हवा में लटका हुआ है। ब्रिटिशर्स के समय में भी कई बार इस मंदिर में स्थित इस ‘हैंगिंग पिलर’ के रहस्य को जानने की कोशिश की गई, लेकिन वे असफल रहे। एक बार ब्रिटिश इंजीनियर ने इस स्तंभ को उसकी जगह से हटाने की कोशिश कि क्योंकि, ऐसा लग रहा था कि इस लटके हुए स्तंभ का मंदिर में कोई योगदान नहीं है, लेकिन जब स्तंभ को हटाने की कोशिश की गई, तब मंदिर के दूसरे हिस्सों में लगे स्तंभों में भी दरारें आने लगीं जिसे देखकर उस अंग्रेज इंजीनियर ने अपनी जांच पड़ताल वहीं रोक दी और हार मानकर वापस चला गया।

इसी के साथ-साथ इस मंदिर में एक पैर का निशान भी स्थित है, जो त्रेतायुग का माना जाता है। कई मान्यताओं के अनुसार यह पैर का निशान भगवान राम का है जबकि कई लोगों का यह भी मानना है कि यह पैर का निशान माता सीता का है।

लेपाक्षी मंदिर को लेकर एक और मान्यता है। इसके अनुसार एक बार वैष्णव यानी भगवान विष्णु के भक्त और शैव यानी भगवान शिव के भक्त के बीच सर्वश्रेष्ठ होने की बहस शुरू हो गई थी, जोकि सद‍ियों तक चलती रही थी। जिसे रोकने के लिए ही अगस्‍त्‍य मुनि ने इस स्‍थान पर तपस्या की और अपनी तपस्या के प्रभाव से उन्होंने उस बहस को समाप्त करवाया था। उन्‍होंने भक्‍तों को यह भी ज्ञात कराया था कि भगवान विष्णु और भगवान शिव एक दूसरे के पूरक हैं। मंदिर के पास ही भगवान विष्णु का एक अद्भुत रूप रघुनाथेश्वर का है। जहां भगवान विष्णु, भगवान शंकर की पीठ पर आसन सजाए हुए स्थापित हैं। यहां विष्णुजी को श‍िवजी के ऊपर प्रतिष्ठित किया गया है, जो रघुनाथ स्वामी के रूप में स्थापित है, इसलिए वह रघुनाथेश्‍वर कहलाते हैं।

लेपाक्षी मंदिर में कैसे पहुंचें ?
लेपाक्षी मंदिर के सबसे पास हिंदूपुर रेलवे स्टेशन है, जिसकी दूरी मंदिर से लगभग 14 किमी है। इसके साथ-साथ मंदिर अनंतपुर, हिंदूपुर और बेंगलुरु से सड़क मार्ग से भी जुड़ा हुआ है। लेपाक्षी मंदिर के लिए परिवहन के अन्य साधन भी आसानी से मिल जाते हैं।

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