साम्राज्यवादी और साम्यवादी विचारों ने भारत और वनवासी क्षेत्र की मूलभावनाओं पर निहित स्वार्थों के कारण पृथकतावादी विचारों को खड़ा कर दिया
गत दिनों नेरी (हिमाचल प्रदेश) में दो दिवसीय राष्ट्रीय परिसंवाद का आयोजन हुआ। इसका विषय था- ‘पश्चिमोत्तर भारत की अनुसूचित जनजातियों का समाज, पर्यावास एवं अर्थव्यवस्था।’ ठाकुर रामसिंह इतिहास शोध संस्थान (नेरी), इतिहास एवं भूगोल विभाग, हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय (शिमला) और अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक अध्ययन केंद्र के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस परिसंवाद में देशभर के विद्वानों ने अपने विचार रखे।
उद्घाटन सत्र की मुख्य अतिथि थीं राज्यसभा सांसद इन्दुबाला गोस्वामी। अध्यक्षता की हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सतप्रकाश बंसल ने। समाजसेवी प्रकाशचन्द शर्मा विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। बीजवक्ता थे सप्त सिंधु देहरा परिसर हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के निदेशक प्रो. नारायण सिंह राव। परिसंवाद में इन्दुबाला गोस्वामी ने कहा कि अनुसूचित जनजातियों का इतिहास गौरवमयी रहा है।
पश्चिमोत्तर भारत की जनजातियों की सामाजिक व्यवस्था समृद्ध रही है, उनकी अर्थव्यवस्थ स्वावलम्बी रही है। परन्तु साम्राज्यवादी और साम्यवादी विचारों ने भारत और वनवासी क्षेत्र की मूलभावनाओं पर निहित स्वार्थों के कारण पृथकतावादी विचारों को खड़ा कर दिया।
अनुसूचित जनजातियों ने देश के स्वतंत्रता संग्राम में अग्रणी भूमिका निभाई है, परंतु विडंबना है कि कभी इतिहास में नहीं पढ़ाया गया। परिसंवाद के समापन समारोह के मुख्य अतिथि थे राज्यसभा सांसद आचार्य सिकन्दर कुमार। आचार्य शशिबाला की अध्यक्षता में आयोजित इस समारोह के विशिष्ट अतिथि थे समाजसेवी विजय अरोड़ा और सतीश कुमार शर्मा। भारतीय इतिहास संकलन योजना के प्रांत अध्यक्ष डॉ़ सूरत ठाकुर विशेष अतिथि थे।
आयोजन सचिव डॉ़ बी़ आऱ ठाकुर ने बताया कि परिसंवाद में बारह राज्यों के 140 प्रतिनिधियों ने पंजीकरण करवाया तथा पांच तकनीकी सत्रों में 57 शोधपत्र प्रस्तुत किए गए। आचार्य सिकन्दर कुमार ने कहा कि पश्चिमोत्तर भारत की जनजातियों की सामाजिक व्यवस्था समृद्ध रही है, उनकी अर्थव्यवस्थ स्वावलम्बी रही है। परन्तु साम्राज्यवादी और साम्यवादी विचारों ने भारत और वनवासी क्षेत्र की मूलभावनाओं पर निहित स्वार्थों के कारण पृथकतावादी विचारों को खड़ा कर दिया।
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