मोहिनी एकादशी : समुद्र मंथन अमृतपान का दिन

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पंकज चौहान

वैशाख मास के शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि को मोहिनी एकादशी कहा गया है। स्कंद पुराण के अवंतिका खंड के अनुसार भगवान श्री विष्णु ने देवासुर संग्राम में मोहिनी का रूप धारण कर एकादशी के दिन अवंतिका नगरी में समुद्र मंथन से निकले अमृत का देवताओं और असुरों में वितरण करते समय असुरों को मोहित कर देवताओं को अमृत पान कराया था। इस दिन देवासुर संग्राम का समापन भी हुआ था। इस एकादशी को भगवान श्री विष्णु के मोहिनी स्वरूप की पूजा-अर्चना की जाती है, इसलिए इस दिन को मोहिनी एकादशी कहा गया है।

प्राचीन काल में एक समय धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से कहा कि हे कृष्ण! वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी का क्या नाम है तथा उसकी कथा क्या है? इस व्रत की क्या विधि है, यह सब विस्तारपूर्वक बताइए। भगवान श्रीकृष्ण ने कहा हे धर्मराज! मैं आपसे एक कथा कहता हूं, जिसे महर्षि वशिष्ठ ने श्री रामचंद्र से कही थी। एक समय भगवान श्रीराम ने महर्षि वशिष्ठ से निवेदन किया कि हे गुरुदेव! कोई ऐसा व्रत बताइए, जिससे समस्त पाप और दु:ख का नाश हो जाए, मैंने अपनी भार्या सीता के वियोग में बहुत दु:ख भोगे हैं।

महर्षि वशिष्ठ बोले- हे राम! आपने बहुत सुंदर प्रश्न किया है, आपकी बुद्धि अत्यंत शुद्ध तथा पवित्र है, यद्यपि आपका नाम स्मरण करने से ही मनुष्य पवित्र और शुद्ध हो जाता है तो भी लोकहित में यह प्रश्न अच्छा है। वैशाख मास में जो एकादशी आती है, उसका नाम मोहिनी एकादशी है, इसका व्रत करने से मनुष्य सब पापों तथा दु:खों से छूटकर मोहजाल से मुक्त हो जाता है। मैं इसकी कथा आपसे कहता हूँ, ध्यानपूर्वक सुनो – सरस्वती नदी के तट पर भद्रावती नाम की एक नगरी में द्युतिमान नामक चंद्रवंशी राजा राज करता था। वहां धन-धान्य से संपन्न व पुण्यवान धनपाल नामक वैश्य भी रहता है, वह अत्यंत धर्मालु और विष्णु भक्त था। उसने नगर में अनेक भोजनालय, प्याऊ, कुएँ, सरोवर, धर्मशाला आदि बनवाए थे, सड़कों पर आम, जामुन, नीम आदि के अनेक वृक्ष भी लगवाए थे। उसके पांच पुत्र थे- सुमना, सद्‍बुद्धि, मेधावी, सुकृति और धृष्टबुद्धि। इनमें से पांचवां पुत्र धृष्टबुद्धि महापापी था, वह पितृ आदि को नहीं मानता था। वह वेश्या, दुराचारी मनुष्यों की संगति में रहकर जुआ खेलता और पर-स्त्री के साथ भोग-विलास करता तथा मद्य-मांस का सेवन करता था। इसी प्रकार अनेक कुकर्मों में वह पिता के धन को नष्ट करता रहता था। इन्हीं कारणों से त्रस्त होकर पिता ने उसे घर से निकाल दिया था। घर से बाहर निकलने के बाद वह अपने गहने-कपड़े बेचकर अपना निर्वाह करने लगा। जब सब कुछ नष्ट हो गया तो वेश्या और दुराचारी साथियों ने उसका साथ छोड़ दिया। अब वह भूख-प्यास से अति दु:खी रहने लगा, कोई सहारा न देख चोरी करना सीख गया।

एक बार वह पकड़ा गया तो वैश्य का पुत्र जानकर चेतावनी देकर छोड़ दिया गया, मगर दूसरी बार फिर पकड़ में आ गया। राजाज्ञा से इस बार उसे कारागार में डाल दिया गया, कारागार में उसे अत्यंत दु:ख दिए गए। बाद में राजा ने उसे नगरी से निकल जाने का कहा, वह नगरी से निकल वन में चला गया। वहाँ वन्य पशु-पक्षियों को मारकर खाने लगा, कुछ समय पश्चात वह बहेलिया बन गया और धनुष-बाण लेकर पशु-पक्षियों को मार-मारकर खाने लगा। एक दिन भूख-प्यास से व्यथित होकर वह खाने की तलाश में घूमता हुआ कौडिन्य ऋषि के आश्रम में पहुँच गया, उस समय वैशाख मास था और ऋषि गंगा स्नान कर आ रहे थे, उनके भीगे वस्त्रों के छींटे उस पर पड़ने से उसे कुछ सद्‍बुद्धि प्राप्त हुई। वह कौडिन्य मुनि से हाथ जोड़कर कहने लगा कि हे मुने! मैंने जीवन में बहुत पाप किए हैं, आप इन पापों से छूटने का कोई साधारण बिना धन का उपाय बताइए। उसके दीन वचन सुनकर मुनि ने प्रसन्न होकर कहा कि तुम वैशाख शुक्ल की मोहिनी नामक एकादशी का व्रत करो, इससे समस्त पाप नष्ट हो जाएंगे। मुनि के वचन सुनकर वह अत्यंत प्रसन्न हुआ और उनके द्वारा बताई गई विधि के अनुसार व्रत किया। हे! श्रीराम! इस व्रत के प्रभाव से उसके सब पाप नष्ट हो गए और अंत में वह गरुड़ पर बैठकर विष्णुलोक को गया। इस व्रत से माया, मोह आदि समस्त बंधन नष्ट हो जाते हैं। संसार में इस व्रत से श्रेष्ठ कोई व्रत नहीं है, इसके माहात्म्य को पढ़ने से अथवा सुनने से ही एक हजार गौदान का फल प्राप्त होता है।

मोहिनी एकादशी का व्रत दशमी तिथि की रात्रि से प्रारंभ हो जाता है। व्रत करने वाले साधक को चाहिए कि वह दशमी तिथि के दिन सात्विक भोजन करें। भोग-विलास की भावना त्यागकर भगवान विष्णु के स्मरण करे। मोहिनी एकादशी के दिन ब्रह्ममुहूर्त में प्रातः जागरण कर नित्यकर्म स्नानादि से निवृत होकर भगवान के समक्ष व्रत का संकल्प ले। मंदिर अथवा पूजा स्थल पर बैठकर पूजा की चौकी पर भगवान श्री विष्णु की प्रतिमा स्थापित करे। भगवान को पवित्र स्नान कराएं तत्पश्चात भगवान का विधि-विधान से पूजन करे और चंदन, अक्षत, जौ, पंचामृत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य और फल आदि भगवान के चरणों में अर्पित करे। विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करे और मोहिनी एकादशी व्रत कथा पढ़े, आरती करके पूजन अर्चन के समय किसी भी प्रकार की भूल के लिए क्षमा याचना करे, तत्पश्चात विसर्जन कर साष्टांग प्रणाम कर पूजा समाप्त करे। एकादशी के दिन श्रीमद्भागवत गीता का पाठ करना बहुत शुभ माना जाता है। संपूर्ण दिन भर व्रत के नियमों का पालन करे और अगले दिन द्वादशी को शुभ मुहूर्त में व्रत का पारण करे।

मोहिनी एकादशी के दिन भगवान श्री विष्णु की आराधना करने से जहां सुख-समृद्धि बढ़ती है, वहीं शाश्वत शांति भी प्राप्त होती है, अत: व्रत-उपवास रखकर मोह-माया के बंधन से मु‍क्त होने के लिए मोहिनी एकादशी बहुत लाभदायी है। संसार में आकर मनुष्य केवल प्रारब्ध का भोग ही नहीं भोगता, अपितु वर्तमान को भक्ति और आराधना से जोड़कर सुखद भविष्य का निर्माण भी करता है, एकादशी व्रत का महात्म्य भी हमें इसी बात की ओर संकेत करता है। मोहिनी एकादशी व्रत समस्त पापों का क्षय करता है तथा व्यक्ति के आकर्षण प्रभाव में वृद्धि करता है। इस व्रत को करने से मनुष्य को समाज, परिवार तथा देश में ख्याति, प्रतिष्ठा प्राप्त होती है। एकादशी व्रत के प्रभाव से मनुष्य को मृत्यु के बाद मिलने वाली नर्क की यातनाओं से छुटकारा मिलता है। मोहिनी एकादशी व्रत परम सात्विकता और आचरण की शुद्धि का व्रत होता है, अत: हमें अपने जीवन काल में धर्मानुकूल आचरण करते हुए मोक्ष प्राप्ति का मार्ग ढूंढना चाहिए।

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