झूठ की पहली परत काल्पनिक बात को समाचार के रूप में पेश करने की होती है और जब ऐसा लगने लगता है कि यह खेल संदिग्ध हो रहा है, तो उस पर झूठ की दूसरी परत चढ़ाई जाती है।
किसी कपोल कल्पित बात को एक समाचार के रूप में प्रस्तुत करना किसी वास्तविक पत्रकार के लिए भले ही किसी पाप की तरह हो, युद्ध नीति के वृहद खेल में यह मात्र एक हथियार है। एक ऐसा सूचनागत आतंकवाद, जिसका इरादा पूरी तरह शत्रुवत होता है।
यह न राजनीतिक प्रचार का विषय है और न अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का।
झूठ की पहली परत काल्पनिक बात को समाचार के रूप में पेश करने की होती है और जब ऐसा लगने लगता है कि यह खेल संदिग्ध हो रहा है, तो उस पर झूठ की दूसरी परत चढ़ाई जाती है। ‘फैक्ट चेक’ इसी दूसरी परत का हिस्सा होता है, जो पहली परत से भी ज्यादा संगीन होती है। इसमें झूठ को सच और सच को झूठ साबित करने का प्रयास भी होता है।
बहुत समय नहीं हुआ जब आपइंडिया न्यूज पोर्टल ने वामपंथी प्रचार करने वाली कुछ वेबसाइटों की फेक न्यूज का भांडा फोड़ा था। आपइंडिया ने साबित किया कि एक के बाद एक ऐसे 10 समाचार झूठे निकले, जो भारी सनसनी बनाकर पेश किए गए थे।
कठुआ का कथित बलात्कार कांड बड़े पैमाने की फेक न्यूज का एक उदाहरण है। एक कल्पित घटना ने पूरे देश और समाज को संदिग्ध बना दिया था। पूरी घटना इतने वीभत्स और नियोजित ढंग से गढ़ी गई थी कि एकबारगी अधिकांश लोग उस पर विश्वास करने लगे थे। अंतत: सत्य सामने तो आया, लेकिन तब तक काफी नुकसान हो चुका था।
आधुनिक युद्ध शैली में इस प्रकार की फेक न्यूज को हाइब्रिड वार का एक हिस्सा माना जाता है। मुख्यत: इसका निशाना वे लोकतंत्र होते हैं, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को स्वीकार करते हैं। ऊपरी तौर पर फेक न्यूज लोकतंत्र में हस्तक्षेप नहीं करता। बल्कि वह यही दावा करता है कि वह तो लोकतंत्र और उदारता आदि मूल्यों की लड़ाई लड़ रहा है।
जबकि वास्तव में इसके ठीक विपरीत हाइब्रिड वार का लक्ष्य होता है कि जिन मतदाताओं के मत से सरकार का निर्माण होता है, उन मतदाताओं को ही एक विशेष दिशा में वोट देने अथवा न देने के लिए मानसिक तौर पर बाध्य कर दिया जाए। उनके सामने मर्यादा, लज्जा जैसी भावनाओं से लेकर लालच, भ्रम और विश्वसनीयता तक की ऐसी दीवारें खड़ी कर दी जाएं, जिन्हें भेद सकना उनके लिए पहले क्षण में संभव न हो सके। जब तक इसका भेद खुलता है, तब तक मतदान हो चुका होता है।
फेक न्यूज समाज में तनाव पैदा करने, यहां तक कि देश की रक्षा प्रणालियों को प्रभावित करने, महामारियों को फैलाने और देश की आर्थिक प्रगति की रफ्तार रोकने तक के लिए इस्तेमाल की जाती है। बिना विचारे दौड़ लगाने वाले मीडिया और उसकी आदतों को भी वे पहचानते हैं, और तद्नुसार रणनीति बनाकर फर्जी खबरें पेश की जाती है। इंटरनेट और सोशल मीडिया ने इन्हीं स्थितियों को और जटिल बना दिया है….
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