जौनसार बावर के इष्टदेव छत्रधारी चालदा महासू महाराज समाल्टा गांव से अपनें अगले पड़ाव दसौऊ पंशगांव की ओर रवाना हो चुकें हैं। समाल्टा गांव में महाराज की विदाई के लिए दुल्हन कि तरह सजाया गया महाराज का मंदिर। अपनें अराध्य की विदाई के दौरान भक्तों की आंखे छलछला गयी और वे फफक कर रो पडे। भक्तों की आंखो से बहती अविरल आंसुओ की धारा अराध्य महाराज से बिछुडने की और उनके प्रति गहरी आस्था को चरितार्थ कर रही थी। समाल्टा गांव से छत्रधारी चालदा महासू महाराज की विदाई में आस्था का जन सैलाब उमड़ पड़ा।
जहां एक ओर समाल्टा क्षेत्र के श्रद्धालुओं में उनके जाने का दुख है तो वहीं दूसरी ओर दसौऊ पंशगांव व खत बमठाड के लोगों में महाराज के आगमन की खुशी साफ देखी जा सकती है। बीते दो दिनो से पूरा जौनसार बावर चारों ओर महासू देवता के जयकारों से गुंजयमान है और चालदा महासू महाराज की विदाई और आगुवानी में डूबा हुआ है। 1 मई 2023 को चालदा महासू महाराज दसौऊ गांव में विराजमान होंगे।
चलायमान हैं छत्रधारी चालदा महासू देवता
जौनसार बावर के कुल आराध्य देवता हैं महासू देवता। महासू देवता चार भाई हैं। जिनमें सबसे छोटे भाई चालदा महासू देवता हैं। चालदा महासू देवता हमेशा चलायमान रहते हैं, जो प्रवास के दौरान पूरे जौनसार बावर, उत्तराखंड, हिमाचल के विभिन्न क्षेत्रों में 1 साल, 6 महीने, 2 साल, ढाई साल, अलग-अलग समय समय पर प्रवास हेतु निकलते रहते हैं। 29 अप्रैल 2023 को महाराज ग्राम समालटा से अपना 18 महीने का प्रवास पूरा कर 1 मई 2023 को अपनें नयें प्रवास स्थल खत दसऊ में विराजमान होंगे और अगले 2 साल तक खत पट्टी दसौऊ पशगांव में ही रहेंगे। छत्तरधारी के साथ चलता है आस्था का जन सैलाब। महासू महाराज के आगमन को जौनसार बावर में बड़ा आयोजन माना जाता है।
पूर्व में यहां विराजमान हुये हैं छत्रधारी चालदा देवता
- 30 नवंबर 2018 को कोटी कनासर गांव में
- 23 नवंबर 2019 मोहना गांव
- 23 नवंबर 2021 को समाल्टा गांव
- 1 मई 2023 को दसऊं गांव में विराजमान होंगे
ये हैं महासू देवता
जौनसार बावर के कुल आराध्य देवता महासू देवता। महासू असल में एक देवता नहीं, बल्कि चार देवताओं का सामूहिक नाम है। स्थानीय भाषा में महासू शब्द ‘महाशिव’ का अपभ्रंश है। चारों महासू भाइयों के नाम बासिक महासू, पबासिक महासू, बूठिया महासू (बौठा महासू) और चालदा महासू हैं, जो कि भगवान शिव के ही रूप माने गए हैं। इनमें बासिक महासू सबसे बड़े हैं, जबकि बौठा महासू, पबासिक महासू व चालदा महासू दूसरे, तीसरे और चौथे नंबर के हैं। बौठा महासू का मंदिर हनोल में, बासिक महासू का मैंद्रथ में और पबासिक महासू का मंदिर बंगाण क्षेत्र के ठडियार व देवती-देववन में है। जबकि, चालदा महासू हमेशा जौनसार-बावर, बंगाण, फतह-पर्वत व हिमाचल क्षेत्र के प्रवास पर रहते हैं। उत्तराखंड के उत्तरकाशी, संपूर्ण जौनसार-बावर क्षेत्र, रंवाई परगना के साथ साथ हिमाचल प्रदेश के सिरमौर, सोलन, शिमला, बिशैहर और जुब्बल तक महासू देवता को इष्ट देव (कुल देवता) के रूप में पूजा जाता है। इन क्षेत्रों में महासू देवता को न्याय के देवता और मंदिर को न्यायालय के रूप में मान्यता मिली हुई है। महासू देवता का मुख्य मंदिर हनोल गांव में स्थित हैं जहां हर साल लाखों श्रद्धालु दर्शनार्थ पहुंचते हैं।
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