कुछ दिनों पहले “पाञ्चजन्य” ने ये खुलासा किया था कि तीर्थनगरी हरिद्वार को ओढ़ रही है हरी चादर, आज ” पाञ्चजन्य” एक और गंभीर विषय की जानकारी दे रहा है कि किस तरह से सनातन नगरी हरिद्वार और उसके आसपास मजार जिहाद का षड्यंत्र चल रहा है।
हिंदुओं की आस्था के प्रतीक कुंभ नगरी हरिद्वार में एक दो नहीं बल्कि कई मजारें खड़ी हो गई हैं। हरिद्वार शहर की तरफ जाने वाली सड़कों के किनारे एकाएक कई मजारें दिखाई देने लगी हैं।
एक मजार तो ज्वालापुर आर्य नगर चौक पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कार्यालय के पास भी अपनी मौजूदगी दिखा रही है, जिसे चंदन पीर बाबा के नाम से जाना जाता है।
ज्वालापुर क्षेत्र में जमालपुर राजकीय विद्यालय के बीच में आलीशान मजार बना दी गई, सोचिए कोई बालक यहां शिक्षा लेने जाएगा या फिर मजार देखने ?
उल्लेखनीय ये भी है कि इन मजारों में मुस्लिम न के बराबर जाते है और हिंदू यहां कथित फकीरों के झांसे में ज्यादा आते है। ये मजार दरगाह बाबा रोशन अली के नाम से है। ऐसे ही नाम की एक और मजार बहादराबाद ज्वालपुर कैनाल रोड पर मिल जाएगी। रोशन अली नाम की एक और मजार पुराने सिंचाई विभाग के दफ्तर परिसर में, रघुनाथ मॉल के सामने अवैध रूप से कब्जा कर बनाई गई है।
रोशन अली शाह नाम की मजारें हरिद्वार जिले में तीन अन्य स्थानों पर हैं। ऐसा कैसे हो सकता है कि एक व्यक्ति को कई जगह दफनाया गया हो? मजार जिहाद का धंधा उत्तराखंड में पनप रहा है जिसकी जद में हिंदू धर्म नगर हरिद्वार भी आ चुका है।
मंगलोर रोड पर सैय्यद शाह गुम्बद वाली मजार, जंगल और सड़क के बीच बना दी गई है। सराय रोड पर भी मकबूल शाह की मजार है।
ज्वालापुर से गुजर रहे नेशनल हाईवे के दोनों तरफ मजारें हैं, एक भूरे शाह की और एक अमीर शाह की। इनमें से एक मजार के बराबर में एक और मजार बना दी गई, ये दूसरा कौन है ? तो बताया गया साहब ये खादिम है, यानि कब्जा कर मजार बनाने वाले की भी मजार है जबकि उसे दफनाया कब्रिस्तान में था।
इन मजारों को देख कर ऐसा लगता है कि योजनाबद्ध तरीके से सिंचाई विभाग की जमीन पर कब्जा करने की नीयत से इन्हें बनाया गया है। हरिद्वार के ज्वालापुर से बाहर कब्रिस्तान है जहां मुस्लिम लोगों को दफनाने की परंपरा है। कोई भी पीर फकीर सड़कों के किनारे दफनाया गया हो ऐसा हरिद्वार के किसी भी नागरिक की याद में नहीं है।
हरिद्वार नगर पालिका निगम का 1916 का एक्ट कहता है कि हरिद्वार पालिका परिधि में कोई गैर हिंदू नहीं रह सकता, न ही कोई गैर हिंदू धार्मिक स्थल बन सकता है। ये एक्ट महामना पंडित मदन मोहन मालवीय और ब्रिटिश हुकूमत के बीच करार के बाद बनाया गया था, जिसे हर गंगा तीर्थ नगरी में लागू किया था और ये एक्ट ऋषिकेश में भी लागू है।
ये बात अब कही जा रही है कि जब ये एक्ट बना था तब पालिका परिधि तीन किलोमीटर थी जो अब बढ़ कर करीब दस किलोमीटर हो गई है लेकिन एक्ट तो परिधि क्षेत्र में ही प्रभावी होगा।
हरिद्वार कुंभ नगरी है और यहां लोग आस्था से आकर गंगा स्नान कर पुण्य कमाते हैं, करोड़ों की संख्या में शिव भक्त कांवड़ लेने आते है। लाखों हिंदू यहां स्नान कर चारधाम की यात्रा करते है। अब सवाल उठता है कि क्या किसी षड्यंत्र के तहत हिंदू तीर्थ नगरी का इस्लामीकरण किया जा रहा है? बड़ा सवाल ये भी है कि यहां मजारें बनती गईं तो शासन प्रशासन क्यों खामोश रहा? खासतौर पर पालिका निगम प्रशासन क्यों खामोश रहा ?
बहरहाल ये सभी मजारें अवैध रूप से सरकार की जमीन पर बनाई गई हैं और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी स्पष्ट कह चुके हैं कि अवैध रूप से बनाई गई सभी मजारें ध्वस्त की जायेंगी।
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