देवभूमि के कण-कण में भगवान का वास होता है। यहां विराजमान देवताओं की दैवीय शक्ति के आगे हर कोई नतमस्तक हो जाता है। आज जाखधार में दहकते अंगारों के बीच जाख देवता का हैरतअंगेज नृत्य देखकर हर कोई अचंभित और अभिभूत हो गया।
गौरतलब है कि रुद्रप्रयाग जनपद के गुप्तकाशी क्षेत्र के अन्तर्गत देवशाल गांव में 14 गांवों के मध्य स्थापित जाखराजा मंदिर में प्रतिवर्ष बैशाख महीने के आरंभ में जाख मेले का भव्य आयोजन किया जाता है। मेला शुरू होने से दो दिन पूर्व से भक्तजन बड़ी संख्या में नंगे पांव, सिर में टोपी और कमर में कपड़ा बांधकर लकड़ियां, पूजा व खाद्य सामग्री एकत्रित करने में जुट जाते हैं। इसके साथ ही भव्य अग्निकुंड तैयार किया जाता है। इस अग्निकुंड के लिए ग्रामीणों के सहयोग से लगभग 100 क्विंटललकड़ियों से कोयला बनाया जाता है।
मेले के पहले दिन बैसाखी पर्व पर रात्रि को अग्नि कुंड व मंदिर के दोनों दिशाओं में स्थित देवी देवताओं की पूजा-अर्चना के बाद अग्नि कुंड में रखी लकड़ियों पर अग्नि प्रज्वलित की जाती है, जो पूरी रात जलती रहती है। जिसकी रक्षा में नारायणकोटी व कोठेडा के ग्रामीण रात्रिभर जागरण करके जाख देवता के नृत्य के लिए अंगारे तैयार करते रहते हैं। अगले दिन जाख भगवान के पश्वा इन दहकते हुए अंगारों के बीच में नृत्य करते हैं। जब जाख भगवान के पश्वा नंगे पांव इन दहकते अंगारों में नृत्य करते हैं तो सभी श्रद्धालुओं के सर श्रद्धा से झुक जाते हैं और जाख महाराज के जयकारे से पूरा मंदिर परिसर गूंज उठता है। साथ ही भगवान की दैवीय शक्ति से भक्तों का साक्षात्कार होता है।
केदार घाटी के लोक संस्कृति कर्मी लखपत सिंह राणा ने बताया कि ऐसी मान्यता है कि जाख देवता यक्ष व कुबेर के रूप में भी पूजे जाते हैं। उनके दिव्य स्वरूप की अलौकिक लीला प्रतिवर्ष अग्निकुंड में दहकते अंगारों पर नृत्य करते हुए दिखती है। अतिवृष्टि एवं अनावृष्टि से बचने के लिए भी जाख देवता की पूजा-अर्चना की जाती है। जिस भक्त को जाखराजा का आशीर्वाद मिलता है। उसकी मनोकामना अवश्य पूर्ण हो जाती है।
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