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बिहू का वैश्विक वितान

पूर्वोत्तर की संस्कृति राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छा रही है। 14 अप्रैल को प्रधानमंत्री की उपस्थिति में 11 हजार से अधिक युवक-युवतियों ने एक साथ बिहू नृत्य व ढोल वादन किया जिसे गिनीज बुक आॅफ वर्ल्ड रिकाडर््स में दर्ज किया गया। पूर्वोत्तर का सांस्कृतिक एवं आर्थिक विकास अब नये मोड़ पर

by अरविंद कुमार राय
Apr 27, 2023, 08:31 am IST
in भारत, असम, संस्कृति
सामूहिक बिहू नृत्य का विहंगम दृश्य

सामूहिक बिहू नृत्य का विहंगम दृश्य

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पूर्वोत्तर के सबसे बड़े राज्य असम की बात करें, तो बिहू असमिया संस्कृति की जीवन रेखा है। बिहू को वैश्विक पहचान दिलाने के लिए स्थानीय समाज लंबे समय से प्रयासरत था। ऐसे में स्थानीय जनमानस की भावना को समझते हुए भाजपानीत राज्य सरकार ने बिहू को विश्व पटल पर पहुंचाने के लिए कदम उठाया। परिणामस्वरूप बिहू के परंपरागत नृत्य और बिहू के दौरान बजाए जाने वाले ढोल को गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज कर लिया गया है।

अष्टलक्ष्मी (पूर्वोत्तर) संस्कृति आज वैश्विक पटल पर इंद्रधनुषी छटा बिखेरते हुए वैश्विक समाज को अपनी ओर आकर्षित कर रही है। पूर्वोत्तर के सबसे बड़े राज्य असम की बात करें, तो बिहू असमिया संस्कृति की जीवन रेखा है। बिहू को वैश्विक पहचान दिलाने के लिए स्थानीय समाज लंबे समय से प्रयासरत था। ऐसे में स्थानीय जनमानस की भावना को समझते हुए भाजपानीत राज्य सरकार ने बिहू को विश्व पटल पर पहुंचाने के लिए कदम उठाया। परिणामस्वरूप बिहू के परंपरागत नृत्य और बिहू के दौरान बजाए जाने वाले ढोल को गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज कर लिया गया है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में 14 अप्रैल को गुवाहाटी के सोरुसजाई स्टेडियम में 11,000 से अधिक बिहुआ और बिहुतियों (युवक-युवतियां) ने बिहू नृत्य और ढोल वादन का विश्व रिकार्ड बनाया। इस रिकार्ड को सिर्फ बिहू नृत्य के नजरिए से देखना सभवत: उचित नहीं होगा, क्योंकि विश्व पटल पर असमिया संस्कृति ने जिस तरह से अपनी छाप छोड़ी, वह सही अर्थों में पूर्वोत्तर की संस्कृति का विशाल प्रकटीकरण था। आज पूरे विश्व में बिहू नृत्य, पहनावा, नृत्य की शैली और गीत-संगीत की चर्चा हो रही है। इससे पूर्वोत्तर के लोग आज फूले नहीं समा रहे।

ढोल की थाप देते युवक

श्री नरेंद्र मोदी ने पूर्वोत्तर की संस्कृति का ब्रांड एंबेसडर बन कर वैश्विक पटल पर इसे उचित स्थान दिलाने की कवायद शुरू की। प्रधानमंत्री ने वैश्विक स्तर पर पहली बार आयोजित योग दिवस के कार्यक्रम में असमिया गमछे को गले में धारण कर उसे अनमोल बना दिया। प्रधानमंत्री के गले में असमिया गमछा देखकर असम ही नहीं, समूचे पूर्वोत्तर के लोगों को यह विश्वास हो गया कि आज हमारी संस्कृति भी विश्व पटल पर स्थापित हो गई है। अष्टलक्ष्मी प्रदेशों में सैकड़ों जनजातियां बसती हैं। पूर्वोत्तर की संस्कृति अपने आंचल में विविधता के अथाह सागर को समेटे गागर में समाई हुई है।

पूर्वोत्तर के आठों राज्य प्राकृतिक सौन्दर्य ही नहीं बल्कि, अपनी विविधता भरी संस्कृति के खजाने से भी ओतप्रोत हैं। प्रत्येक राज्य अपने आंचल में कई-कई स्थानीय संस्कृतियों को समेटे हुए है। देश की आजादी से पूर्व और बाद के समय में भी पूर्वोत्तर की संस्कृति, इतिहास को वह स्थान नहीं मिला, जिसका वह सही मायने में हकदार था। स्थानीय समाज में आज भी इसकी टीस देखने को मिलती है। पूर्वोत्तर के लोग इस बात को लेकर हमेशा केंद्र पर भेदभाव बरतने का आरोप लगाते रहे। वहीं विदेशी शक्तियां इसका लाभ उठाकर स्थानीय भोले-भाले समाज को बरगला कर गलत रास्ते पर चलने के लिए उकसाती रहती थीं।

वर्ष 2014 के बाद लोगों की सोच में तब बदलाव आना आरंभ हुआ जब प्रधानमंत्री पद संभालने के साथ ही श्री नरेंद्र मोदी ने पूर्वोत्तर की संस्कृति का ब्रांड एंबेसडर बन कर वैश्विक पटल पर इसे उचित स्थान दिलाने की कवायद शुरू की। प्रधानमंत्री ने वैश्विक स्तर पर पहली बार आयोजित योग दिवस के कार्यक्रम में असमिया गमछे को गले में धारण कर उसे अनमोल बना दिया। प्रधानमंत्री के गले में असमिया गमछा देखकर असम ही नहीं, समूचे पूर्वोत्तर के लोगों को यह विश्वास हो गया कि आज हमारी संस्कृति भी विश्व पटल पर स्थापित हो गई है। अष्टलक्ष्मी प्रदेशों में सैकड़ों जनजातियां बसती हैं। पूर्वोत्तर की संस्कृति अपने आंचल में विविधता के अथाह सागर को समेटे गागर में समाई हुई है।

अंग्रेजी शासन और स्वतंत्रता के बाद भी नगालैंड, मिजोरम और मेघालय के साथ ही मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, असम आदि राज्यों में बड़े स्तर पर पूर्वोत्तर की संस्कृति पर हमला करते हुए कन्वर्जन का खेल खेला जाता रहा। ईसाई संस्कृति ने स्थानीय संस्कृति को नष्ट कर उस पर कब्जा कर लिया। इन राज्यों में आज एक वाक्य बहुत ही प्रसिद्ध है, ‘आप अंतिम व्यक्ति हैं, बाकी सभी ईसाई मत को अपना चुके हैं।’

दूर से यह बात सही लगती है, लेकिन पास जाने पर पता चलता है कि यह कोरे झूठ के अलावा और कुछ नहीं है। पिछले दिनों सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत मेघालय की दो दिवसीय यात्रा के दौरान सेंग खासी समाज के पदाधिकारियों के साथ पवित्र शिखर, यू लुम सोहपेटबनेंग (ब्रह्मांड की नाभि) के गर्भगृह में प्रार्थना में शामिल हुए। प्रार्थना सेंग खासी के प्रधान पुजारी स्कोर जाला द्वारा की गई। श्री भागवत के दौरे से इस बात का पता चला कि स्थानीय लोग आज भी बड़ी संख्या में अपनी अटूट परंपरा और संस्कृति के साथ जीवन निर्वाह कर रहे हैं। सरसंघचालक को अपने बीच पाकर स्थानीय लोग बेहद उत्साहित हुए।

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