हिन्दू धर्मशास्त्र एवं साहित्य के अनुसार बैसाख मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मां गंगा स्वर्गलोक से देवाधिदेव महादेव की जटाओं में पहुंची थीं, इसलिए इस दिन को गंगा सप्तमी के रूप में मनाया जाता है। बैसाख शुक्ल सप्तमी के दिन ही सृष्टि की रचना की गई थी और अनादि देव ब्रह्मा, विष्णु, महेश के बाद इसी दिन गंगा का जन्म हुआ था। गंगा जन्मोत्सव का वर्णन ब्रह्मवैवर्त पुराण और स्कंद पुराण में व्यापक रूप से किया गया है। गंगा को अनेक हिंदू धर्मग्रंथों में जह्नु पुत्री, विष्णुपदी, जटा शंकरी, नीलवर्णा, महेश्वरी, भागीरथी आदि नामों से भी जाना जाता है। जिस दिन गंगा जी ने स्वर्ग से पृथ्वी के लिए प्रस्थान किया, वह दिन गंगा सप्तमी अर्थात गंगा जयंती और जिस दिन गंगा जी पृथ्वी पर अवतरित हुईं वह दिन गंगा दशहरा के नाम से जाना जाता है।
प्राचीन काल में एक समय भागीरथ नाम के एक महाप्रतापी राजा थे, उन्होंने अपने पूर्वजों को जीवन-मरण के दोष से मुक्त करने के लिए गंगा को पृथ्वी पर लाने का संकल्प किया और इसी उद्देश्य को लेकर उन्होंने कठोर तपस्या आरम्भ की थी। माँ गंगा उनकी तपस्या से प्रसन्न हुईं तथा स्वर्ग से पृथ्वी पर आने के लिए तैयार हो गईं, परंतु उन्होंने भागीरथ से कहा कि यदि वे सीधे स्वर्ग से पृथ्वी पर आएंगी तो पृथ्वी उनका वेग सहन नहीं कर पाएगी और रसातल में चली जाएगी। यह सुनकर भागीरथ सोच में पड़ गए, तब उन्होंने देवाधिदेव महादेव की तपस्या प्रारंभ की। सकल विश्व के दुखों को हरने वाले महादेव प्रसन्न हुए और भागीरथ से वर मांगने को कहा, भागीरथ ने अपना मनोरथ भगवान से कह दिया।
देवाधिदेव महादेव ने देवी गंगा को पृथ्वी पर धीमे वेग से उतारने का वचन राजा भगीरथ को दिया। राजा भगीरथ नें देवी गंगा को पृथ्वी पर आने का निमंत्रण दिया। देवी गंगा स्वर्ग से पृथ्वी पर पूरे वेग से उतरने लगीं तो देवाधिदेव महादेव ने अपने संपूर्ण वेग से उतरती हुई गंगा को अपनी जटाओं में धारण कर लिया तत्पश्चात अपनी जटाओं में से बालों की एक छोटी सी लटा से गंगा को पृथ्वी पर उतरने का मार्ग दिया। गंगा जब पृथ्वी पर आयी तो उनका वेग बिल्कुल शांत था तत्पश्चात गंगा सात धाराओं में प्रवाहित हुईं। राजा भगीरथ अपनी असाधारण तपस्या के बल पर मां गंगा को पृथ्वी पर लाकर अपने पूर्वजों को मुक्ति दिलाने में सफल हुए। राजा भागीरथ के कारण ही मां गंगा को भागीरथी के नाम से पुकारा गया है। युगों-युगों से बहने वाली गंगा की धारा महाराज भगीरथ की कष्टमयी साधना की गाथा कहती है, मां गंगा प्राणीमात्र को जीवनदान ही नहीं अपितु मुक्ति भी देती है।
गंगा सप्तमी के पवित्र एवं शुभ अवसर पर ब्रह्म मुहूर्त में गंगा में स्नान एवं गंगा की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। यदि गंगा में स्नान करना संभव न हो तो गंगाजल पानी में मिलाकर उससे स्नान किया जा सकता है। गंगा स्नान के समय हमेशा हमेशा गंगा की धारा या सूर्य की ओर मुख करके स्नान करें, भगवान सूर्य देव को गंगाजल का अर्घ्य प्रदान करें। स्नान के पश्चात मां गंगा को विनीत भाव से सात प्रकार के पुष्प, फल, वस्त्र, रंग, नैवेद्य अर्पित करें। दूध, दही, शहद, मिश्री और घृत से मां गंगा का अभिषेक करें। मां गंगा को श्रद्धा भाव से नारियल अर्पण करें और गंगा लहरी, गंगा स्त्रोत का पाठ करें, गंगा पूजन के बाद मां गंगा की आरती अवश्य करें। इस दौरान इस मंत्र- ॐ नमो भगवति हिलि हिलि मिलि मिलि गंगे माँ पावय पावय स्वाहा।। का जाप भी करें।
देवाधिदेव महादेव की आराधना इस दिन शुभ फलदायी मानी जाती है। मां गंगा को अपने तप से पृथ्वी पर लाने वाले राजा भगीरथ का स्मरण एवं पूजा अर्चना भी करनी चाहिए। पूजा अर्चना के पश्चात मां गंगा से अपने पितृ पूर्वजों की मुक्ति और शांति की प्रार्थना अवश्य करें। पूजा अर्चना के पश्चात मां गंगा से अपने पितृ पूर्वजों की मुक्ति और शांति की प्रार्थना अवश्य करें। गंगा स्नान के बाद दान का बेहद महत्व है, वह दीपदान, धनदान, अन्नदान, वस्त्रदान जो भी हो श्रद्धानुसार अवश्य ही करना चाहिए। मां गंगा के प्रति आस्था और श्रद्धा से किया गया पूजन अमोघ फल प्रदान करता है, जिससे पापों का क्षय होता है। धर्मशास्त्रों में उल्लेख है कि गंगा में स्नान, नर्मदा के दर्शन और शिप्रा के स्मरण मात्र से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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