आवश्यकता जनसंख्या नीति की

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हितेश शंकर

संयुक्त राष्ट्र ने अपने जनगणना डैशबोर्ड में यह आकलन प्रस्तुत किया है कि इस वर्ष के मध्य तक भारत की जनसंख्या चीन से लगभग 30 लाख अधिक हो जाएगी, यह विचारणीय है। अगर संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों पर विश्वास किया जाए, तो इनके गहरे निहितार्थ सामने आते हैं। सबसे पहला यही कि विश्व के जनसंख्या परिदृश्य में भारत को एक युवा राष्ट्र होने के नाते जो बढ़त प्राप्त है, उसे संवारने और सहेजने पर गंभीरता से विचार करने का समय आ गया है।

भारत में अंतिम बार जनगणना 2011 में हुई थी। 2021 में होने वाली जनगणना कोरोना महामारी के कारण स्थगित कर दी गई थी। इस कारण भारत में जनसंख्या अथवा उसकी वृद्धि दर के बारे में कोई सटीक और अधिकृत आंकड़ा इस समय उपलब्ध नहीं है। फिर भी, संयुक्त राष्ट्र ने अपने जनगणना डैशबोर्ड में यह आकलन प्रस्तुत किया है कि इस वर्ष के मध्य तक भारत की जनसंख्या चीन से लगभग 30 लाख अधिक हो जाएगी, यह विचारणीय है। अगर संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों पर विश्वास किया जाए, तो इनके गहरे निहितार्थ सामने आते हैं। सबसे पहला यही कि विश्व के जनसंख्या परिदृश्य में भारत को एक युवा राष्ट्र होने के नाते जो बढ़त प्राप्त है, उसे संवारने और सहेजने पर गंभीरता से विचार करने का समय आ गया है।

दूसरा यह कि जो बातें जनसंख्या के बढ़ने के संदर्भ में हमेशा कही जाती हैं, जैसे खाद्य की उपलब्धता, रोजगार और आवास आदि की उपलब्धता के प्रश्न, उन पर भी गंभीरता से नए सिरे से विचार करना होगा। अगर संक्षेप में कहा जाए तो भारत को अब एक समग्र जनसंख्या नीति की दिशा में आगे बढ़ना आवश्यक हो गया है।

निश्चित रूप से हाल की अवधि में भारत ने अपने आर्थिक विकास को अधोसंरचना, वितरण की समानता और समग्र मानवीय विकास के स्तरों पर पर्याप्त प्राथमिकता दी है और इसके सुखद परिणाम भी सामने दिखाई देने लगे हैं। लेकिन अब यह प्रश्न भी उत्पन्न होगा कि हमारे लक्ष्य हमारी आवश्यकताओं से ठीक तरह से मेल खा रहे हैं। इसका एक समुचित आकलन एक ऐसी व्यापक योजना और नीति के अंतर्गत ही हो सकता है, जो जनांकिकीय आंकड़ों पर आधारित हो।

जनसंख्या को ठीक से संभाला और संवारा जा सके, तो वह किसी भी राष्ट्र के लिए एक वरदान साबित होती है। अगर वही जनसंख्या किसी भी कारण सेअसंतुलित होने लगती है तो एक परेशानी का कारण बन जाती है। भारत के सामने जनसंख्या के अन्य पक्षों के साथ-साथ जनांकिकीय संतुलन के बनाए रखने की एकअतिरिक्त चुनौती भी है। एक अन्य अतिरिक्त चुनौती जनसंख्याको लेकर होने वाली आंतरिक राजनीति की है। इन सभी से पार पाने का एक हीरास्ता है कि एक समग्र जनसंख्यानीति पर मंथन जल्द से जल्द शुरू हो।

पहली बात भारत को प्राप्त जनांकिकीय बढ़त की है। अभी तक के आंकड़ों के अनुसार चीन की औसत आयु भारत की तुलना में लगभग 10 वर्ष अधिक है। एक युवा राष्ट्र होने के नाते जो बढ़त इस समय भारत को प्राप्त है, सांख्यिकी अनुमानों में उसके मात्र तीन दशक तक बने रहने की बात कही जाती है। मान लिया जाता है कि उसके बाद अधिक आयु वाली जनसंख्या का अनुपात बढ़ने लगता है और युवा शक्ति का अनुपात कम होने लगता है। चीन इस स्थिति का सामना काफी समय से करता आ रहा है।

2016 में चीन ने एक संतान वाली नीति को त्याग दिया था और 2021 के बाद से वह तीन बच्चों के लिए भी प्रोत्साहन देने की नीति पर आ गया है। इसके बावजूद माना यही जा रहा है कि चीन एक व्यापक जनांकिकीय पतन को टालने में शायद ही सक्षम हो सके। जनसंख्या नीति का एक विशेष चरित्र यही है कि उसे अचानक किसी भी दिशा में मोड़ा नहीं जा सकता और किसी भी नीति के परिणाम आने में कम से कम एक पीढ़ी लग जाती है। दूसरे यह कि अगर स्थिति एक बार हाथ से फिसली, तो फिर उसे संभालना असंभव हो जाता है। यूरोप के कई देश अब इसी स्थिति का सामना कर रहे हैं।

अगर जनसंख्या को ठीक से संभाला और संवारा जा सके, तो वह किसी भी राष्ट्र के लिए एक वरदान साबित होती है। और अगर वही जनसंख्या किसी भी कारण से असंतुलित होने लगती है तो एक परेशानी का कारण बन जाती है। भारत के सामने जनसंख्या के अन्य पक्षों के साथ-साथ जनांकिकीय संतुलन के बनाए रखने की एक अतिरिक्त चुनौती भी है। एक अन्य अतिरिक्त चुनौती जनसंख्या को लेकर होने वाली आंतरिक राजनीति की है। इन सभी से पार पाने का एक ही रास्ता है कि एक समग्र जनसंख्या नीति पर मंथन जल्द से जल्द शुरू हो।
@hiteshshankar

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