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जरायम का लंबा जाल

धर्मपाल उर्फ डीपी यादव शराब के अवैध धंधे से अपराध की दुनिया में उतरा था। जल्द ही कानूनी दांव-पेंच, राजनीति का इस्तेमाल, धन-बल और बाहुबल का इस्तेमाल करने का हर हथकंडा अपना कर डीपी यादव पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपराध का पर्याय बन गया था

by अनुरोध भारद्वाज
Apr 25, 2023, 10:16 am IST
in भारत, विश्लेषण, उत्तर प्रदेश
डीपी यादव (फाइल चित्र)

डीपी यादव (फाइल चित्र)

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नकाब उतरता है तो सामने माफिया डीपी यादव उर्फ धर्मपाल खड़ा नजर आता है। डॉन, बाहुबली, हिस्ट्रीशीटर, सफेदपोश अपराधी और न जाने ऐसे कितने बदनाम उपनाम वाला डीपी यादव खुद को बूढ़ा और बीमार बताता है। किसी भी तरह पुलिस रिकॉर्ड से हिस्ट्रीशीट खत्म कराने की मिन्नतें करता है। लेकिन कानून अपने हिसाब से काम करता है।

मास्क से चेहरा ढके एक शख्स छिपते-छिपाते एसएसपी गाजियाबाद के सामने पहुंचता है और गिड़गिड़ाने लगता है। नकाब उतरता है तो सामने माफिया डीपी यादव उर्फ धर्मपाल खड़ा नजर आता है। डॉन, बाहुबली, हिस्ट्रीशीटर, सफेदपोश अपराधी और न जाने ऐसे कितने बदनाम उपनाम वाला डीपी यादव खुद को बूढ़ा और बीमार बताता है। किसी भी तरह पुलिस रिकॉर्ड से हिस्ट्रीशीट खत्म कराने की मिन्नतें करता है। लेकिन कानून अपने हिसाब से काम करता है। उसे जवाब मिलता है कि हिस्ट्रीशीट उसके जीते जी खत्म नहीं हो सकती। डीपी यादव अपने गुरु पूर्व विधायक महेंद्र भाटी की हत्या मामले में सबूतों के अभाव में बरी जरूर हो गया है, लेकिन उसका बेटा विकास उम्रकैद की सजा काट रहा है। डीपी खुद भी कई वर्ष जेल में काट चुका है।

दूध की आड़ में जहरीली शराब की तस्करी
पश्चिमी उत्तर प्रदेश से लेकर दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और मध्य प्रदेश तक कई राज्यों में अपना साम्राज्य फैलाने वाले डीपी यादव की कहानी मुंबइया फिल्मों जैसी है। नोएडा में सेक्टर-18 के पास सरफाबाद गांव है। वह 25 जुलाई, 1948 को इसी गांव में पैदा हुआ था। पिता छोटी सी डेयरी चलाते थे।

डीपी यादव ने राजनीति की शुरुआत कांग्रेस से की थी, लेकिन महेंद्र भाटी की कृपा ने उसे इलाके में नेता की तरह चमका दिया। रोचक बात यह है कि महेंद्र सिंह भाटी की हत्या के बाद उस समय के कई नामचीन नेताओं ने इसका दोष भाजपा पर मढ़ने की कोशिश की थी। इन नेताओं में वीपी सिंह से लेकर शरद यादव और राम विलास पासवान तक शामिल थे।

धर्मपाल उसी डेयरी से दूध उठाता और साइकिल से दिल्ली में घर-घर बांटने जाता था। लेकिन आपराधिक मानसिकता वाले धर्मपाल को दूध से ज्यादा शराब में मुनाफा नजर आया। उसने इलाके में दारू का धंधा करने वाले एक व्यक्ति से दोस्ती गांठी और दूध की आड़ में शराब बेचने लगा। कहा जाता है कि राजस्थान से कच्ची शराब गाजियाबाद मंगाई जाती थी और डीपी यादव उस पर ब्रांड लेबल लगाकर आगे सप्लाई कर देता था। हरियाणा, यूपी और दिल्ली में इस तरह दो नंबर की शराब खूब बिकने लगी। इससे कई गुना लाभ हुआ और धर्मपाल बहुत जल्दी अमीर बन गया। पैसा आया तो उसने नाम बदल कर डीपी यादव रख लिया। 1990 तक वह खुलकर शराब के धंधे में आ गया और सरकारी ठेके लेने लगा।

हरियाणा में 350 लोगों की जिंदगी छीनी
1990 की शुरुआत में हरियाणा में डीपी यादव के एक ठेके से शराब खरीदकर पीने वाले करीब 350 लोगों की मौत हो गई। शराब मिलावटी थी। हरियाणा पुलिस ने डीपी यादव को आरोपी बनाकर आरोप-पत्र भी दाखिल किया, लेकिन तब तक वह इतना राजनीतिक रसूख हासिल कर चुका था कि उसका कुछ नहीं बिगड़ा।

भाटी हत्याकांड
13 सितंबर, 1992 को गाजियाबाद में पूर्व विधायक महेंद्र सिंह भाटी को सरेआम गोलियों से भून दिया गया। इस हमले में भाटी के साथी उदय प्रकाश भी मारे गए। 1980 के दशक में महेंद्र भार्टी जब दादरी के विधायक थे, तो डीपी यादव उनका खास शिष्य हुआ करता था। भाटी ने ही उसे राजनीति का ककहरा सिखाया और बिसरख का ब्लॉक प्रमुख भी बनवाया था। डीपी यादव ने राजनीति की शुरुआत कांग्रेस से की थी, लेकिन महेंद्र भाटी की कृपा ने उसे इलाके में नेता की तरह चमका दिया। रोचक बात यह है कि महेंद्र सिंह भाटी की हत्या के बाद उस समय के कई नामचीन नेताओं ने इसका दोष भाजपा पर मढ़ने की कोशिश की थी। इन नेताओं में वीपी सिंह से लेकर शरद यादव और राम विलास पासवान तक शामिल थे।

महेंद्र सिंह भाटी की हत्या को उस समय के कई नामचीन नेताओं ने जिस तरह राजनीतिक बहस से जोड़ने की कोशिश की, उसका सीधा फायदा हत्या की साजिश रचने के आरोपी डीपी यादव को मिला।

भाटी की हत्या को जिस तरह राजनीतिक बहस से जोड़ने की कोशिश की, उसका सीधा फायदा हत्या की साजिश रचने के आरोपी डीपी यादव को मिला। भाटी हत्याकांड की सीबीआई जांच हुई, जिसमें डीपी यादव की भूमिका होने की बात सामने आई। लंबी सुनवाई के बाद 15 फरवरी, 2015 को अदालत ने उसे उम्रकैद की सजा सुनाई थी। इसके बाद कई वर्ष वह उत्तराखंड की जेल में बंद रहा। बाद में 10 नवंबर, 2021 को नैनीताल उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के फैसले को पलट दिया और डीपी यादव हत्या के केस से बरी हो गया। सर्वोच्च न्यायालय ने भी उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा।

बाहुबली डीपी यादव के पास पैसों और बाहुबल की कमी नही थी। इसका फायदा राजनीति दलों ने खूब उठाया। उसे बुला-बुलाकर पद दिए गए। 1989 में जनता दल से अलग होकर मुलायम सिंह ने समाजवादी पार्टी बनाई तो डीपी को पार्टी में महासचिव का बड़ा ओहदा दे दिया। जब डीपी यादव अपने महेंद्र सिंह भाटी की हत्या में घिर गया, तो भी मुलायम सिंह ने उसे 1993 में टिकट दिया और वह बुलंदशहर से विधानसभा चुनाव जीतने में कामयाब भी रहा।

विधायक बनने के बाद उसके अपराधों की सूची और लंबी होती गई। हत्या की कई वारदातों में उसका खुलकर नाम सामने आया। डकैती, अपहरण और वसूली के भी कई मामले उस पर दर्ज हुए। ज्यादा बदनामी होने पर सपा ने डीपी यादव से किनारा करना शुरू किया तो वह भी मुलायम सिंह यादव से दूर हो गया और उसने बसपा का दामन थाम लिया। मायावती ने उसे 1996 में संभल सीट से लोकसभा चुनाव में उतारा और वह सांसद बन गया। बाद में उसने बसपा से भी रिश्ता तोड़ लिया।

अपनी पार्टी भी बनाई
सपा-बसपा से संबंध खत्म हुए तो डीपी यादव ने 2007 में राष्ट्रीय परिवर्तन दल नाम से अपनी पार्टी बना ली। चुनाव में उसने एक दर्जन से अधिक सीटों पर प्रत्याशी उतारे लेकिन सहसवान सीट से खुद डीपी यादव 109 वोटों से और बिसौली सीट उसकी पत्नी उमलेश यादव जीत सके। हालांकि चुनाव खर्च छिपाने पर 2011 में पत्नी की भी सदस्यता रद्द हो गई। 2009 में डीपी यादव फिर बसपा में शामिल हुआ और बदायूं से मुलायम सिंह यादव के भतीजे धर्मेंद्र यादव के खिलाफ चुनाव लड़ा, लेकिन जीत नहीं सका। 2022 में डीपी यादव और उसकी पत्नी ने बदायूं की सहसवान सीट से दूसरे बेटे कुणाल यादव को विधानसभा चुनाव लड़ाया। लेकिन कुणाल को बुरी हार का सामना करना पड़ा।

बेटी के प्रेमी के कत्ल में बेटे को उम्रकैद

विकास यादव (फाइल चित्र)

डीपी यादव की बेटी भारती यादव अपने दोस्त नितीश कटारा से प्रेम विवाह करना चाहती थी। डीपी यादव के बिगड़ैल बेटे विकास यादव ने एक दिन बहन को अपने प्रेमी से गाजियाबाद में बात करते देख लिया। इसके बाद भारती के प्रेमी नितीश की हत्या हो गई। 17 फरवरी, 2002 को नितीश की अधजली लाश बरामद हुई। पुलिस की जांच शुरू हुई तो डीपी यादव के बेटे विकास यादव और उसके साथियों का गुनाह सामने आया। जिसके बाद पुलिस ने विकास के साथ उसके चचेरे भाई विशाल और सुखदेव पहलवान को गिरफ्तार कर लिया। कई वर्ष केस चला। डीपी यादव गैंग ने मारे गए नीतीश कटारा की मां नीलम कटारा को बहुत धमकाया। गवाहों को आतंकिया गया, लेकिन कोई पीछे नहीं हटा। लंबी कानूनी लड़ाई के बाद आखिरकार 30 मई, 2008 को विशाल, विकास और सुखदेव को अदालत ने उम्रकैद की सजा सुनाई। तब से सभी सलाखों के पीछे कैद हैं।

 

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