नया मीडिया, सोशल मीडिया: क्या नया, क्या सोशल?

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बालेन्दु शर्मा दाधीच

आज से तीन दशक पहले हमें भनक तक नहीं थी कि ऐसा भी कोई मीडिया हमारे जीवन में आएगा जो इतने सारे लोगों से जुड़ा होगा, चौबीसों घंटे हमारे साथ रहेगा और खबर पाने के साथ-साथ खबर देने की ताकत भी देगा। आगे भी नवाचार होंगे और कुछ ऐसे माध्यम सामने आएंगे जिनके बारे में फिलहाल हमें अनुमान नहीं है।

हमारे देखते-देखते सोशल मीडिया ने अपने आपको मीडिया के एक महत्वपूर्ण स्तंभ के रूप में स्थापित कर लिया है। डेटारिपोर्टल की ‘डिजिटल 2023’ रिपोर्ट के अनुसार भारत की करीब-करीब आधी आबादी (लगभग 70 करोड़ लोग) इंटरनेट से जुड़ी है और इनमें से दो तिहाई लोग सोशल मीडिया पर मौजूद हैं। आज से तीन दशक पहले हमें भनक तक नहीं थी कि ऐसा भी कोई मीडिया हमारे जीवन में आएगा जो इतने सारे लोगों से जुड़ा होगा, चौबीसों घंटे हमारे साथ रहेगा और खबर पाने के साथ-साथ खबर देने की ताकत भी देगा। आगे भी नवाचार होंगे और कुछ ऐसे माध्यम सामने आएंगे जिनके बारे में फिलहाल हमें अनुमान नहीं है।

पुराने और नए, हर माध्यम की अपनी विशिष्टताएं हैं। नया मीडिया डिजिटल माध्यमों के जरिए सूचनाओं को उसके प्राप्तकर्ताओं तक पहुंचाने का माध्यम है जबकि सोशल मीडिया से तात्पर्य ऐसे मीडिया से है जिसमें नेटवर्किंग का तत्व निहित है।

सोशल मीडिया का दुरुपयोग भी जमकर हो रहा है। लोगों को गुमराह करने के लिए झूठ, फेक न्यूज और डेटा को प्रभावित करने के लिए मशीनी तौर-तरीकों का प्रकोप आम बात है। यह सूचनाओं का तूफान है जिसे सही ढंग से इस्तेमाल करने के लिए जो एक चीज सर्वाधिक आवश्यक है, वह है आपका और हमारा कौशल, तकनीकी परिपक्वता, नैतिकता और विवेक।

तो यही सोशल मीडिया की सबसे बड़ी ताकत है, यानी लोगों को जोड़ने की क्षमता और सर्वसुलभता। एक व्यक्ति सैकड़ों लोगों से जुड़ा है और ये सैकड़ों लोग भी दूसरे सैकड़ों लोगों से जुड़े हैं। यह सूचनाओं को दुनिया भर में पहुंचाने का अद्भुत नेटवर्क है जो सबको उपलब्ध है। पारंपरिक मीडिया (अखबार, टेलीविजन, रेडियो आदि) में जहां एक संस्थान हजारों या लाखों पाठकों-श्रोताओं-दर्शकों तक सूचना पहुंचाता था, वहीं यहां पर वैसी कोई सीमा नहीं है। यहां एक से अनेक, अनेक से एक और अनेक से अनेक के बीच भी सूचनाओं का आदान-प्रदान संभव है। पारंपरिक मीडिया में इंटरएक्टिविटी बहुत सीमित है किंतु सोशल मीडिया की बुनियादी प्रवृत्ति में ही इंटरएक्टिविटी निहित है। यह इंटरएक्टिविटी सोशल मीडिया को लोकतांत्रिक चेहरा प्रदान करती है।

स्वस्थ लोकतंत्र में सूचनाओं के स्वतंत्र प्रवाह और जन-भागीदारी का बहुत महत्व है जो सोशल मीडिया से जुड़ता है। वह नागरिकों को सूचनाओं से लगातार रखता है, भले ही वे राजनैतिक विषयों व मुद्दों के बारे में जानना चाहें या फिर कार्यक्रमों, आयोजनों तथा घटनाओं के बारे में। यह संवाद का माध्यम भी है जो नागरिकों को किसी भी विषय पर दूसरों के विचार जानने तथा अपनी बात कहने का अवसर देता है।

घर से बाहर निकले बिना भी। यहां पर परस्पर विरोधी पक्ष भी मौजूद हैं जिन्हें अपने-अपने दृष्टिकोण को नागरिकों तक पहुंचाने की सुविधा है। जहां सामान्य जीवन में अनेक समुदाय स्वयं को उपेक्षित तथा हाशिए पर महसूस करते हैं वहीं सोशल मीडिया पर वे भी विमर्श में हिस्सा ले सकते हैं, अपने समुदायों या समूहों का निर्माण कर सकते हैं और अपनी मांगों को भी आगे बढ़ा सकते हैं। यह सार्वजनिक बहस को व्यापकता प्रदान करता है।

बहरहाल, विषय का दूसरा पहलू भी है क्योंकि सोशल मीडिया का दुरुपयोग भी जमकर हो रहा है। लोगों को गुमराह करने के लिए झूठ, फेक न्यूज और डेटा को प्रभावित करने के लिए मशीनी तौर-तरीकों का प्रकोप आम बात है। यह सूचनाओं का तूफान है जिसे सही ढंग से इस्तेमाल करने के लिए जो एक चीज सर्वाधिक आवश्यक है, वह है आपका और हमारा कौशल, तकनीकी परिपक्वता, नैतिकता और विवेक।

(लेखक माइक्रोसॉफ्ट में ‘निदेशक- भारतीय भाषाएं और सुगम्यता’ के पद पर कार्यरत हैं)

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