वेदों में स्वर्ण के विविध संदर्भों से भारत में अनादि काल से सोने के उत्पादन और उपयोग की परम्परा प्रकट होती है। आयुर्वेदिक चिकित्सा में उसके नैनो कणों के उपयोग तक के भी प्रमाण मिलते हैं।
सर्वेगुणा: कांचनम्समाश्रयेत् की प्राचीन उक्ति की व्यंग्यात्मक व्याख्या से परे स्वर्ण की उपादेयता पर विचार करने पर उसके अनेक आयाम प्रकट होते हैं। धन समृद्धिपरक और आभूषणादि में उपयोग से परे मानव स्वास्थ्य, चिकित्सा तथा शारीरिक ओज वृद्धि तक और हमारे सौरमण्डल के इतिहास के अध्ययन तक में भी स्वर्ण की अपूर्व भूमिका प्रकट होती है। वेदों में स्वर्ण के विविध संदर्भों से भारत में अनादि काल से उसके उत्पादन और उपयोग की परम्परा प्रकट होती है। आयुर्वेदिक चिकित्सा में उसके नैनो कणों के उपयोग तक के भी प्रमाण मिलते हैं।
वेद, उपनिषद, ब्राह्मण ग्रंथों और वेदांग आदि प्राचीन वांग्मय में स्वर्ण की प्रचुरता तथा नानाविध उपयोगों के संदर्भ में भारत में स्वर्ण के उपयोग की अति प्राचीन परम्परा के द्योतक हैं। यजुर्वेद में अनेक वस्तुओं के उत्पादन में प्रचुरता के अंतर्गत स्वर्ण अर्थात् हिरण्य के भण्डार में अतुल वृद्धि की कामना की गई है। यथा-
अश्मा च मे मृत्तिका च मे गिरयश्च मे पर्वताश्च मे सिकताश्च मे वनस्पतयश्च मे हिरण्यं च मेऽयश्च मे श्यामं च मे लोहं च मे सीसं च मे त्रपुं च मे यज्ञेन कल्पन्ताम्॥ (यजुर्वेद 18/13)
अर्थात् मेरी खनिज सम्पदा, मूल्यवान पत्थर और मणियां, हीरा आदि रत्न मेरी सुपोषक मिट्टी, गिरि-पर्वत, मेघ और अन्न आदि पर्वतों में होने वाले पदार्थ मेरी बड़ी बालू और छोटी-छोटी बालू, मेरी वनस्पतियां, बड़-बड़े वृक्ष (आम-बड़ आदि) मेरा स्वर्ण तथा सब प्रकार का धन, चांदी, लोहा, शस्त्र, श्यामम्, नीलमणि, लहसुनिया और चंद्रकांतमणि आदि रत्न और लोहा, कान्तिसार, सीसा, लाख, जस्ता और पीतल आदि सब कल्पान्त तक बढ़ते रहें।
भारत में विश्व का सर्वाधिक संचित स्वर्ण
विश्व स्वर्ण परिषद के अनुसार, जब से सोने का खनन प्रारम्भ हुआ, तब से करीब दो लाख टन सोना निकाला जा चुका है, उसमें से भारत में सर्वाधिक 24 हजार टन सोना होने का अनुमान है। इसमें से भारतीय महिलाओं के पास ही 21 हजार टन सोना है। इतना सोना सबसे ज्यादा गोल्ड रिजर्व वाले शीर्ष पांच देशों के बैंकों के भंडार को मिलाकर भी नहीं है।
विदेशी मुद्रा भंडारों के एक महत्वपूर्ण घटक के रूप में भारत सरकार और सरकारी बैकों के पास जमा 760 टन से ज्यादा सोने का भंडार है और वह गोल्ड रिजर्व रखने वाले शीर्ष 9 देशों में है। पिछले चार वर्ष (2018 से 2022) में भारत का गोल्ड रिजर्व 36.8 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ा है। भारत का गोल्ड रिजर्व वर्ष 2000 के मुकाबले दोगुना हो गया है।
स्वर्ण उत्पादन में भारत बहुत पीछे
सोने के उत्पादन में भारत बहुत पीछे है और देश में सोने का उत्पादन घट रहा है। वर्ष 2000 में सोने का उत्पादन 2615 किलो हुआ था। 2007-08 में सोने का 2969 किलो उत्पादन हुआ था। इसके बाद सोने का उत्पादन घटने लगा। वर्ष 2013-14 में 1564 किलोग्राम और 2022 में एक टन सोने का उत्पादन हुआ था।
स्वर्ण के चिकित्सकीय उपयोग
अनेक गंभीर रोगों में प्राचीनकाल से ही स्वर्ण भस्म का उपयोग होता आया है। ईसा पूर्व 3000 प्राचीन चरक संहिता, भेल संहिता आदि में स्वर्ण भस्म और उसके विभिन्न औषधीय उत्पादों में उपयोग सुझाया गया है। आधुनिक अनुसंधानों में भी गठिया, कैंसर आदि अनेक रोगों में स्वर्ण के यौगिकों का प्रयोग किया जा रहा है। स्वर्ण भस्म में स्वर्ण नैनों कणों में विभक्त हो जाने से यह कोशिका और ऊतकों के स्तर पर बहुत अच्छा प्रभाव डालती है। स्वर्ण भस्म को शरीर के सभी अंगों को स्वस्थ्य रखने में प्रभावी माना गया है। यह शारीरिक क्रियाओं की क्षमता को बढ़ाता है।
मानसिक स्वास्थ्य में सुधार से लेकर हृदय रोग, गठिया, ट्यूमर, तपेदिक, दमा, गंभीर संक्रामक रोग, अनेक शिशु रोगों, नेत्र रोग, कैंसर, पक्षाघात, निद्रानाश आदि के उपचार में इसका उपयोग किया जाता है। स्वर्ण भस्म को अवसाद, मस्तिष्क की सूजन और मधुमेह के कारण न्यूरोपैथी जैसी स्थितियों के विरुद्ध भी उपयोग किया जाता है। आधुनिक एलोपेथिक औषधियों में भी स्वर्ण के यौगिक और उसके नैनों रूप में विकसित उत्पादों के अनेक उपयोग किए जा रहे हैं। स्वर्ण को बुझा कर तैयार जल भी शरीर की कान्ति व रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करने वाला माना गया है।
स्वर्ण प्राशन संस्कार
हमारे 16 संस्कारों में स्वर्ण प्राशन प्रमुख संस्कार है। स्वर्णप्राशन संस्कार का उल्लेख कश्यप संहिता और सुश्रुत संहिता में भी है। प्राचीन समय में माता-पिता बच्चे के जन्म के बाद जीभ पर चांदी या सोने की सिलाई से ‘ॐ’ लिखते थे। वर्तमान में हजारों बच्चों पर इसे लेकर एक शोध हुआ। इसमें पता चला कि जिन बच्चों पर यह प्रयोग किया गया, वे अन्य बच्चों की तुलना में स्वस्थ और कहीं अधिक बुद्धिमान थे।
स्वर्ण भस्म को शरीर के सभी अंगों को स्वस्थ्य रखने में प्रभावी माना गया है। इसका उपयोग शारीरिक क्रियाओं की क्षमता बढ़ाने, मानसिक स्वास्थ्य, हृदय रोग, दमा, गठिया, ट्यूमर, तपेदिक, कैंसर आदि के उपचार में किया जाता है।
आयुर्वेदिक स्वर्णप्राशन में शुद्ध स्वर्ण भस्म को ब्राह्मी, वचा आदि से साधित गाय के घी व शहद के साथ ड्रॉप के रूप में तैयार किया जाता है। इसमें कुछ मेध्य टॉनिक मिलाए जाते हैं, जो मेधा शक्ति को बढ़ाते हैं। शोध के अनुसार मस्तिष्क के विकास में स्वर्णप्राशन का विशेष महत्व है। आधुनिक शोध के अनुसार गाय के घी में विद्यमान डीएचए और ओमेगा थ्री फैटी एसिड डेवलपिंग ब्रेन और रेटिनल टिश्यू के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान देता है। शहद व घी शरीर में रोगाणुओं से लड़ने के लिए एंटीबॉडीज की प्रक्रिया को उत्प्रेरित करते हैं। स्वर्णप्राशन अनेक विकृतियों को ठीक कर बीमार या विकृत कोशिकाओं को भी सक्रिय कर देता है।
स्वर्ण में कलियुग का भी निवास माना जाता है। राजा परीक्षित से कलियुग ने अपने लिए स्थान मांगा तो उन्होंने उसे स्वर्ण में निवास की अनुमति दी थी। इसलिए स्वर्ण व्यक्ति में दुर्गुण व विकृति भी लाने वाला माना गया है।
आजकल निवेशक संप्रभु स्वर्ण बांड योजना में भी निवेश कर सकते है। इसमें स्वर्ण खरीदने की आवश्यकता नहीं होती है। इसमें स्वर्ण के मूल्य में वृद्धि का लाभों के साथ स्वल्प ब्याज भी मिलता है। भारत सरकार की ओर से रिजर्व बैंक सॉवरेन गोल्ड बांड जारी करता है। सरकार ने 2015 में सॉवरेन गोल्ड बांड योजना शुरू की थी। आजकल स्वर्ण के म्यूच्यल फण्ड भी हैं। उनमें भी समुचित लाभ मिल जाता है।
सौरमंडल का निर्माण और स्वर्ण
पृथ्वी का केंद्र लौह व निकेल के संकेंद्रण से बना है। स्वर्ण व प्लैटिनम जैसे धातुओं को लौह तत्व द्वारा आकर्षित करने की प्रवृत्ति को देखते हुए ये तत्व पृथ्वी की सतह से बहुत नीचे गहराई में जाने चाहिए थे। लेकिन खगोल भौतिकीविद् वैज्ञानिकों का कहना है कि सौरमंडल के निर्माण के उपरांत जिन अंतरिक्ष पिंडों के स्पर्श रहित आघातों से चंद्र विमंडल वृत्त में 6 डिग्री का झुकाव आया, उन्हीं पिंडों के आघातों के कारण सोना और प्लैटिनम के भंडार पृथ्वी की ऊपरी सतह पर ही संग्रहीत हुए है। अन्यथा इन्हें निकालना असंभव हो जाता। चंद्रमा की कक्षा में यह 6 डिग्री का झुकाव नहीं भी होता, तब भी वर्ष में 12 सूर्यग्रहण व 12 चंद्रग्रहण आते। खगोल भौतिकीविद् कावे पहलेवान, एलसेंड्रो कार्बिडेली आदि ने कम्प्यूटर साइम्यूलेशन के आधार पर स्वर्ण व प्लैटिनम के सतही भंडारों का यह सिद्धांत प्रतिपादित किया है। लेखक-उदयपुर में पैसिफिक विश्वविद्यालय समूह के अध्यक्ष-आयोजना व नियंत्रण
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