वर्ष 2002 में गुजरात में हुए दंगों में से एक नरोदा गाम में हुए दंगों को लेकर विशेष अदालत द्वारा निर्णय आया जिसमें माया कोडनानी एवं बाबू बजरंगी समेत सभी आरोपियों को रिहा कर दिया गया। इस मामले में माया कोडनानी एवं बाबू बजरंगी सहित 86 आरोपी थे। कई लोगों की इनमें से मृत्यु हो गयी है और शेष को कल बरी कर दिया गया। परन्तु बरी करने का निर्णय भी एक दो वर्षों में नहीं बल्कि पूरे 21 वर्षों के बाद आया है।
इनमे सबसे बड़ा नाम माया कोडनानी एवं बाबू बजरंगी का है। माया कोडनानी उस समय गुजरात सरकार में मंत्री थीं। माया कोडनानी पर आरोप था कि उन्होंने घटनास्थल पर जाकर लोगों को भड़काया था, जिसके बाद दंगे आरम्भ हुए थे और उसमें 11 मुस्लिमों की मौत हो गयी थी। यहाँ पर मुस्लिम इसलिए उल्लेख करने की विवशता है क्योंकि कथित निष्पक्ष या लिबरल मीडिया ने दंगों में पीड़ितों का विमर्श पूरी तरह से हिन्दू-मुस्लिम कर दिया है और वह भी ऐसा कि यदि हिन्दू पीड़ित होंगे तो उनकी पीड़ा को नकारने का प्रयास किया जाएगा। यह भी ध्यान देने योग्य है कि वर्ष 2002 में जब गोधरा रेलवे स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस में कारसेवकों वाले डिब्बे को कुछ अपराधियों ने आग लगाकर जला दिया था और जिसमें 58 के लगभग कारसेवक मारे गए थे, उस जघन्य हत्याकांड में मीडिया के एकवर्ग ने कैसी रिपोर्टिंग की थी, यह दुनिया ने देखा था। और अभी हाल ही में जब नरोदा गाम वाला निर्णय आया है, उससे कुछ ही दिन पहले साबरमती एक्सप्रेस में कारसेवकों को जलाए जाने के आरोप में मृत्यु की सजा काट रहे लोगों ने जमानत की याचिका दायर की थी। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने उनकी याचिकाएं खारिज कर दी थीं, मगर जितना शोर अभी माया कोडनानी को अदालत से निर्दोष घोषित किए जाने पर हो रहा है, उसका आधा शोर भी दोषियों के उस दुस्साहस पर नहीं हुआ कि 59 लोगों को जिंदा जलाकर मारने के दोषी कैसे निर्लज्जता से जमानत की मांग कर सकते हैं?
मीडिया में यह खबर सिरे से गायब थी और न ही चर्चा थी। क्योंकि लिबरल मीडिया के लिए गुजरात दंगों का अर्थ मात्र भारतीय जनता पार्टी अर्थात श्री नरेंद्र मोदी की सरकार का विरोध एवं उसके बहाने हिन्दुओं को खलनायक घोषित करने को लेकर है।
और अभी माननीय सर्वोच्च न्यायालय से आठ आरोपियों को जमानत भी मिल गयी है हालांकि मौत की सजा पाए लोगों को जमानत नहीं मिली है। माननीय न्यायालय ने सुनवाई के दौरान कहा कि फांसी की सजा पाए चार दोषियों को छोड़कर बाकी दोषियों को जमानत दी जा सकती है।
Supreme Court grants bail to eight accused persons in 2002 Godhra train coach-burning case. pic.twitter.com/UaHAZnUYRL
— ANI (@ANI) April 21, 2023
परन्तु सेक्युलर मीडिया इस निर्णय पर कभी भी न्यायिक प्रक्रिया पर प्रश्न नहीं उठाएगी क्योंकि ऐसा लगता है जैसे गोधरा काण्ड में मारे गए लोग उनके लिए मायने नहीं रखते हैं। जबकि न्याय के अवसर सभी के लिए समान होने चाहिए!
और वहीं जैसे ही कल माया कोडनानी एवं बाबू बजरंगी समेत शेष लोगों को आरोपमुक्त किया गया था वैसे ही एकतरफा पत्रकारिता करने वाले इस निर्णय के विरोध में आए और यह कहने लगे कि आरोपमुक्त होने के बाद “जय श्री राम के नारे लग रहे थे!”
https://twitter.com/meerfaisal01/status/1649053280499286016
वर्ष 2002 में जो दंगे हुए थे, वह दुखद थे परन्तु दुर्भाग्य की बात यह है कि इन दंगों में सरकार को घेरने के बहाने हिन्दुओं को घेरा गया और हिन्दुओं को हिंसक तथा दंगाई घोषित करने का पूरा प्रयास किया गया।
ऐसा सेक्युलर पत्रकारों द्वारा अधिक किया गया। और जब निर्णय आ रहे हैं जैसे गोधरा काण्ड में आरोपी दोषी साबित हो रहे हैं एवं माया कोडनानी जैसे रिहा हो रहे हैं, तो उन पत्रकारों को पीड़ा हो रही है और वह कह रहे हैं कि यदि किसी ने नहीं मारा तो उन मुस्लिमों को किसने मारा।
राजदीप सरदेसाई ने बहुत ही भावुक होकर ट्वीट किया कि गुजरात में वर्ष 2002 में नरोदा गाम में भड़के दंगों में सभी आरोपियों को छोड़ दिया गया। आज भारतीय न्यायिक व्यवस्था के लिए बहुत ही दुखद एवं शर्मनाक क्षण है, जब साम्प्रदायिक हिंसा के मामले में आरोपियों को सजा नहीं मिली
NO ONE KILLED 11 people in Naroda Gam in Gujarat 2002, court acquits all accused. Yet another sad and shameful moment in the Indian judicial system’s repeated failure to prosecute the guilty in communal violence cases. https://t.co/ItCHf0sO7j
— Rajdeep Sardesai (@sardesairajdeep) April 20, 2023
हालांकि ये वही राजदीप हैं जिन्होनें 29 मार्च 2023 को वर्ष 2008 में जयपुर में हुए बम धमाकों में जिसमें 71 लोग मारे गए थे, उसके आरोपियों को राजस्थान उच्च न्यायालय द्वारा दोषमुक्त किए जाने पर यह प्रश्न किया था कि इन जेल गए लोगों के चार वर्षों का न्याय कौन करेगा? जो लोग मरे उन्हें न्याय कब मिलेगा?
माया कोडनानी के विधानसभा में उपस्थिति के रिकॉर्ड भी हैं, फिर भी कथित सेक्युलर मीडिया इस बात पर जोर देता रहा कि माया कोडनानी ने ही लोगों को भड़काया था।
वर्ष 2002 में गुजरात में भड़के हुए दंगों में कथित सेक्युलर मीडिया की भूमिका जनता ने देखी थी और यह भी देखा था कि कैसे जानबूझकर सरकार को घेरने के बहाने हिन्दुओं की दंगाइयों की छवि गढ़ने की कोशिश की थी और एक समय के लिए वह कहीं न कहीं सफल भी हो गयी थी।
तीस्ता सीतलवाड़ जैसे लोगों की झूठ की कलई भी धीरे धीरे खुली, हालांकि समय लगा परन्तु हुआ। सेक्युलर और कथित लिबरल मीडिया एवं पत्रकारों को यह बर्दाश्त नहीं हो रहा है। कि इतने प्रयासों से जो उन्होंने जो हिन्दू नेताओं की छवि को धूमिल करने का षड्यंत्र रचा था, वह न्यायिक प्रक्रिया के माध्यम से ही धूमिल हो रहा है। इसलिए वह सिलेक्टिव होकर उन भारत की न्यायिक व्यवस्था पर चुनिन्दा मामलों को लेकर दोषारोपण कर रही है। उसे जयपुर धमाकों में रिहा हुए लोगों के 4 वर्ष की चिंता है, मगर माया कोडनानी सहित उन तमाम हिन्दुओं के 21 वर्षों की चिंता नहीं है, जो उन्होंने जेल में काटे।
माया कोडनानी ने आरोपमुक्त होने के बाद यही कहा कि सत्यमेव जयते! परन्तु यह सत्यमेव जयते उन लोगों को कहीं न कहीं चुभ रहा है, जिन्होनें कहीं न कहीं पूरी तरह से एकतरफा रिपोर्टिंग करते हुए दंगों के लिए हिन्दुओं को दोषी ही नहीं ठहराया बल्कि उन्हें आतंकवादी भी साबित करने का प्रयास किया। और वह न्यायिक प्रक्रिया एवं प्रणाली को भी अपने एजेंडे के अनुसार ही संचालित करने की जिद्द कर रहे हैं, तभी एकतरफा प्रश्न, एकतरफा संतोष व्यक्त कर रहे हैं।
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