जनजातीय बालिकाओं को मिला सहारा
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जनजातीय बालिकाओं को मिला सहारा

इंदौर में सेवा भारती और शंकर नेत्र फाउंडेशन, कोयंबतूर के तत्वावधान में गरीब और जनजाति क्षेत्र की बच्चियों को ‘विजन केयर टेक्निशियन’ का नि:शुल्क प्रशिक्षण दिया जा रहा है। अब तक 20 बच्चियों को प्रशिक्षित कर उन्हें नौकरी भी दिलाई गई है

by अश्वनी मिश्र and अरुण कुमार सिंह
Apr 21, 2023, 04:16 pm IST
in भारत, संघ
प्रशिक्षण पूरा करने वाली लड़कियों के साथ कामना खंडेलवाल (बीच में)

प्रशिक्षण पूरा करने वाली लड़कियों के साथ कामना खंडेलवाल (बीच में)

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जनजातीय समाज के लोग अभी भी विकास की दौड़ में काफी पीछे हैं। जो भी घरेलू संसाधन होते हैं, उनसे ही ये लोग गुजारा करते हैं। इनकी आय इतनी कम होती है कि इन्हें एक बनियान भी खरीदने के लिए सोचना पड़ता है।

जनजातीय समाज के लोग अभी भी विकास की दौड़ में काफी पीछे हैं। जो भी घरेलू संसाधन होते हैं, उनसे ही ये लोग गुजारा करते हैं। इनकी आय इतनी कम होती है कि इन्हें एक बनियान भी खरीदने के लिए सोचना पड़ता है। यदि ऐसे परिवार की कोई बच्ची कहीं 15-20 हजार रु. की नौकरी करने लगे तो आप अंदाजा नहीं लगा सकते हैं कि उस परिवार के लोग कितने खुश होते होंगे। कुछ ऐसा ही हो रहा है इंदौर में। इंदौर और उसके आसपास के कुछ गांवों के लोग अपनी बच्चियों की नौकरी लगने से बेहद खुश हैं। उनकी यह खुशी सेवा भारती, इंदौर और शंकर नेत्र फाउंडेशन, कोयंबतूर के कारण आई है।

‘‘प्रशिक्षण 21 वर्ष तक की उन बच्चियों को दिया जाता है, जिन्होंने किसी भी विषय से बारहवीं तक की पढ़ाई की हो। पहले दो वर्ष सैद्धांतिक और अंतिम वर्ष प्रयोगात्मक पढ़ाई कराई जाती है।

-कामना खंडेलवाल, सेवा भारती की वरिष्ठ कार्यकर्ता 

बता दें कि इन दोनों संगठनों ने इंदौर में एक ऐसा प्रकल्प शुरू किया है, जहां गरीब और जनजाति समाज की बच्चियों को ‘विजन केयर टेक्निशियन’ का नि:शुल्क प्रशिक्षण दिया जा रहा है। यही नहीं, ऊपर से इन्हें तीन वर्ष तक प्रतिमाह छात्रवृत्ति भी दी जाती है। हर वर्ष यह छात्रवृत्ति बढ़ती भी रहती है। इस प्रशिक्षण की व्यवस्था करती हैं सेवा भारती की वरिष्ठ कार्यकर्ता कामना खंडेलवाल। उन्होेंने बताया, ‘‘प्रशिक्षण 21 वर्ष तक की उन बच्चियों को दिया जाता है, जिन्होंने किसी भी विषय से बारहवीं तक की पढ़ाई की हो। पहले दो वर्ष सैद्धांतिक और अंतिम वर्ष प्रयोगात्मक पढ़ाई कराई जाती है।

प्रशिक्षण प्राप्त करने वाली बच्चियों में 80 प्रतिशत जनजाति समाज की हैं।’’ उन्होंने यह भी बताया कि इन बच्चियों का चयन  के कार्यकर्ता गांव-गांव में जाकर करते हैं। इसके बाद ये बच्चियां लिखित और मौखिक परीक्षा देती हैं। जो बच्चियां इन दोनों परीक्षा में सफल रहती हैं, उन्हें प्रशिक्षण दिया जाता है। प्रशिक्षण की आवासीय व्यवस्था इंदौर में है। 2022 तक 49 बालिकाओं का चयन इस प्रशिक्षण के लिए हुआ है। ये लड़कियां नियमित प्रशिक्षण लेकर स्वावलंबी बनने की दिशा में अग्रसर हैं।

2018 में शुरू हुए इस प्रकल्प में अभी तक 20 बच्चियों ने तीन वर्ष का प्रशिक्षण पूरा कर लिया है। अभी ये सभी बच्चियां शंकर नेत्र चिकित्सालय, इंदौर में ‘विजन केयर टेक्निशियन’ के रूप में कार्यरत हैं। इन सभी को प्रतिमाह लगभग 20,000 रु. वेतन मिल रहा है। इस तरह सेवा भारती और शंकर नेत्र फाउंडेशन, कोयंबतूर के प्रयासों से इंदौर के ग्रामीण क्षेत्र की लड़कियां स्वावलंबी और स्वाभिमानी बन रही हैं।

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