छात्रावास में रहने वाली द्रौपदी डॉक्टर बनना चाहती है। इसलिए वह इन दिनों ‘नीट’ की तैयारी कर रही है, वहीं शिवानी बीएससी नर्सिंग में तीसरे वर्ष की पढ़ाई कर रही है। ये सभी बच्चे सेवा भारती के कार्यकर्ताओं के मार्गदर्शन और सहायता से ही आगे बढ़ रहे हैं।
राजस्थान की राजधानी जयपुर में महेश नगर के नाम से एक मुहल्ला है। यहां गरीब वर्ग के लोग रहते हैं। कोई सब्जी बेचता है, कोई मजदूरी करता है, कोई कचरा बीनता है, कोई कबाड़ बेचता है। कई परिवारों की स्थिति तो ऐसी है कि घर की महिलाएं भी दूसरे के घरों में चौका-बासन करती हैं। ऐसे में भी यहां के अनेक बच्चे पढ़-लिखकर सरकारी नौकरी कर रहे हैं।
कई बच्चे कंप्यूटर के क्षेत्र में अपना ही काम कर रहे हैं। कुछ बच्चे वकील भी बने हैं। कुछ चिकित्सा क्षेत्र में योगदान दे रहे हैं। इस मुहल्ले के लोग इसे चमत्कार मानते हैं। यह चमत्कार हुआ है सेवा भारती बाल विद्यालय के कारण। महेश नगर में यह विद्यालय 21 वर्ष से चल रहा है। इस विद्यालय ने इस दौरान सैकड़ों बच्चों के जीवन को संवारा है। इस समय इस विद्यालय में 350 बच्चे पढ़ते हैं। इनमें से 37 बच्चे विद्यालय के छात्रावास में रहते हैं।
महेश नगर में विद्यालय प्रारंभ करने से पहले उन्होंने अपने घर पर ही बच्चों को पांच साल तक पढ़ाया। जब बच्चों की संख्या बढ़ने लगी तो कुछ वरिष्ठ कार्यकर्ताओं के सहयोग से सेवा भारती विद्यालय की नींव रखी गई। इस विद्यालय में किसी भी बच्चे से किसी तरह का कोई शुल्क नहीं लिया जाता। विमला कहती हैं, ‘‘यदि आपने अपने कार्यों से समाज का मन जीत लिया तो सहयोग करने वालों की कमी नहीं रहती। इस विद्यालय को भी समाज का पर्याप्त सहयोग मिल रहा है।’’
बाकी अपने घर चले जाते हैं। छात्रावास में रहने वाले सभी बच्चे विद्यालय की मदद से ऊंची शिक्षा ले रहे हैं। इनमें से कई नौकरी भी कर रहे हैं। एक ऐसी ही छात्रा हैं राधा प्रजापत। राधा जयपुर स्थित सत्र न्यायालय में स्टेनोग्राफर हैं। विद्यालय की संचालिका विमला कुमावत कहती हैं, ‘‘राधा पांच वर्ष की आयु में विद्यालय में आई थी। यहीं रहकर उसने पढ़ाई की और आज उसने अपने कुल के साथ-साथ विद्यालय का मान भी बढ़ाया है। उसकी मां सब्जी बेचती है। इस विपरीत स्थिति में भी राधा ने कमाल कर दिखाया है।’’
विद्यालय के छात्रावास में रहकर एल.एल.बी. की पढ़ाई पूरी करने वाले विष्णु चांवरिया इस समय राजस्थान उच्च न्यायालय में वकालत कर रहे हैं, साथ ही पढ़ भी रहे हैं। वे अभी भी छात्रावास में रहते हैं। विद्यालय के सहयोग से ही कौशल महावर ने प्रयागराज से प्रिटिंग में डिप्लोमा किया है। छात्रावास में रहने वाली द्रौपदी डॉक्टर बनना चाहती है। इसलिए वह इन दिनों ‘नीट’ की तैयारी कर रही है, वहीं शिवानी बीएससी नर्सिंग में तीसरे वर्ष की पढ़ाई कर रही है। ये सभी बच्चे सेवा भारती के कार्यकर्ताओं के मार्गदर्शन और सहायता से ही आगे बढ़ रहे हैं।
इन बच्चों को आगे बढ़ाने में विमला कुमावत की सबसे बड़ी भूमिका है। महेश नगर में विद्यालय प्रारंभ करने से पहले उन्होंने अपने घर पर ही बच्चों को पांच साल तक पढ़ाया। जब बच्चों की संख्या बढ़ने लगी तो कुछ वरिष्ठ कार्यकर्ताओं के सहयोग से सेवा भारती विद्यालय की नींव रखी गई। इस विद्यालय में किसी भी बच्चे से किसी तरह का कोई शुल्क नहीं लिया जाता। विमला कहती हैं, ‘‘यदि आपने अपने कार्यों से समाज का मन जीत लिया तो सहयोग करने वालों की कमी नहीं रहती। इस विद्यालय को भी समाज का पर्याप्त सहयोग मिल रहा है।’’
उन्होंने बताया कि अब विद्यालय की दूसरी इकाई सांगानेर के बक्सावाला में शुरू हो गई है। वहां 100 बच्चे पढ़ रहे हैं। यानी अब इन गुलाबों की महक दूर-दूर तक फैलेगी।
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