नीतीश कुमार, केजरीवाल, जगन रेड्डी, ममता बनर्जी आदि सभी अपने-अपने स्तर पर विपक्ष की एकता का प्रयास कर चुके हैं। सारे विफल भी हो चुके हैं। हालांकि ये सभी दूसरों के प्रयासों को विफल करने में जरूर सफल रहे हैं।
पार्टी अभी शुरू नहीं हुई है, लेकिन खत्म हो चुकी है। नीतीश कुमार, केजरीवाल, जगन रेड्डी, ममता बनर्जी आदि सभी अपने-अपने स्तर पर विपक्ष की एकता का प्रयास कर चुके हैं। सारे विफल भी हो चुके हैं। हालांकि ये सभी दूसरों के प्रयासों को विफल करने में जरूर सफल रहे हैं। जैसे विपक्ष के कम से कम तीन नेता सारे विपक्षी नेताओं की बैठक बुलाने का प्रयास कर चुके हैं, और उस बैठक में उनके अलावा बाकी कोई नहीं आया। हाल ही में नीतीश कुमार ने एक प्रयास किया। लेकिन नीतीश जब दिल्ली में बाकी नेताओं से मिलने पहुंचे, तो साथ में तेजस्वी यादव को ले जाना न भूले।
नीतीश जानते हैं कि दिल्ली में उनके साथ फोटो खिंचवाने के लिए भी कोई तभी तक राजी हो सकेगा, जब तक वे बिहार के मुख्यमंत्री हैं; और बिहार के मुख्यमंत्री वे तभी तक हैं, जब तक तेजस्वी यादव का आशीर्वाद उन्हें प्राप्त है। और आगे चलें। अरविंद केजरीवाल ने उनका समर्थन दिखाया, लेकिन जब सामूहिक फोटो खिंचवाने की बारी आयी तो केजरीवाल अलग खड़े हो गए। सामूहिक फोटो में कांग्रेस की ओर से मलिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी नजर आए, तो कांग्रेस में परिवार के वर्चस्व को रेखांकित करने के लिए कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी ने ‘द हिंदू’ अखबार में लेख लिखा। सोनिया गांधी के नाम से प्रकाशित लेख में कहा गया कि सारे ‘समान विचारों वाले दल’ हाथ मिलाएं। यह देखना जरूरी है कि आखिर वह कौन से विचार हैं, जो इन सब में समान हैं।
दंगों और जिहादी आतंकवाद पर अधिकांश विपक्ष के विचार वंशवाद की तरह समान हैं। जब बाटला हाउस एनकाउंटर हुआ था, तो सलमान खुर्शीद के अनुसार सोनिया गांधी रात भर रोती रही थीं। इसके बाद जो आतंकवादी आईएसआईएस में शामिल हुए, उसमें उस समय के सत्ताधीशों की भूमिका पर आज भी प्रश्न उठते हैं। यह वैचारिक समानता का वह आधार है, जो कांग्रेस, टीएमसी, आप, सपा, और अर्बन नक्सलियों को आपस में जोड़ता है।
संभवत: सोनिया गांधी के लिए सबसे महत्वपूर्ण विचार यह है कि किसी तरह उनकी संतान को प्रधानमंत्री बनाया जाए और ‘खान मार्केट गैंग’ के अभिजात्य भ्रष्टाचार को हमेशा के लिए आममाफी मिली रहे। और समान विचारधाराओं की तलाश करें तो राजद (गुंडा राज, घोटाला), टीएमसी (गुंडा राज, हिंदू विरोध, बड़े पैमाने के भ्रष्टाचार), सपा (भ्रष्टाचार, माफिया और गुंडा राज), आप (सबसे कट्टर तरीके का भ्रष्टाचार पोषण, दंगा), वामपंथी (भारतीयता विरोध और हिंदू विरोध), डीएमके (हिंदी विरोध, हिंदू विरोध) है। वैचारिक समानता का एक बड़ा आधार यह जरूर है कि कांग्रेस केरल में मुस्लिम लीग के साथ है, कर्नाटक में पीएफआई की हमदर्द है, असम में बदरुद्दीन अजमल की एआईयूडीएफ के साथ है।
दंगों और जिहादी आतंकवाद पर अधिकांश विपक्ष के विचार वंशवाद की तरह समान हैं। जब बाटला हाउस एनकाउंटर हुआ था, तो सलमान खुर्शीद के अनुसार सोनिया गांधी रात भर रोती रही थीं। इसके बाद जो आतंकवादी आईएसआईएस में शामिल हुए, उसमें उस समय के सत्ताधीशों की भूमिका पर आज भी प्रश्न उठते हैं। यह वैचारिक समानता का वह आधार है, जो कांग्रेस, टीएमसी, आप, सपा, और अर्बन नक्सलियों को आपस में जोड़ता है।
एक और समान रूप से कमजोर नस। सोनिया गांधी के नाम से प्रकाशित लेख में कहा गया है कि मोदी सरकार ‘हर शक्ति का दुरुपयोग’ कर रही है। इस लेबल के तहत होने वाला दर्द विपक्ष के बहुत सारे नेताओं को है, हालांकि उनके इस जख्म पर मरहम लगाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय भी राजी नहीं हुआ। सोनिया गांधी ने ‘संविधान की रक्षा’ करने की जरूरत भी जताई। माने भ्रष्टाचार पर कार्रवाई होना, देश में सभी के लिए एक समान कानून होना संविधान की विफलता है?
वास्तव में यह विपक्ष की विफलता है कि उसके पास नेता, नीति, दिशा—कुछ भी नहीं है। पश्चिम की परिभाषा वाले लोकतंत्र में एक सशक्त विपक्ष का होना आवश्यक होता है। लेकिन निश्चित रूप से वह विपक्ष रचनात्मक ही हो सकता है, विध्वंसात्मक नहीं। अगर समान विचारधारा ही विध्वंसात्मक हो, तो ऐसे विपक्ष की आवश्यकता दुनिया के किसी लोकतंत्र को नहीं होती।
@hiteshshankar
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