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विश्व भर की परम्‍पराएं भारत में अपने को सुरक्षित मानती हैं : डॉ. मोहन भागवत

- सृष्टि के आरम्भ से ही भारत वर्ष का प्रयोजन रहा है। सनातन धर्म के आधार पर सारा विश्व चल रहा है

by डॉ. मयंक चतुर्वेदी
Apr 18, 2023, 08:29 pm IST
in भारत, संघ, मध्य प्रदेश
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जबलपुर । भारत सनातन काल से है। भारतवर्ष का प्रयोजन अमर है, हर राष्‍ट्र का अपने अस्‍तित्‍व के पीछे का कुछ न कुछ कारण है, इसलिए भारत वर्ष भी इसलिए भारत वर्ष ऐसा है । सृष्टि के आरम्भ से ही भारत वर्ष का प्रयोजन है। भारत का प्रयोजन विश्व कल्याण और मानव उत्थान का साधन है। अपना अपना प्रयोजन प्राप्त करने के बाद सभी की इति हो जाती है। भारत का प्रयोजन राष्ट्र के साथ विश्व कल्याण है इसलिए इसकी इति असंभव है। उक्‍त बातें मध्‍य प्रदेश की संस्‍कारधानी जबलपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहन भागवत ने मंगलवार को कही हैं। वे ब्रह्मलीन जगतगुरु श्यामादेवाचार्य की द्वितीय पुण्यतिथि के कार्यक्रम में बोल रहे थे।

भारत एक मात्र देश जिसने भगवान के हर स्‍वरूप को माना

इस अवसर पर उन्‍होंने जबलपुर के नरसिंह मंदिर में डा. श्यामादेवाचार्य के श्रीविग्रह का लोकार्पण भी किया। उन्‍होंने कहा कि भारत एकमात्र देश है जिसने भगवान के हर स्वरूप को माना, कभी भी किसी भगवान के स्वरूप को लेकर लड़ाई नहीं की। एकमात्र भारत है जो सारी दुनिया को एक मानता है। सनातन संस्कृति सबको जोड़ती है । सनातन धर्म के आधार पर सारा विश्व चल रहा है। सत्य पर आधारित आचरण के कारण ही भारत आज भी जीवंत है। भाषा, धर्म, पंथ संप्रदाय के नाम पर देश बनें लेकिन भारत के साथ ऐसा नहीं रहा।

सरसंघचालक जी ने कहा कि वैभव के शिखर पर जाकर भी जब भारत को संतोष नहीं मिला तो उसने अपने अंदर देखना शुरू किया। अंततः उसे फिर वो मिला जिसे सत्य और अनंत आनंद कहा जाता है। यह ज्ञान मिला कि सभी एक ईश्‍वर की चराचर रचना है, इसलिए कोई अलग नहीं है। भारत वर्ष के संतों ने सोचा कि यह जो हमें ज्ञान मिला है, वह सभी को मिलना चाहिए। तब उन्होंने धर्म की धारणा करते हुए इसकी स्‍थापना की, इसलिए इसे धर्म कहा गया ।

डॉ. भागवत ने बताया कि हर चार वर्ष बाद एक नई परंपरा आती है, जिसमें अलग-अलग बातें होती हैं। भारत ही है जो यह बताता है कि सभी एक हैं। आज भारत जीवन्त है, इस कारण से विश्व के कौने-कौने की परापंराएं भारत में अपने आप को सुरक्षित पाती है । यह भावना एवं दृष्टि हमारे हिन्दू, सनातन धर्म से मिली है, जिसमें सर्व कल्याण का भाव है।

दुर्बल होने के कारण ही मनुष्‍य ने मिलकर रहने में अपना हित समझा

उन्‍होंने कहा कि परंपरा के आधार पर यह कहा जा सकता है कि अपना-अपना प्रयोजन पूरा करने के बाद वह राष्ट्र अंतर्धान हो जाता है , लेकिन भारतवर्ष का प्रयोजन अमर है, उसके होने के स्वर अलग हैं, इसलिए भारत वर्ष ऐसा है। भारत के अतिरिक्‍त सभी राष्ट्रों में यह चिंता बनी रहती है कि हमको जीना है, हमको मरना नहीं है । वैसे भी मनुष्‍य दुर्बल जीव है। एक छोटा सा मच्छर भी हमें परेशान करता है और हम उसको तालियां बजाते-बजाते थक जाते हैं, मार नहीं पाते। दुर्बल होने के कारण ही मनुष्‍य ने मिलकर रहने में अपना हित समझा। इसलिए उसने समूह किया, जिसे कबीला कहा जाता है। कबिले में रहने से शत्रु डरता है। उन्‍होंने कहा कि मनुष्य सबसे दुर्बल है, यह सच है लेकिन भगवान ने उसे तेज बुद्धि दी, इसलिए सब प्राणियों का वह राजा बन गया। कबीले लड़ते थे, रक्तपात होता था इसलिये राजा बना दिया गया। हम सभी को मिलकर रहना चाहिए, जिससे ताकत बढ़ती है।

महापुरुष को होता है भगवान का साक्षात्कार

सरसंघचालक जी ने कहा कि भगवान का साक्षात्कार महापुरुष को होता है। संतों के उपदेशों को ग्रहण करते हुए हम सब धर्म के मार्ग पर चलें। श्यामदेवाचार्य जैसी हस्तियां जाने के बाद भी पार्थिव रूप में हमारे साथ रहती हैं। तब ये संभव होता है कि आज हम ही क्या, सारी दुनिया कह रही है कि भारत होने वाली महाशक्ति है। शक्ति के बिना भगवान शिव भी शव हैं। लेकिन, हमारी शक्ति दुर्बलों की रक्षा करेगी।

भारत विश्व गुरु बनने जा रहा है और हमें यह बनना ही है।

डॉ. भागवत ने कहा कि हम सभी को पर्यावरण संरक्षण के लिए एक मत होना चाहिए। सनातन धर्म ही हिंदू राष्ट्र, हिंदू संस्कृति है। भारत विश्व गुरु बनने जा रहा है और हमें यह बनना ही है। सनातन धर्म के अनुसार अपने जीवन के तरीके को खड़ा करो। उल्‍लेखनीय है कि राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ के सर संघचालक डॉ. मोहन भागवत ने नरसिंह मंदिर परिसर में ब्रह्मलीन जगतगुरु श्यामादेवाचार्य की प्रतिमा का अनावरण के बाद नरसिंह मंदिर परिसर में साधु संतों का आशीर्वाद भी लिया।

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