आज हमारे पास ऐसी क्या-क्या चीजें हैं, जो दुनिया के लिए काम की हैं? जब आप कोई फोन, कोई हार्डडिस्क फॉर्मेट करते हैं तो उसमें से सबसे काम की चीजें निकाल लेते हैं। व्यक्ति के जीवन में सबसे महत्वपूर्ण चीजें देखी जाती हैं। ऐसे समाज का जब सदियों के कालखंड में आकलन होता है तो उसकी सबसे बड़ी उपलब्धियां, सबसे बड़े कीर्तिमान, सबसे अधिक प्रेरित करने वाले, रोमांचित करने वाली चीजें सामने आती हैं। वे धरोहर कहलाती हैं।
विश्व धरोहर, ब्रह्मपुत्र नदी, भारत के वास्तुशिल्प, समाज, संस्कृति, भार, विश्व को गणित, खगोल विज्ञान, भूगोल, वैमानिकी, धातु विज्ञान, चिकित्सा विज्ञान, उन्नत ज्ञान, भारत में शून्य, दशमलव, सोना, तांबा, चांदी, सीसा, टिन, लोहा, कोल्ड वर्क, रिवेटिंग, लैपिंग और जॉइनिंग जैसी फैब्रिकेशन तकनीक
धरोहर अपने आप में एक रोचक शब्द है, ज्ञानपूर्ण शब्द है। इसे सरल ढंग से समझें तो ऐसे समझ सकते हैं कि आप अपने जीवन में बहुत कुछ करते हैं, परंतु जब उन कामों की छंटाई होती है, तो महत्वपूर्ण चीजें, जो आगे आने वालों को सीख देने के लिए और इसके अतिरिक्त पुरखों की थाती कैसी थी, उसे बताने, सहेजने, आगे बढ़ाने, प्रेरित करने के लिए होती हैं जीवन में, वे आगे रह जाती हैं, बाकी सबको बिसरा दिया जाता है। आज हमारे पास ऐसी क्या-क्या चीजें हैं, जो दुनिया के लिए काम की हैं? जब आप कोई फोन, कोई हार्डडिस्क फॉर्मेट करते हैं तो उसमें से सबसे काम की चीजें निकाल लेते हैं। व्यक्ति के जीवन में सबसे महत्वपूर्ण चीजें देखी जाती हैं। ऐसे समाज का जब सदियों के कालखंड में आकलन होता है तो उसकी सबसे बड़ी उपलब्धियां, सबसे बड़े कीर्तिमान, सबसे अधिक प्रेरित करने वाले, रोमांचित करने वाली चीजें सामने आती हैं। वे धरोहर कहलाती हैं।
दुनिया में बहुत सारी धरोहर होंगी परंतु हमारे पास दुनिया भर की धरोहर हैं। धरोहरों की सूची वहीं खत्म नहीं होती, जहां तक उन्होंने बनाई है। अभी तो हमारी सूची सामने आना शुरू हुई है। और तो और, भारत की सूची के तो कई वर्ग हैं जैसे स्थल, स्थापत्य (भवन), संस्कृति, शिक्षा (ज्ञान परंपरा) और समाज। और हर वर्ग में इतनी धरोहर कि ग्रंथ लिख दिए जाएं।
अद्भुत स्थल
स्थलों की बात करें तो द्वापर काल की नगरी, दुनिया को गीता का उपदेश देने वाले श्रीकृष्ण की राजधानी द्वारका का नाम सामने आता है। गुजरात में जब गोमती नदी के समुद्र में मिलन स्थल के पास बसी द्वारका नगरी की तलाश में 2007 में विस्तृत उत्खनन हुआ तो दुनिया अचम्भित रह गई। हजारों साल से समुद्र में डूबी द्वारका का सत्य सामने आया। इसी तरह मध्य प्रदेश के रायसेन में स्थित पुरापाषाणिक आवासीय पुरास्थल भीमबेटका है जो आदि मानव द्वारा निर्मित शैलचित्रों और शैलाश्रयों के लिए प्रसिद्ध है। यहां 750 से अधिक शैलचित्र पाए गए हैं। इन चित्रों को पुरापाषाण काल से मध्य पाषाण काले के समय का माना जाता है। ये चित्र भारतीय उपमहाद्वीप में मानव जीवन के प्राचीनतम चिह्न हैं। अपने भौगोलिक कारणों से धरोहर का रूप लेने वाला एक स्थल है माजुली। यह असम में जोरहाट के पास ब्रह्मपुत्र नदी में विश्व का विशालतम नदी द्वीप है। इसका 450 वर्ग किलोमीटर रह गया है। नदी द्वीप होने से यहां प्रदूषण क्षेत्र अब शून्य है और यह तमाम प्रकार के पक्षियों और तितलियों का बसेरा है।
अनूठा स्थापत्य
भारत के वास्तुशिल्प का अनूठापन महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में स्थित एलोरा की गुफा में मिलता है। कहा जाता है कि इसका निर्माण राष्ट्रकूट वंश के राजा कृष्ण ने आठवीं सदी में कराया था। हालांकि मंदिर के निर्माण के समय को लेकर वैज्ञानिकों में मतभेद है। द्रविड़ शैली में बना यह मंदिर अपनी समग्रता में 276 फीट लंबा और 154 फीट चौड़ा है जिसे एक ही चट्टान को काटकर बनाया गया है। मंदिर की दीवारों पर जबरदस्त नक्काशी की गई है और पुरातत्वविदों का अनुमान है कि इस पर 3 करोड़ संस्कृत श्लोक अंकित हैं जिनका अभी तक अनुवाद नहीं हो सका है। इस मंदिर के निर्माण में प्रयुक्त प्रौद्योगिकी इतनी अनूठी है कि औरंगजेब ने 1682 में अपने 1000 आदमी इसे तोड़ने के लिए भेजे थे जिन्होंने तीन वर्ष तक इसे तोड़ने की कोशिश की परंतु नाकाम रहे।
चोल काल में दक्षिण भारत में द्रविड़ शैली का विकास हुआ। इस काल में पांच से सात मंजिला मंदिरों के साथ गोपुरम् यानी विशालकाय प्रवेशद्वार का निर्माण हुआ। गर्भगृह के ऊपर बनी हर मंजिल एक विशेष शैली में बनी है, जिसे विमान कहा जाता है। तंजौर का बृहदेश्वर मंदिर, गंगैकोण्डचोलीश्वरम का बृहदेश्वर मंदिर और दारासुरम का एरावतेश्वर मंदिर चोलकालीन हैं। इन मंदिरों में गर्भगृह के सामने सपाट छत वाला एक विशाल हॉल है, जिसे मंडप कहा जाता है। इसके खंभों पर महीन नक्काशी की गई है।
विजयनगर साम्राज्य समृद्ध और वैभवशाली था, जिसकी राजधानी हम्पी में 1600 से अधिक मंदिर और महल थे। 1565 ई. में दक्कन सल्तनत के मुस्लिम शासकों ने इस पर आक्रमण कर महीनों तक लूटपाट कर हम्पी को तबाह कर दिया। यहां के ‘हजारा राम मंदिर’ की बाहरी दीवारों पर रामायण के दृश्य, देवताओं और असंख्य पंखों वाले गरुड़ अंकित हैं। यहां के सबसे ऊंचे विट्ठलस्वामी मंदिर में विट्ठल भगवान का रथ ग्रेनाइट चट्टान को तराश कर बनाया गया है, जिसके पहिये कभी घूमते थे। यह देश के रथनुमा तीन प्रसिद्ध रथों में से है, अन्य दो रथ कोणार्क और महाबलीपुरम में हैं।
ओडिशा में कोणार्क स्थित रथनुमा भव्य सूर्य मंदिर मध्यकालीन वास्तुकला का अनूठा उदाहरण है। इस रथ में 24 नक्काशीदार पहिये और 7 घोड़े हैं। ये 24 पहिये 24 घंटे और 7 घोड़े सप्ताह के 7 दिनों के प्रतीक हैं। चक्रनुमा 12 जोड़ी पहियों को 12 महीने और इसके आठ अर्रे आठ प्रहरों को प्रदर्शित करते हैं। पहियों पर पड़ने वाली छाया सटीक समय बताती है। लाल बलुआ पत्थर और ग्रेनाइट पत्थर से बना कोणार्क मंदिर भारत के सात अजूबों में से एक है।
तमिलनाडु के तंजावुर जिले में चोल सम्राट करिकाल ने 2,000 वर्ष पहले श्रीलंका विजय के बाद 12,000 युद्धबंदियों से कावेरी नदी पर कल्लनई बांध बनवाया था जो आज भी अच्छी स्थिति में है। यह भारत का पहला और दुनिया का सबसे पुराना बांध है। इसका उद्देश्य नदी को डेल्टा जिलों की ओर मोड़कर सिंचाई व्यवस्था को बढ़ावा देना था। महत्वपूर्ण बात यह है कि इसे कावेरी नदी के बिना तराशे छोटे पत्थरों से बनाया गया है। यह बांध 329 मीटर (1,079 फीट) लंबा, 20 मीटर यानी 66 फीट चौड़ा और 5.4 मीटर यानी 18 फीट ऊंचा है।
मध्य प्रदेश के बुरहानपुर में कुंडी भंडारा शुद्ध पानी का कभी खत्म न होने वाला भंडार है। सतपुड़ा की पहाड़ियों से रिसकर सुरंगों में जमा पानी की आपूर्ति भूमिगत कुंडियों के माध्यम से शहर में होती है। यहां नलों की जगह कुंडिया बनी हुई हैं। जल आपूर्ति की यह अद्भुत संरचना अब्दुल रहीम खानखाना ने 1615 में बनवाई थी। इन कुंडियों से आने वाला पानी मिनरल वाटर से भी शुद्ध है। इससे प्रतिदिन सवा लाख लीटर पानी की आपूर्ति होती है। बुरहानपुर के अलावा ऐसी भूमिगत जल प्रणाली केवल ईरान में थी जो अब बंद हो चुकी है।
संस्कृति
वस्तुत: भारत की संस्कृति अपने-आप में एक धरोहर है। इसमें केवल दिखावा नहीं है, बल्कि उसके पीछे, एक विश्व दृष्टि, एक दर्शन है। जब भारत की बात होती है तो सबको साथ लेकर चलने की बात होती है। भारतीय संस्कृति सहजीविता और सातत्य में विश्वास करती है। इसीलिए भारतीय संस्कृति में प्रकृति के विभिन्न तत्वों को धन्यवाद कहने के लिए उनकी पूजा की जाती है। भारत में धरती, पर्वत, वृक्ष, वायु, जल, और पशु, सबके पूजन का प्रावधान है। इसे हम यूं कह सकते हैं कि पर्यावरण को स्वच्छ और सतत रखने की खातिर भारतीय संस्कृति में धर्म में समाहित कर लिया गया है।
भारतीय संस्कृति का एक प्रमुख अंग यात्रा है। यात्रा से व्यक्ति परिपूर्ण होता है। इसलिए भारतीय सांस्कृतिक परंपराओं में यात्राएं एक प्रमुख स्थिति में हैं। प्राचीनकाल में शिक्षा के पूर्ण होने के पश्चात शिष्यों के देशाटन पर जाने का प्रावधान था। इसका उद्देश्य व्यक्ति को समाजोन्मुख बनाना, ज्ञान वृद्धि और शिक्षा के व्यावहारिक पक्ष से अवगत कराना था। इसके अलावा भारत में सामूहिक यात्राओं की भी परंपरा है। अमरनाथ यात्रा, मानसरोवर यात्रा, कांवड़ यात्रा, पुरी रथयात्रा, चारधाम यात्रा और इसी तरह की कई अन्य यात्राएं हैं। इसके अलावा नदियों में सामूहिक स्नान की परंपरा है जिसमें विशेष ग्रह-नक्षत्र स्थिति में विशेष नदियों में स्नान किए जाने का प्रावधान है। बृहस्पति ग्रह की चाल से निर्धारित कुंभ एक अनूठा पर्व है जिसमें करोड़ों लोग कुछ विशेष दिनों में एकसाथ, एक स्थल पर रहते हैं और पवित्र नदियों में स्नान करते हैं।
समाज
भारत ने सामाजिक क्षेत्र में विश्व को संयुक्त परिवार जैसी अवधारणा दी। आज दुनिया संयुक्त परिवार की अहमियत को समझ रही है। विभिन्न सामाजिक समस्याओं से बचने में संयुक्त परिवार की बड़ी भूमिका होती है। आज इसे बचाने की आवश्यकता है। इसके अलावा भारत ने विश्व को ग्राम पंचायत और ग्राम जनतंत्र जैसी संस्थाएं दीं जिनसे लोकतंत्र की बुनियाद पड़ी।
ज्ञान परंपरा
भारत की ज्ञान परंपरा अत्यंत समृद्ध है। भारत ने विश्व को गणित, खगोल विज्ञान, भूगोल, वैमानिकी, धातु विज्ञान, चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में उन्नत ज्ञान उपलब्ध कराया है। भारत में ‘शून्य’ एवं ‘दशमलव’ जैसी मूलभूत गणितीय खोजों ने गणित को ऐसा आधार प्रदान किया है, जिसके आधार पर सभ्यताओं के विकास का क्रम निरंतर आगे बढ़ रहा है। तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से, हमारे पास ब्राह्मी अंकों के लिखित प्रमाण मौजूद हैं। खगोलशास्त्री ब्रह्मगुप्त ने अपने इस प्राथमिक विषय में द्विघात समीकरणों को हल करने और वर्गमूलों की गणना के लिए नियम पेश किए। ब्रह्मगुप्त ने ऋणात्मक संख्याओं के साथ उपयोग होने वाले नियमों को भी प्रदर्शित किया। वेदों के पूरक और संस्कृत के सूत्रग्रन्थ शुल्बसूत्र, 800 से 200 ईसा पूर्व के माने जाते हैं। प्रसिद्ध प्रमेय पाइथागोरस का वर्णन शुल्बसूत्रों में मौजूद है। शुल्बसूत्र में अपरिमेय संख्याओं की अवधारणा को भी प्रस्तुत किया गया है। इस अवधि का गणित विशेष रूप से धार्मिक वेदियों के निर्माण में व्यावहारिक ज्यामितीय समस्याओं को हल करने के लिए विकसित किया गया था। इसी प्रकार जैन गणित काल के तहत जैन ब्रह्मांड विज्ञान ने अनंत के विचारों को जन्म दिया।
खगोल विज्ञान के क्षेत्र में भारत का योगदान प्राचीन काल से रहा है। खगोल विज्ञान का शुरुआती उल्लेख ऋग्वेद में आया है। मापन के मामले में भी भारतीय वैज्ञानिक सटीक आंकड़ों के बिल्कुल निकट रहे हैं। ब्रह्मगुप्त ने गणना की थी कि पृथ्वी की परिधि 5000 योजन है। एक योजन 7.2 किलोमीटर के बराबर होता है। भारतीय खगोलशास्त्र की प्रारंभिक पुस्तक वेदांग ज्योतिष है। इस पुस्तक में चंद्रमा और सूर्य की गति नापने के लिए नियमों का उल्लेख किया गया है। वराहमिहिर ने इस तथ्य का उल्लेख किया है कि किस प्रकार चंद्रमा पृथ्वी के चारों ओर परिक्रमा करता है और पृथ्वी सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करती है।
रसायन विज्ञान में दैनिक जीवन से संबंधित विभिन्न व्यावहारिक अनुप्रयोगों की खोज की गई। भारतीय रंगरेजों ने स्थायी रंगों एवं नीले रंग का आविष्कार किया। अणु या परमाणु की अवधारणा को वैशेषिक दर्शन द्वारा प्रतिपादित किया गया था।
चिकित्सा विज्ञान के रूप में आयुर्वेद का उद्भव प्राचीन भारत में हुआ। पतंजलि ने योग सूत्र में शारीरिक और मानसिक स्तर पर औषधि के बिना उपचार करने वाले योग विज्ञान को व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत किया है। सुश्रुत संहिता में मोतियाबिंद, पथरी एवं प्लास्टिक सर्जरी संबंधी प्रक्रियाओं का विस्तृत विवरण दिया गया है। सुश्रुत ने मानव शरीर-रचना विज्ञान का अध्ययन किया और 121 शल्य चिकित्सा उपकरणों का उपयोग करके शल्यचिकित्सा से सम्बंधित चरण-दर-चरण प्रक्रिया का विवरण प्रस्तुत किया। चरक संहिता में विभिन्न रोगों, जैसे- बुखार, कुष्ठ रोग, टी.बी., हिस्टीरिया इत्यादि का वर्णन किया गया है। यह पुस्तक रोगों के उपचार हेतु विभिन्न जड़ी-बूटियों एवं पादपों को सूचीबद्ध करती है, जिनका वर्तमान में औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है।
भारतीय उपमहाद्वीप में प्रौद्योगिकी का प्रयोग लाखों वर्ष पहले शुरू हुआ था। यहां पाषाण युग के पत्थर के दो उपकरण मिले हैं, जो 20 लाख वर्ष से अधिक पुराने हैं। भारतीय धातुकर्मियों ने सर्वप्रथम स्टील धातु का निर्माण किया। महरौली का लौह स्तंभ एवं अधिकांश सिक्के भारतीयों के उन्नत ज्ञान को प्रमाणित करते हैं। भारत में धातुकर्म कौशल की 7,000 वर्ष से भी अधिक प्राचीन उच्च परंपरा रही है। यहां पहले सोना, तांबा, चांदी, सीसा, टिन, लोहा और पारे की खोज हुई। तांबे या कांसे को मनचाहा आकार देने के लिए वे कोल्ड वर्क, रिवेटिंग, लैपिंग और जॉइनिंग जैसी फैब्रिकेशन तकनीक का प्रयोग करते थे। हड़प्पाकाल तक कारीगरों ने मूर्तियों को ढालने की तकनीक विकसित कर ली थी। इसके अलावा, हड़प्पावासी सोने-चांदी, मिश्रित धातु आदि का उपयोग कर आभूषण, लॉकेट, चूड़ियां, अंगूठी, हार, मोतियों से बने आभूषण बनाना सीख चुके थे। इसके अलावा भारतीय नृत्य-संगीत एक अनूठी विद्या है जो व्यक्ति को एकसाथ मनोरंजन, सेहत, साधना और अध्यात्म से जोड़ती है।
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