संस्कार भारती की पश्चिम बंगाल इकाई की ओर से शुक्रवार को यानी बंगला नववर्ष पर विशेष सांस्कृतिक कैलेंडर का अनावरण किया गया। इस वर्ष इस सांस्कृतिक कैलेंडर का विषय पश्चिम बंगाल की पहचान और प्राचीनतम चित्रकलाओं में से एक अल्पना है। कोलकाता के साल्ट लेक स्थिति ईजेडसीसी में कार्यक्रम की शुरुआत महिला गायकों की एक समूह ने लोक संगीत गाकर की।
इस मौके पर पुर्वांचल संस्कृति केंद्र के अधिकारी आशीष गिरी, विशिष्ट शिक्षाविद डॉक्टर स्वरूप प्रसाद घोष, विशिष्ट चिकित्सक डॉ निर्मला राय चौधरी, भारतीय संग्रहालय के शिक्षा अधिकारी सायन भट्टाचार्य, अभिनेता रुद्रनिल घोष, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कोलकाता इकाई के संघचालक जयंत बारी, पूर्वी क्षेत्र संघचालक अजय नंदी और संस्कार भारती के पश्चिम बंगाल इकाई के संस्थापक सदस्य सुभाष भट्टाचार्य उपस्थित थे। इस मौके पर सभी विशिष्ट अतिथियों को पौधे प्रदान कर उनका स्वागत किया गया।
संस्कार भारती के पश्चिम बंगाल इकाई के संस्थापक सदस्य सुभाष भट्टाचार्य ने बताया कि बांग्ला नववर्ष की शुरुआत 14 अप्रैल से होती है। यह दिन बंगाली समुदाय के लिए बड़े उत्सव और हर्ष का दिन होता है। हालांकि इसकी शुरुआत को लेकर कई तरह की भ्रांतियां हैं, जिसे दूर करने का बीड़ा “संस्कार भारती” की पश्चिम बंगाल इकाई ने उठाया है। इतिहास को विकृत कर ऐसा बताया गया है कि अकबर ने इसकी शुरुआत की थी लेकिन ऐसा नहीं है। पराक्रमी बंगाली हिंदू शासक “शशांक” ने इसकी शुरुआत की थी।
इस मौके पर एक परिचर्चा सत्र का भी आयोजन किया गया जिसमें मशहूर शिक्षाविद् डॉक्टर स्वरूप प्रसाद घोष ने कहा कि बंगाली शासकों का इतिहास गौरवशाली रहा है लेकिन उसे इतिहास से हटा दिया गया। गौड़ाधिपति शशांक, भारत के इतिहास में ऐसे ही एक भूला हुआ हिन्दू नायक हैं। हमें प्रत्येक क्षेत्र में इससे संबंधित प्रचार-प्रसार करनी होगी ताकि लोग अपनी वास्तविक इतिहास को जान सके।
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