आईआईटी मुंबई के छात्र दर्शन सोलंकी की आत्महत्या के मामले में गठित एसआईटी ने इकबाल अरमान खत्री को हिरासत में ले लिया है। आईआईटी मुंबई के 18 वर्षीय छात्र दर्शन सोलंकी में इकबाल खत्री का इतना खौफ था कि उसने 12 फरवरी को अपने हॉस्टल के 7वें फ्लोर से कूदकर आत्महत्या कर ली थी। परंतु यह आश्चर्यजनक है कि दर्शन सोलंकी की आत्महत्या के मामले में निरन्तर न्याय की मांग करने वाले तमाम दलित संगठनों ने इस बात पर संतोष व्यक्त नहीं किया है कि अंतत: दर्शन सोलंकी को न्याय मिला।
SIT arrested a student namely Armaan Iqbal Khatri in connection with the suicide case of IIT Bombay student Darshan Solanki: Mumbai Police
— ANI (@ANI) April 9, 2023
प्रश्न यह उठता है कि आखिर दर्शन सोलंकी को इकबाल खत्री से डर क्या था और क्यों था ? और इकबाल उसके पीछे क्यों पड़ा था ? दर्शन सोलंकी ने एक साम्प्रदायिक टिप्पणी की थी, जिसके चलते इकबाल खत्री उससे नाराज था और उसे कटर दिखाकर यह लगातार कहता था कि वह उसे छोड़ेगा नहीं।
समाचार एजेंसी एएनआई के अनुसार एसआईटी जांच के दौरान आईआईटी मुंबई के कई छात्रों ने पुलिस को यह बताया कि दर्शन सोलंकी और अरमान के बीच आत्महत्या से कुछ दिन पहले एक विवाद हुआ था और जब पुलिस ने कारण का पता किया तो छात्रों ने बताया कि दर्शन सोलंकी ने मुस्लिम समाज को लेकर कुछ टिप्पणी की थी, जिसके चलते इकबाल अरमान खत्री ने उसे धमकी दी थी।
कहीं ये कट्टरपंथी मजहबी डर तो नहीं था, जिसने उसे इतना विवश कर दिया कि उसने अपनी जीवनलीला को समाप्त करना ही उचित समझा। मगर दर्शन को यह नहीं ज्ञात होगा कि उसकी मृत्यु तो एक ही बार होगी, परन्तु उसकी मृत्यु के बाद उसकी मृत्यु को लगातार अपमानित किया जाएगा।
कथित सेकुलर हिन्दू समाज के साथ-साथ भारत सरकार को कोसने के लिए तैयार हो गए। दर्शन सोलंकी की आत्महत्या को लेकर शोर मचा और लगातार ही भारत की आत्मा अर्थात प्रभु श्री राम को भी कोसा जाने लगा। आईआईटी मुंबई के कुछ विद्यार्थियों ने हिन्दुओं के मध्य परस्पर मतभेद एवं घृणा उत्पन्न करने का प्रयास किया। एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें दर्शन सोलंकी की आत्महत्या के लिए जांच की प्रतीक्षा न करते हुए प्रभु श्री राम का भी अपमान किया गया। हालांकि इसके विरोध में देवी शबरी-अम्बेडकर स्टूडेंट फोरम ने भी तत्काल ही मुंबई पुलिस से मांग की थी कि वह ऐसे विद्वेष फैलाने वाले लोगों पर कार्रवाई करें।
Deeply hurt by casteist remarks,insult of Prabhu Shri Ram @iitbombay by a PhD.student Amarkant Thakur in the presence of @iitbombay security personnel & @MumbaiPolice. We request @iitbombay @NCSC_GoI @ncsthq @EduMinOfIndia @CPMumbaiPolice @maharashtra_hmo @MSJEGOI to take action pic.twitter.com/5cZFzj82yx
— Devi Shabari-Ambedkar Student Forum, DSAF, IITB (@DSAF_IITB) February 24, 2023
बीबीसी ने लगातार इस बात को लिखा कि दर्शन सोलंकी के मामले में जातिगत भेदभाव ही दोषी है। इतना ही नहीं कई ”छात्रों” के हवाले से यह तक स्थापित करने का प्रयास किया कि कैम्पस में जातिगत भेदभाव होता है। दर्शन सोलंकी की बहन के हवाले से यह बात बार-बार दोहराई गई कि दर्शन सोलंकी को उसकी जाति को लेकर परेशान किया जाता था। 22 फरवरी 2023 को प्रकाशित अपनी रिपोर्ट में उसने यही लिखा कि नाम न छापने की शर्त पर विद्यार्थियों ने यह कहा, वह कहा। और यह तक कहा कि आईआईटी मुंबई में सपोर्ट सिस्टम नहीं है और चूंकि यहां पर सवर्ण छात्र अधिक हैं तो यही संस्थान का व्यवहार निर्धारित करते हैं।
इसमें यह लिखा कि वर्ष 2017 में बनी एसएसटी सेल बेकार है और आईआईटी मुंबई के आंबेडकर पेरियार फुले स्टूडेंट सर्किल ने दर्शन की खुदकुशी को “संस्थानिक हत्या” बताया था। मीडिया के एक बहुत बड़े वर्ग में इसे एक जातीय एंगल इस प्रकार दे दिया गया था कि भारत में ऐसा ही होता है।
दरअसल, मीडिया का एक बहुत बड़ा वर्ग है, जिसके भीतर अभी तक यह कुंठा है कि कैसे भारत में वह सरकार बन गई जिसका विरोध वह लगातार करते रहे और सरकार बनी ही नहीं है बल्कि वह पूरे विश्व में एक नए विमर्श को लेकर आगे जा रही है, और वह है ”सबका साथ, सबका विकास और सबका प्रयास!”
विभाजनकारी मीडिया एवं वह शक्तियां जो भारत को आगे नहीं बढ़ते देखना चाहती हैं, वह हर मामले को अपने एजेंडा को लेकर ट्विस्ट करती हैं एवं हिन्दू तथा भारत विरोधी विमर्श का निर्माण करती है। वह उसी विमर्श की पूंछ पकड़ कर चलती है, जिसे भारत तोड़ने वाली शक्तियां अपने स्वार्थ के लिए निर्मित कर रही हैं।
द प्रिंट ने भी 28 मार्च 2023 को प्रकाशित अपनी रिपोर्ट में लिखा कि आईआईटी मुंबई के छात्र दर्शन सोलंकी की आत्महत्या में प्राप्त ”सुसाइड नोट” जाति-आधारित उत्पीड़न का संकेत मिलता है।
https://twitter.com/AnuragT67236295/status/1645605660963512320?
परन्तु जब इकबाल अरमान खत्री को दर्शन सोलंकी की आत्महत्या के मामले में हिरासत में लिया गया, तो द प्रिंट ने यह नहीं लिखा कि आखिर सुसाइड नोट किस पर आधारित शोषण का उल्लेख करता है। हालांकि अपराध अपराध होता है, उसका जातिधर्म नहीं होता तथा अपराधी अपराधी ही होता है। उसे जाति या धर्म के आधार पर नहीं आंका जा सकता है। फिर भी मीडिया तथा गैर सरकारी संगठनों का एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा है जो न्याय, अपराध जैसे क्षेत्रों को भी जाति एवं धर्म के आधार पर आंकता है। ऐसा क्या कारण है, वह समझ नहीं आता। प्रश्न यह भी है कि जब कोई दलित छात्र किसी मजहबी कट्टरता का शिकार होता है, मजहबी कट्टरपंथी सोच का शिकार होता है तो न ही बीबीसी, द प्रिंट जैसे मीडिया संस्थान उसके लिए न्याय की मांग करते हैं और न ही यह कहते हैं कि उस व्यक्ति को उसकी धार्मिक पहचान के चलते शिकार बनाया गया।
क्या किसी पीड़ित व्यक्ति के लिए न्याय की मांग केवल तभी की जाएगी जब उसकी पहचान उसकी हिन्दू पहचान नहीं होगी और केवल दलित पहचान होगी ? दुर्भाग्य की बात तो यह है कि ऐसे मीडिया संस्थान पसमांदा मुस्लिमों की भी पीड़ा को नहीं उठाते हैं। उनके लिए पीड़ा या आत्महत्या केवल तभी शोर मचाने योग्य है जब उसका आरोप वह या तो हिन्दुओं पर या हिन्दुओं के बहाने उस सरकार पर लगा सकें, जिसका बाल भी बांका वह अपने इतने वर्षों के दुष्प्रचार के बावजूद नहीं कर पाए हैं।
twitter पर कई यूजर्स ने मीडिया के उस दोहरे चेहरे को दिखाया जिसमें अरमान इकबाल खत्री के पूरे नाम को छिपाकर उसी एजेंडे को ही आगे बढ़ा दिया जाए, जो आरम्भ से चलता आ रहा है,
Carefully written the name Armaan Khatri instead of Armaan iqbal khatri, so that the name sounds like a Hindu.
Bheem-meem wali gulugulu chalti rehni chahie after all.
Also, name of the reporter- #DarshanSolanki pic.twitter.com/1MGPpN0sms
— Ananya Mishra (@Vintage__Vibes_) April 10, 2023
क्योंकि यदि न्याय ही उनका उद्देश्य होता तो यह पता चलने पर कि अरमान इकबाल खत्री ने साम्प्रदायिक कारणों से दर्शन सोलंकी को इस प्रकार धमकाया था कि उसने आत्महत्या ही करना उचित समझा, वह लोग संतुष्टि व्यक्त करते, परन्तु दुर्भाग्य से ऐसा नहीं है। सारा एक्टिविज्म क्या मात्र भारत एवं हिन्दुओं के विरुद्ध लिखना और आन्दोलन करना है या इस एक्टिविज्म का उद्देश्य पीड़ित को न्याय दिलाना है ? दर्शन सोलंकी की आत्महत्या के मामले में पकड़े गए इकबाल अरमान खत्री को लेकर पसरी चुप्पी एक बार फिर से उसी षड्यंत्र की ओर संकेत करती है जो भारत के साथ लगातार होता आ रहा है।
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