वास्तव में यह एक नया और गंभीर सुरक्षा पहलू है। लेकिन सूचना का यह युद्ध या प्रचार का युद्ध सिर्फ एक पहलू है। दूसरे पहलू पर ध्यान दें, तो हम देख सकते हैं कि बहुत सारे ऐप आम लोगों के लिए, विशेषकर कच्ची उम्र के लोगों के लिए एक लत की तरह होते हैं।
चीन के स्वामित्व वाले छोटे वीडियो बनाने वाले ऐप टिकटॉक पर अब आस्ट्रेलिया ने भी प्रतिबंध लगा दिया है। अमेरिका इस पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने पर विचार कर रहा है। इसके पहले भी लगभग एक दर्जन देश इस ऐप पर प्रतिबंध लगा चुके हैं। विषय यह नहीं है कि प्रतिबंध लगाने वालों में सबसे पहला देश भारत था, बल्कि विषय यह है कि हमें इस घटनाक्रम की पूरी गहराई को अभी भी बार-बार देखना होगा।
जिन देशों ने टिकटॉक पर प्रतिबंध लगाया है, उन सभी ने इसे अपनी ओर से प्रमाणित पाया है कि यह जासूसी के लिए बड़े पैमाने पर डाटा एकत्र करता है और उसे अपने पितृ देश- चीन भेज देता है। इस प्रकार के ऐप अपने उपयोगकर्ताओं के जरिए न केवल उनके बारे में सारी जानकारी उठा लेते हैं, बल्कि संकलित-समेकित डाटा से उस स्थिति में भी पहुंच जाते हैं, जहां वे उपयोगकर्ताओं के बड़े वर्ग के निर्णयों को प्रभावित कर सकते हैं। इसका सबसे ज्यादा खामियाजा उन देशों को भुगतना पड़ता है, जो लोकतांत्रिक होते हैं और अपेक्षाकृत खुले ढंग से जीना पसंद करते हैं।
हाल ही में इसके पहले यह जानकारी सामने आई थी कि किस तरह सोशल मीडिया के दायरे में रखे जाने वाले कुछ ऐप्स ने मतदाताओं के बारे में, उनकी पसंद और नापसंद के बारे में, उनके भौतिक और भावनात्मक कमजोर बिंदुओं के बारे में, और वे किस दिशा में क्या सोच सकते हैं – इसका अनुमान लगाने के बारे में इतनी जानकारी एकत्र कर ली थी कि वह मात्र कुछ सही या गलत सूचनाओं को प्रसारित करके ही उनके मतदान के निर्णय को प्रभावित करने की स्थिति में आ चुके थे। अफवाहें फैला सकने की क्षमता- जो सूचना युद्ध का एक बड़ा हथियार है- दुनिया भर में कई बार देखी और परखी जा चुकी है। लेकिन ऐप आधारित सूचना युद्ध में ऐसी सटीक अफवाह पैदा की जाती है, जो सबसे बड़ी संख्या में लोगों को सबसे ज्यादा प्रभावित करती हो।
जिन देशों ने टिकटॉक पर प्रतिबंध लगाया है, उन सभी ने इसे अपनी ओर से प्रमाणित पाया है कि यह जासूसी के लिए बड़े पैमाने पर डाटा एकत्र करता है और उसे अपने पितृ देश- चीन भेज देता है। इस प्रकार के ऐप अपने उपयोगकर्ताओं के जरिए न केवल उनके बारे में सारी जानकारी उठा लेते हैं, बल्कि संकलित-समेकित डाटा से उस स्थिति में भी पहुंच जाते हैं, जहां वे उपयोगकर्ताओं के बड़े वर्ग के निर्णयों को प्रभावित कर सकते हैं।
गंभीर सुरक्षा पहलू
वास्तव में यह एक नया और गंभीर सुरक्षा पहलू है। लेकिन सूचना का यह युद्ध या प्रचार का युद्ध सिर्फ एक पहलू है। दूसरे पहलू पर ध्यान दें, तो हम देख सकते हैं कि बहुत सारे ऐप आम लोगों के लिए, विशेषकर कच्ची उम्र के लोगों के लिए एक लत की तरह होते हैं। इसके शारीरिक और मनोवैज्ञानिक प्रभाव क्या होते हैं, वह सार्वजनिक जानकारी में है। इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि वे बच्चे, जो अपने देश की अगली पीढ़ी का गठन करने वाले हैं, वे – क्या सोचेंगे, क्या समझेंगे, क्या उनके मन में बैठेगा और उनकी किसी भी नई बात को सीखने-समझने की क्षमता क्या होगी, किस तरीके से वह सीख सकेंगे – यह समस्त चीजें ऐप की निर्माता कंपनी निर्धारित कर लेती है। बच्चों में लत लगाने की इसी क्षमता के कारण खुद चीन में टिकटॉक के उस संस्करण की अनुमति नहीं है, जो दुनिया भर में चल रहा है। इस प्रकार यह संस्कृतियों का टकराव भी है। वे देश जो खुलेपन पर और लोकतंत्र पर विश्वास करते हैं, उनके सामने आसन्न खतरा बंद, तानाशाह और बर्बर समाजों की ओर से है।
यह एक बड़ी चुनौती है। तकनीक का सृजन विश्व के किसी भी कोने में हो सकता है, लेकिन उसका प्रभाव या दुष्प्रभाव विश्व के हर कोने में होता है। इस घटनाक्रम को अगर इन समाचारों के साथ देखा जाए कि किस तरह चीन ने भारत सहित कई देशों में परोक्ष और प्रत्यक्ष ढंग से राजनीति को प्रभावित करने की कोशिश की है, उसके लिए फंडिंग की व्यवस्था की है, तो निश्चित रूप से यह देश की संप्रभुता के लिए एक चुनौती जैसी बात है। हमारा लोकतंत्र, लेकिन हस्तक्षेप चीन का? यह चुनौती सिर्फ भारत के सामने नहीं है बल्कि दुनिया के लगभग हर महत्वपूर्ण लोकतंत्र के सामने है। इसका कोई लोकतांत्रिक समाधान करना ही होगा।
@hiteshshankar
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