उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ शुक्रवार को उभरते भारत की छवि को धूमिल करने वालों पर जमकर बरसे और इसे भारत के खिलाफ ‘विदेशी साजिश’ करार दिया। उन्होंने कहा कि भारत विरोधी ताकतों की असल मंशा भारत की बढ़ती रफ्तार पर लगाम लगाना है।
उपराष्ट्रपति धनखड़ विज्ञान भवन में स्वामी दयानंद सरस्वती की 200 वीं जयंती पर स्मारक डाक टिकट जारी करने के बाद कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा, “कुछ विदेशी संस्थाएं कार्यरत हैं और वह हमको ज्ञान देते हैं कि हमारा भारत कैसा है? वह हमें हमारी जमीन के बारे में बताते हैं जिसकी जानकारी हमको है। उनका उद्देश्य है भारत की उभरती हुई गति पर अंकुश लगाना।”
उन्होंने आगे कहा, “उन संस्थाओं के अंदर अनेक देशों के विद्यार्थी और अध्यापक हैं पर यह अनुचित कार्य हमारे ही कुछ लोग क्यों करते हैं किसी और देश के लोग क्यों नहीं करते हैं। यह बड़े ही सोच और चिंतन का विषय है।”
कांग्रेस नेता राहुल गांधी का नाम लिए बिना उपराष्ट्रपति ने कहा कि कुछ लोगों को विदेश जाकर वहां से अपने ही देश को बदनाम करने की कोशिश करते देखना दुखदायी है। उन्होंने कहा, “कुछ दर्द होता है, कुछ पीड़ा होती है जब अपनों में से कुछ लोग विदेशी भूमि पर जाकर उभरते हुए भारत की तस्वीर को धूमिल करने का प्रयास करते हैं। इस पर अंकुश लगना चाहिए।”
उन्होंने कहा कि भारत और भारतीयता में सच्चे मन से विश्वास करने वाला विदेशी धरती से हमारी संस्थाओं पर निराधार टिप्पणी करने के बजाय हमेशा अपने देश के बारे में पहले सोचेगा और देश की सुधार प्रक्रिया में योगदान देगा। धनखड़ ने आगे कहा कि हो सकता है कमियां हों उन कमियों को दूर करने की सोचेगा पर विदेश में जाकर नुक्ताचीनी करना, विदेश में जाकर संस्थाओं के ऊपर घोर टिप्पणी करना हर मापदंड से अमर्यादित है।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सामाजिक बुराइयों का मुकाबला करने के लिए स्वामी दयानंद सरस्वती की दृष्टि और कार्यों को आज भी प्रासंगिक बताते हुए कहा कि बेटी बचाओ बेटी पढाओ और नई शिक्षा नीति जैसी सरकारी पहलों में यही प्रतिध्वनित होती है। उन्होंने अस्पृश्यता जैसी सामाजिक बुराइयों के उन्मूलन और शिक्षा के माध्यम से महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए स्वामी दयानंद के समर्पित प्रयासों का उल्लेख किया, जो स्वतंत्र भारत में सामाजिक कल्याण की नींव बना रहे हैं।
उपराष्ट्रपति ने आधुनिक भारत के विचारक-दार्शनिक और आर्य समाज के संस्थापक के रूप में स्वामी दयानंद के योगदान को श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने कहा कि औपनिवेशिक शासन के दौरान, जब भारत ने अपने आध्यात्मिक और सांस्कृतिक बंधन खो दिए थे, स्वामी दयानंद सरस्वती ने भारत के सभ्यतागत लोकाचार को पुनर्जीवित करने के लिए तर्कसंगत दृष्टिकोण के साथ वैदिक ज्ञान को फिर से जोड़ा।
धनखड़ ने याद किया कि स्वामी दयानंद सरस्वती ने सबसे पहले स्वराज का आह्वान किया था, जिसे लोकमान्य तिलक ने आगे बढ़ाया और एक जन आंदोलन बन गया। धनखड़ ने कहा कि स्वामी जी के लिए स्वतंत्रता, मन और आत्मा की सच्ची स्वतंत्रता से अलग नहीं थी।
धनखड़ ने यह सुनिश्चित करने के लिए स्वामी दयानद के योगदान को रेखांकित किया कि संस्कृत और हिंदी जैसी भाषाओं को उनकी योग्य पहचान मिले। “दुनिया में कोई भाषा नहीं है और कोई व्याकरण नहीं है जिसमें संस्कृत की गहराई है। यह सभी भाषाओं की जननी की तरह है, ”उन्होंने नागरिकों से अपनी जड़ों को कभी न भूलने का आह्वान किया।
डाक टिकट जारी करने का कार्यक्रम सत्या फाउंडेशन द्वारा संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय और संस्कृति मंत्रालय के सहयोग से आयोजित किया गया था।
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