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‘हमें जो कुछ मिला, वह दूसरों की सेवा के लिए है’ : मोहनराव भागवत

राष्ट्रीय सेवा भारती की ओर से जयपुर में हो रहा है तीन दिवसीय सेवा संगम, देश के विभिन्न क्षेत्रों से लगभग 4,000 से अधिक प्रतिनिधि ले रहे हैं भाग।

by अरुण कुमार सिंह and अश्वनी मिश्र
Apr 7, 2023, 03:33 pm IST
in भारत, संघ
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राष्ट्रीय सेवा भारती की ओर से आयोजित जयपुर में तीन दिवसीय सेवा संगम का उद्घाटन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने किया। वाल्मीकि धाम, उज्जैन के पीठाधीश्वर बाल योगी उमेशनाथ की अध्यक्षता में आयोजित इस उद्घाटन समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में पीरामल समूह के अध्यक्ष अजय परिमल उपस्थित रहे। संगम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले, अखिल भारतीय कार्यकारिणी मंडल के सदस्य भैयाजी जोशी सहित संघ और अन्य संगठनों के वरिष्ठ कार्यकर्ता उपस्थित रहे। संगम में कश्मीर से कन्याकुमारी और कच्छ से लेकर कछार तक के वे प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं, जो अपने-अपने क्षेत्र में सेवा कार्य करते हैं।

समारोह को संबोधित करते हुए श्री मोहन भागवत ने कहा कि संघ के स्वयंसेवक पहले से ही सेवा कार्य करते रहे हैं। लेकिन डॉक्टर हेडगेवार की जन्म शताब्दी के अवसर पर सेवा कार्यों को गति देने के लिए सेवा विभाग बना। इसके बाद सेवा की बड़ी सृष्टि खड़ी हुई है। सेवा मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्ति है। जब किसी के दुःख को देखकर कुछ करते हैं तो उसे सेवा कहते हैं। सेवा का भाव संवेदना और करुणा से आता है। हम सब एक हैं, ऐसा भाव होगा तो किसी का दुःख नहीं देखा जाएगा। सेवा सत्य की प्रत्क्षत अनुभूति कराती है। उन्होंने कहा कि हम लोग समाज के अंदर हैं। हमको विषमता नहीं चाहिए। हम सबमें एक ही प्राण हैं। शरीर में सुई चुभने पर सारा शरीर उसको निकालने के लिए सक्रिय हो जाता है। ऐसे ही समाज में कोई पिछड़ गया है, तो उसे आगे लाने की जिम्मेदारी पूरे समाज की है। समाज में कोई दुर्बल, पिछड़ा नहीं रहे, यह हमारा दायित्व है। सेवा स्वस्थ समाज को बनाती है। सेवा करने से अहंकार चूर होता है। सबको समान और अपने जैसे मानकर ही सेवा कर सकते हैं। हमें जो कुछ मिला है, वह दूसरे की सेवा के लिए मिला है। उन्होंने कहा कि हमें करुणा के आधार पर चलना है, न कि स्वार्थ के आधार पर। सेवा गुप्त होनी चाहिए। सेवा से शुचिता प्राप्त होती, तन मन की शुद्धि होती है। उन्होंने कहा कि समाज के प्रत्येक वर्ग का सर्वांगीण विकास हो, सब के दुख दूर हों, कोई छोटा-बड़ा नहीं, कोई ऊंच-नीच नहीं, सब अपने हैं, ऐसा भाव लेकर संघ का कार्यकर्ता समाज जीवन में प्रामाणिकता के साथ कार्य करता है।

पीठाधीश्वर बाल योगी उमेशनाथ जी महाराज ने अपने आशीर्वचन में कहा कि हम देखते हैं कि देश के भीतर से ही कुछ लोग देश तोड़ने के काम में लगे हुए हैं। और यह क्रम लंबे समय से चला आ रहा है, लेकिन हमें इस पर रोक लगानी होगी। इसे रोकना होगा। लेकिन इस पर रोक लगेगी तब लगेगी जब समरस समाज होगा। हमारे समाज में एक वर्ग है जो वंचित, दुर्बल है। उन्हें हम अपने पास लाएं। उनके अंदर भेदभाव की भावना को समाप्त करें। जब सारे लोग एक साथ होंगे तो ऐसी देश विरोधी शक्तियों से हम लड़ पाएंगे। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ समरसता के काम में लगा हुआ है। सामाजिक समरसता के क्षेत्र में संघ की वही सोच है जो हम सब की है। कोई ऊंचा नहीं, कोई बड़ा नहीं, सारे लोग समान हैं, सभी एक ईश्वर की ही संतान हैं। उसके ही अंश हैं। इसलिए सब भाइयों को साथ लाना है। सबको साथ लेकर चलना है। यही हमारा ध्येय होना चाहिए।

योगी उमेशनाथ ने कहा कि आज एक और चीज संज्ञान में आती है कि सुबह उठते समय घंटे घड़ियाल की आवाज बंद हो गई है और सुनाई क्या देता है पूरे दिन पांच समय की अजान। हमारी दादी, माता जी हम सबको यह कहकर उठाती थीं कि उठो नमाज खत्म हो गई है। यानी सुबह हो गई। मतलब जिस देश में शंख की आवाज से सुबह होनी चाहिए वहां हमें ऐसी चीजों से जागना होगा। आज ऐसी स्थिति इसलिए आई है क्योंकि हम अपने संस्कार भूल गए। अपने मठ मंदिर को भूल गए। अपनी पूजा पद्धति, धार्मिक रीति रिवाज से दूर हुए। इसका लाभ घुसपैठिए ने उठाया और हमें आपस में ही बांट दिया। उमेश नाथ जी ने कहा कि हम देखते हैं कि हमारे प्रत्येक वर्ग में किसी न किसी संत का जन्म हुआ। और यह सारे संत समाज को जोड़ने के लिए सदैव तैयार दिखे। उन्होंने राष्ट्र निर्माण में योगदान दिया। इसलिए सब भेदों को भुलाकर सबको गले लगाना है।

मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित अजय परिमल ने कहा कि कल ही हनुमान जी की जयंती थी। हनुमान जी सेवा के प्रतीक थे। उनके जैसे सेवक कम मिलते हैं। उन्होंने कहा कि संघ के स्वयंसेवक पूरे भारत में सेवा कार्य करके भारत के नवनिर्माण में योगदान दे रहे हैं। संघ के स्वयंसेवकों ने कोरोना काल में भी सेवा के माध्यम से हजारों लोगों का जीवन बचाया। उन्होंने यह भी कहा कि संघ के स्वयंसेवक भारत-चीन और भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय भी देश समाज की सेवा में आगे रहे। उन्होंने कहा कि संघ के सेवा कार्यों से उन्हें प्रेरणा मिलती है। उन्होंने कहा कि सेवा करके हम इस धरती में रहने का ऋण चुका रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि हमारे पास जो कुछ है, वह समाज के लिए है। समाज को आप जितना देंगे, उससे कई गुना आप प्राप्त करेंगे। उन्होंने परिमल समूह द्वारा किए जा रहे सेवा कार्यों के बारे में बताया कि यह समूह 100 जनजाति जिलों में सेवा कार्य कर रहा है।

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