भारत की आत्मा गाँवों में बसती है और जब तक गाँवों का उत्थान नहीं होगा, तब तक सही मायने में विकास की कल्पना करना बेमानी है, इसी सूत्र वाक्य के तहत डा.अनिल प्रकाश जोशी के मार्गदर्शन में हिमालयन एनवायरनमेंटल स्टडीज एंड कंजर्वेशन ऑर्गनाइजेशन”हेस्को” उत्तराखण्ड समेत हिमालयी राज्यों के गाँवों की तरक्की की मुहिम में जुटा हुआ है। हिमालयी राज्यों के लगभग 10 हजार गाँवों में हेस्को की ओर से किये गए विकास कार्यों की बदौलत पाँच लाख से अधिक लोगों को प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से लाभ मिल रहा है। हेस्को ने भारतीय सेना के साथ मिलकर सीमावर्ती इलाकों में “शान्ति के लिये तकनीकी पहल” मुहिम के अंतर्गत इन क्षेत्रों में उत्थान की मुहिम छेड़ी है। पर्वतीय क्षेत्रों में पनचक्की, घराटों और जल-स्रोतों को पुनर्जीवित करने की दिशा में हेस्को ने उल्लेखनीय भूमिका निभाई है।
जन्म – 6 अप्रैल सन 1955 कोटद्वार, पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखण्ड.
डा.अनिल प्रकाश जोशी का जन्म 6 अप्रैल सन 1955 को उत्तराखण्ड में पौड़ी गढ़वाल के कोटद्वार में एक किसान परिवार में हुआ था। उन्होंने वनस्पति विज्ञान में मास्टर डिग्री और पारिस्थितिकी में डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त की। सन 1976 में डा. अनिल प्रकाश जोशी को राजकीय महाविद्यालय में प्रवक्ता के पद पर नियुक्ति मिली थी। उनका जीवन हिमालय के ही गांव से शुरू हुआ था इस लिए प्रकृति, पर्यावरण, वन और जल उनके जीवन का एक अटूट हिस्सा थे। हिमालय और पहाड़ के गाँवों की दुर्दशा उन्हें हर वक्त बेचैन किये रहती थी। अनिल जोशी ने महसूस किया कि धीरे-धीरे गांवों में भी पर्यावरण को नुकसान होने लगा है। देश की मिट्टी, पानी, जंगल और हवा को पैदा करने वाले और उसे बचाने वाले गांवों में भी पानी का संकट खड़ा होने लगा है। उत्तराखण्ड राज्य गंगा, यमुना का प्रदेश है, लेकिन यहां भी 7 से 8 हजार ऐसे गांव हैं जहां पानी का घोर संकट खड़ा हो गया है। उन्होंने गाँवों में स्थानीय संसाधनों पर आधारित रोजगार और विज्ञान व नई तकनीकी विकसित करने की मुहिम के लिए एक संगठन बनाकर इस दिशा में कार्य करने का कठिन फैसला कर लिया था। अनिल जोशी के साथियों और उनके पीएचडी के विद्यार्थियों ने मिलकर इसे सुधारने की कोशिश करने का फैसला कर किया था। लम्बे विचार–मन्थन के पश्चात सन 1979 में उन्होंने नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और एक गैर-सरकारी संगठन हिमालयी पर्यावरण अध्ययन और संरक्षण संगठन “हेस्को” की स्थापना की।
हिमालयी पर्यावरण अध्ययन और संरक्षण संगठन”हेस्को” के माध्यम से उत्तराखण्ड, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल के साथ ही पूर्वोत्तर भारत के राज्यों में गाँवों के उत्थान के लिये मुहिम तेज की गई और 35 साल के इस सफर में एक के बाद एक अनेक उपलब्धियाँ “हेस्को” के खाते में जुड़ती चली गईं। अनिल जोशी का मानना है कि स्थानीय संसाधनों को उपयोग में लाकर ही गाँव की आर्थिकी को बढ़ाया जा सकता है। इसी कड़ी में “लोकल नीड मीट लोकली” नारे के तहत हेस्को ने मुहिम को आगे बढ़ाया और करीब 10 हजार गाँवों में पाँच लाख लोग विकास कार्यों का लाभ उठा रहे हैं। घराटों को नई तकनीकी से जोड़ा गया, जिससे सम्बन्धित गाँवों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति में सुधार आया है। गाँवों में पारम्परिक खेती को बढ़ावा दिया गया तो स्वरोजगार के लिहाज से स्थानीय उत्पादों को भी प्रोत्साहित किया गया। शान्ति के लिये तकनीकी पहल हेस्को की अहम मुहिम है, इसके तहत 11 राज्यों के बॉर्डर एरिया में सेना के साथ मिलकर स्थानीय समुदाय के उत्थान का कार्य किया जा रहा हैं। इस कड़ी में युवाओं को प्रशिक्षण दिया गया, इससे न सिर्फ ग्रामीणों को लाभ पहुँचा बल्कि नीति निर्धारकों और अधिकारियों का ध्यान भी गाँवों की तरफ केन्द्रित हुआ है। इस मुहिम के दौरान जल-स्रोतों को पुनर्जीवित करने का कार्य भी प्रारम्भ किया गया और अब तक 17 जल-स्रोत जीवित हो चुके हैं। सकल घरेलू उत्पाद”जीडीपी” की तर्ज पर सकल पर्यावरणीय उत्पाद “जीईपी” के लिये भी अनिल जोशी ने मुहिम छेड़ी हैं, जीडीपी के साथ जीईपी का भी देश के विकास में समानान्तर उल्लेख होना जरूरी है। हेस्को ने स्कूलों के जरिए भी गाँवों को गोद लेने की शुरुआत की, जिसमें देश के नामी स्कूल शामिल हैं। भारतीय लोक प्रशासन संस्थान प्रत्येक वर्ष प्रशासनिक सेवा में बेहतर कार्य करने वाले अधिकारियों को पुरस्कृत करता है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सुझाव पर उसने उत्तराखण्ड की संस्था हिमालयन एनवायरनमेंटल स्टडीज एंड कंजर्वेशन ऑर्गनाइजेशन (हेस्को) के साथ नागालैंड की एलोथिरीज क्रिश्चन सोसाइटी को भी ने इस पुरस्कार के लिये चुना है।
अनिल जोशी के अनुसार पर्यावरण को सुरक्षित रखकर इकोनॉमी को बढ़ावा देने से ही इस देश और दुनिया के सामने खड़े संकट का उत्तर दिया जा सकता है। दुनिया में सबसे बड़ी समस्या है कि जहां इकोलॉजी पनपती है, वहां इकोनॉमी नहीं होती और जहां इकोनॉमी पनपती है वहां इकोलॉजी नहीं होती। जहां गांव, वन, नदियां और जंगल है, वहां पर इकोलॉजी तो होती है लेकिन वहां पर इकोनॉमी नहीं होती है, आज दुनिया की पूरी इकोनॉमी प्राथमिक और कृषि उत्पादों के मूल्यवर्द्धन पर निर्भर है, जबकि यह प्राथमिक उत्पाद गांव में होते हैं। पूरी दुनिया की इकोनॉमी इस बात पर निर्भर है कि कृषि उत्पाद, वनों के उत्पाद और जड़ी-बूटियां शहरों में मूल्यवृद्धि के लिए पहुंचे। गांव में इकोलॉजी तो थी, लेकिन इकोनॉमी नहीं थी। उन्होंने इकोलॉजी इन्क्लूसिव इकोनॉमी पर जोर देना शुरू किया हैं। गांव में अनेकों संभावनाएं हैं, गांवों में नए स्टार्टअप पैदा किए जा सकते हैं, नए रोजगार हो सकते हैं, प्राकृतिक संसाधनों पर आधारित काम शुरू हो सकते हैं। प्राकृतिक संसाधनों पर आधारित या रिसोर्स बेस्ड इकोनॉमी का काम तेज होने से संसाधन और ज्यादा बढ़ते हैं, इससे इकोलॉजी भी सुधरती है। अनिल जोशी हिमालय के अस्तित्व के लिए आर्थिक हितों और पारिस्थितिकी के बीच संतुलन कायम रखने के लिए काम करते हैं। उन्होंने स्थानीय कौशल के आधार पर विभिन्न उत्पादों को प्रोत्साहन दिया, जिससे ग्रामीण शिल्पकारों को लाभ मिला है। उन्होंने बद्रीनाथ, केदारनाथ, वैष्णो देवी, यमुनोत्री और गंगोत्री में स्थानीय खाद्यान्न से प्रसाद तैयार करने को प्रोत्साहन दिया है, जिससे वहां की फसलों और अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिला है। महिलाओं के समूह को रोजगार के नए अवसर पैदा हुए हैं। संसाधन आधारित ग्रामीण विकास पर कई सामाजिक कार्यक्रम शुरू किए हैं, जैसे महिला प्रौद्योगिकी पार्क, माउंटेन-इको सिस्टम के लिए प्रौद्योगिकी हस्तक्षेप, पर्वत में पारिस्थितिक खाद्य मिशन और स्वरोजगार के लिए महिलाओं की पहल और गाँवों को पनचक्कियाँ, खाद बनाने के गड्ढे, शौचालय, योजना-आधारित दवाएं और हर्बल कीटनाशक और वर्षा जल संचयन तकनीक उपलब्ध कराने में सफलता मिली हैं। एक स्थानीय झाड़ी”कुर्री” खरपतवार का उपयोग फर्नीचर, अगरबत्ती बनाने और बचे हुए ओवरों को चारे के रूप में उपयोग करने के लिए सफलता मिली हैं।
डा.अनिल प्रकाश जोशी ने इस विषय पर 60 से अधिक लेख और दस पुस्तके लिखीं है। अनिल जोशी को अशोक सामाजिक उद्यमी नेटवर्क ने उन्हें सन 1993 में अपना फेलो चुना था। भारतीय विज्ञान कांग्रेस ने उन्हें सन 1999 में जवाहरलाल नेहरू पुरस्कार से सम्मानित किया और द वीक पत्रिका ने उन्हें सन 2002 में मैन ऑफ द ईयर के रूप में चुना था। भारत सरकार ने उन्हें स्वदेशी प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देने में उनके योगदान के लिए सन 2006 में पद्मश्री सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित किया और उसी वर्ष ग्रामीण विकास के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग में उनके प्रयासों के लिए उन्हें जमनालाल बजाज पुरस्कार दिया गया था। उन्हें उत्तराखंड में पर्यावरण संरक्षण के लिए सन 2020 में नागरिक पुरस्कार पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। डा.अनिल प्रकाश जोशी 25 दिसंबर सन 2020 को प्रसारित होने वाले कौन बनेगा करोड़पति कार्यक्रम के कर्मवीर एपिसोड में भी सम्मिलित हुए थे।
डा.अनिल प्रकाश जोशी के सकल पर्यावरण उत्पाद जीईपी की उनकी अवधारणा को उत्तराखंड राज्य ने अपनाया है। उनके प्रयोगों को विशेष रूप से जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश में अपनाया गया है। वह पर्यावरण की बेहतरी को किए गए अपने कार्यों और प्रयासों के लिए देश-विदेश में जाने जाते हैं। उनके प्रयासों का ही नतीजा है कि हिमालयी राज्यों की सरकारें, विभिन्न महत्वपूर्ण संस्थाएं व विश्वविद्यालय इस ओर गंभीरता से काम कर रहे हैं।
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