आत्मज्ञान की साधना के लिए तीन गुणों बल, बुद्धि और विद्या की अनिवार्यता होती है। निर्बल व कायर व्यक्ति साधना का अधिकारी नहीं हो सकता।
भारतीय-दर्शन में सेवाभाव को अत्यधिक महत्व दिया गया है। यह सेवाभाव ही मनुष्य को निष्काम कर्म के लिए प्रेरित करता है और इस सेवाभाव का उत्कृष्टतम उदाहरण हैं महाबली हनुमान। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के जीवन आदर्शों का दिव्य प्रासाद महावीर के प्रखर चरित्र की आधारशिला पर ही टिका है। बजरंगबली, संकटमोचन, अंजनिसुत, पवनपुत्र, मारुतिनन्दन आदि नामों से विख्यात महावीर हनुमान कलियुग के जाग्रत देवता हैं। भगवान शिव के 11वें रुद्रावतार और हिन्दू धर्म के अष्ट चिरंजीवियों में शुमार महावीर हनुमान के जीवन चरित में आदर्शों की पराकाष्ठा प्रतिबिंबित होती है।
वाल्मीकि रामायण में उल्लेख मिलता है कि आत्मज्ञान की साधना के लिए तीन गुणों बल, बुद्धि और विद्या की अनिवार्यता होती है। निर्बल व कायर व्यक्ति साधना का अधिकारी नहीं हो सकता। बुद्धि और विचार शक्ति के बिना साधक पात्रता विकसित नहीं कर पाता और विद्यावान व्यक्ति ही आत्मज्ञान हासिल कर माया की ग्रन्थि को खोल सकने में सक्षम हो सकता है। इन तीनों गुणों का अद्वितीय समन्वय महावीर हनुमान के जीवन में दिखायी देता है।
महर्षि वाल्मीकि के अनुसार प्रभु श्रीराम के जीवन का प्रत्येक महत्वपूर्ण कार्य भक्त शिरोमणि हनुमान के द्वारा ही सम्पन्न हुआ। चाहे प्रभु श्रीराम की वानरराज सुग्रीव से मित्रता करानी हो, सीता माता की खोज अथाह सागर लांघना हो, स्वर्ण नगरी को जलाकर लंकापति का अभिमान तोड़ना हो, संजीवनी लाकर लक्ष्मण जी की प्राण रक्षा करनी हो। प्रत्येक कार्य में भगवान राम के प्रति उनकी अनन्य आस्था प्रतिबिम्बित होती है।“रामकाज कीन्हें बिना मोहिं कहां विश्राम” की उक्ति को सार्थक करने वाले हनुमान जी का समूचा जीवन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम और माता सीता की सेवा में समर्पित था।
हनुमान जी सही मायने में सर्वतोमुखी शक्ति के पर्याय कहे जाते हैं। जितेन्द्रिय और बुद्धिमानों में श्रेष्ठतम महावीर शरीर के साथ-साथ मन से भी अपार बलशाली थे। अष्ट चिरंजीवियों में शुमार महाबली हनुमान अपने इन्हीं सद्गुणों के कारण देवरूप में पूजे जाते हैं। उनके ऊपर “राम से अधिक राम के दास ” की उक्ति अक्षरश: चरितार्थ होती है।
हनुमान जी के बल और बुद्धि से जुड़ा यह प्रसंग हम सब जानते हैं कि श्री राम की मुद्रिका लेकर महावीर हनुमान जब सीता माता की खोज में लंका की ओर जाने के लिए समुद्र के ऊपर से उड़ रहे थे तभी देवताओं के संकेत पर सर्पों की माता सुरसा उनके मार्ग में आकर कहा, “आज कई दिन बाद मुझे इच्छित भोजन प्राप्त हुआ है।” इस पर हनुमान जी बोले “मां, अभी मैं रामकाज के लिए जा रहा हूं, मुझे समय नहीं है। जब मैं अपना कार्य पूरा कर लूं तब तुम मुझे खा लेना। पर सुरसा नहीं मानी और उन्होंने हनुमान जी को खाने के लिए अपना बड़ा सा मुंह फैलाया यह देख हनुमान ने भी अपने शरीर को दोगुना कर लिया। सुरसा ने भी तुरंत सौ योजन का मुख कर लिया। यह देख हनुमान जी लघु रूप धरकर सुरसा के मुख के अंदर जाकर बाहर लौट आये। हनुमान जी बोले,” मां आप तो खाती ही नहीं है, अब इसमें मेरा क्या दोष ?” सुरसा हनुमान का बुद्धि कौशल को देखकर दंग रह गयी और उसने उन्हें कार्य में सफल होने का आशीर्वाद देकर विदा कर दिया। इसी तरह बजरंगबली ने अपने बुद्धि कौशल का सिंहिका और लंकिनी नामक राक्षसियों को भी दिया।
रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा।
पौराणिक प्रसंग है कि तुलसीदास जी से पहले हनुमान जी की मुलाकात द्वापरयुग में महाभारत यद्ध से पहले भीम से हुई थी। भीम की विनती पर युद्घ के समय हनुमान जी ने पाण्डवों की सहायता करने का आश्वासन दिया था। माना जाता है कि महाभारत युद्घ के समय अर्जुन के रथ का ध्वज थाम कर महावीर हनुमान बैठे थे। इसी कारण तीखे बाणों से भी अर्जुन का रथ पीछे नहीं हुआ और संपूर्ण यद्ध के दौरान अर्जुन के रथ का ध्वज लहराता रहा। इसके बाद जब भीम तथा अर्जुन को अभिमान हो गया था तब श्रीकृष्ण के आदेश पर हनुमान जी ने इनका अभिमान चूर किया था।
जानना दिलचस्प हो है कि तुलसीदास की रामभक्ति की परीक्षा लेने के लिए एक बार बादशाह अकबर ने तुलसीदास जी को अपने दरबार में बुलाकर कोई चमत्कार दिखाने को कहा, जिसे तुलसीदास जी ने अस्वीकार कर दिया। इस पर क्रोधित होकर अकबर ने उनको जेल में डाल दिया। जेल में तुलसीदास जी ने हनुमान की अराधना की। इतने में चमत्कार यह हुआ कि हजारों बंदरों ने अचानक अकबर के महल पर आक्रमण कर दिया। बंदरों के उत्पात से अकबर समेत सभी बुरी तरह भयभीत हो गये। अकबर को समझ में आ गया कि तुलसीदास जी को जेल में डालने के कारण हनुमान जी नाराज हो गये हैं। तब अकबर ने संत तुलसीदास जी से क्षमा मांगी और उन्हें जेल से मुक्त कर दिया।
हनुमान जी सही मायने में सर्वतोमुखी शक्ति के पर्याय कहे जाते हैं। जितेन्द्रिय और बुद्धिमानों में श्रेष्ठतम महावीर शरीर के साथ-साथ मन से भी अपार बलशाली थे। अष्ट चिरंजीवियों में शुमार महाबली हनुमान अपने इन्हीं सद्गुणों के कारण देवरूप में पूजे जाते हैं। उनके ऊपर “राम से अधिक राम के दास “ की उक्ति अक्षरश: चरितार्थ होती है। शायद यही कारण है कि देश में भगवान श्रीराम से अधिक उनके अनन्य भक्त महावीर हनुमान के मंदिर हैं।
चैत्र पूर्णिमा के दिन जन्मे हनुमान जी के यूं तो अनेक नाम हैं, परन्तु सर्वाधिक प्रचलित हनुमान का अर्थ है, ऐसा व्यक्ति जो मान यानी अहंकार का हनन करने वाला हो। मनीषी कहते हैं कि इष्ट का उज्जवल चरित्र ही साधकों के जीवन को गुणवान व आस्थावान बनाता है। अधिकांश संसारी लोग “अष्ट सिद्धि और नवनिधि’’ की कामना के साथ हनुमान जी को नमन करते हैं परन्तु वर्तमान समय की मांग यह है कि हम हनुमान जी से सांसारिक लाभ की बजाय उन जैसे गुणों को अपने भीतर धारण करने की याचना करें ताकि श्री हनुमान जी के दिव्य गुणों की रोशनी से हमारा जीवन-पथ आलोकित हो सके।
पौराणिक कथानक है कि जब भगवान राम जब धराधाम को त्यागने के लिए जल समाधि लेने गये तब हनुमान जी भी उनके पीछे हो लिये। तब भगवान राम ने देश में धर्म की रक्षा के लिए उनको अमरत्व का वरदान दिया। कहा जाता है कि उसी वरदान के कारण आज भी हनुमान जी पृथ्वी पर मौजूद हैं और भगवान के भक्तों तथा धर्म की रक्षा में जुटे हुए हैं। 16 शताब्दी सदी के महान संत कवि तुलसीदास जी को हनुमान की कृपा से राम जी के दर्शन प्राप्त हुए। हनुमान जी ने तुलसीदास जी से कहा था कि राम और लक्ष्मण चित्रकूट नियमित आते रहते हैं। मैं वृक्ष पर तोता बनकर बैठा रहूंगा जब राम और लक्ष्मण आएंगे मैं आपको संकेत दे दूंगा। हनुमान जी की आज्ञा के अनुसार तुलसीदास जी चित्रकूट घाट पर बैठ गये और सभी आने जाने वालों को चंदन लगाने लगे। राम और लक्ष्मण जब आये तो हनुमान जी गाने लगे-
“चित्रकूट के घाट पै, भई संतन के भीर।
तुलसीदास चंदन घिसै, तिलक देत रघुबीर।।”
इस प्रकार तुलसीदास को राम जी के दर्शन हुए।
शास्त्रों में कहा गया है कि जहां भी राम कथा होती है वहां हनुमान जी अवश्य होते हैं। इसलिए हनुमान की कृपा पाने के लिए श्री राम की भक्ति जरूरी है। श्री राम ने हनुमान जी को अपनी कला प्रदान की थी। जो राम के भक्त हैं हनुमान उनकी सदैव रक्षा करते हैं। अध्यात्म पथ के साधकों को हनुमान जी की उपासना इसलिए करनी चाहिए ताकि माया की ग्रंथि खुल जाए। महावीर हनुमान जी की पूजा-अर्चना करना उनके प्रति हमारी श्रद्धा का एक पहलू है, लेकिन उनके चारित्रिक गुणों से प्रेरणा लेना व उनके गुणों को जीवन में आत्मसात करना दूसरा। अत: यदि हम खुद को हनुमान जी का सच्चा भक्त मानते हैं, तो हमें ऐसे महान चरित्र के चारित्रिक गुणों के प्रकाश से स्वयं को प्रकाशित करने का प्रयास करना चाहिए।
चैत्र पूर्णिमा के दिन जन्मे हनुमान जी के यूं तो अनेक नाम हैं, परन्तु सर्वाधिक प्रचलित हनुमान का अर्थ है, ऐसा व्यक्ति जो मान यानी अहंकार का हनन करने वाला हो। मनीषी कहते हैं कि इष्ट का उज्जवल चरित्र ही साधकों के जीवन को गुणवान व आस्थावान बनाता है। अधिकांश संसारी लोग “अष्ट सिद्धि और नवनिधि’’ की कामना के साथ हनुमान जी को नमन करते हैं परन्तु वर्तमान समय की मांग यह है कि हम हनुमान जी से सांसारिक लाभ की बजाय उन जैसे गुणों को अपने भीतर धारण करने की याचना करें ताकि श्री हनुमान जी के दिव्य गुणों की रोशनी से हमारा जीवन-पथ आलोकित हो सके।
टिप्पणियाँ