पॉँवटा साहिब से लगी उत्तराखंड की सीमा जिसे पछुवा दून या यह कहें पश्चिमी देहरादून जिले में जनसंख्या असंतुलन की समस्या ने सिर उठा लिया है। सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जा कर बसे यूपी से आए मुस्लिम परिवारों के बीच रोहिंग्या और बांग्लादेशी मुस्लिम भी शामिल बताए जाते हैं।
पछुवा देहरादून में आखिर किसने और क्यों इन मुस्लिमों को अवैध रूप से बसने दिया? इसके पीछे वोट बैंक की राजनीति सबसे बड़ा कारण बताई जाती है। राज्य बनने के तुरंत बाद यहां नारायण दत्त तिवारी की सरकार आई और पछुवा देहरादून में सेलाकुई को सिडकुल यानी औद्योगिक क्षेत्र होने का दर्जा मिला। सरकार ने यहां 70 फीसदी रोजगार स्थानीय लोगों को दिए जाने को कहा, ताकि पहाड़ के युवाओं को रोजगार मिले, लेकिन यहां उद्योगों ने कॉन्ट्रैक्ट लेबर लगाए। यूपी के मुस्लिम ठेकेदारों ने अपने यहां से लेबर लाकर यहां उनके फर्जी प्रमाण पत्र बनवाकर उन्हें स्थानीय बेरोजगार दिखाकर नौकरियां दिलवा दी।
इसी तरह नदियों के खनन में लगे मजदूरों के लिए खेल खेला गया। इनके पीछे स्थानीय विधायकों, ब्लाक प्रमुख, ग्राम प्रधानों के द्वारा संरक्षण दिए जाने का खेल शुरू हुआ। बीजेपी की सरकार यहां थी नहीं, लिहाजा कांग्रेस के जन प्रतिनिधियों को ये फायदा दिखा कि यहां अवैध रूप से काबिज होने वाले मुस्लिम, कांग्रेस को ही वोट देंगे। बीजेपी से उनकी हमेशा दूरी ही रहती है। यही वजह है कि कांग्रेस आज भी इन्हें संरक्षण देती है। पिछले दिनों उत्तराखंड जल विद्युत निगम की जमीन पर अवैध रूप से बसे लोगों को हटाने के लिए जब धामी सरकार का बुलडोजर चलने वाला था तब भी कांग्रेस के नेताओं ने ही इसका विरोध किया।
जानकारी के मुताबिक पछुवा दून के गांव शंकरपुर, रामपुर बड़ा, शिव नगर, लक्ष्मीपुर जो कभी हिंदू नाम से इसलिए जाने जाते थे कि ये हिंदू बाहुल्य थे। आज ये ग्राम मुस्लिम बाहुल्य हो गए हैं। नदी श्रेणी की ग्राम सभाओं में नदी किनारे फॉरेस्ट की जमीनों पर अवैध कब्जे कर मुस्लिम आबादी ने डेरा डाला हुआ है। इन गांवों की झोपड़ पट्टी अब पक्के मकान का रूप लेने लगी हैं, मुस्लिम ही ग्राम प्रधान हैं और वे बाहरी लोगों को यहां बसने में संरक्षण दे रहे हैं।
सहसपुर इस्लाम नगर, खुशहालपुर, मेहुवाला, शीशम बाड़ा, सिंघनी वाला, आमवाला चौकी, धौलासू, चाहन चक, शेरपुर समावला, जमनपुर, अकबरपुर, कुन्जा ग्रांड आदि ग्राम सभाएं ऐसी हैं, जहां मुस्लिम जनसंख्या पिछले कुछ सालों में 90 प्रतिशत हो चुकी है। ऐसी भी जानकारी में आया है कि यहां बनने वाले ग्राम प्रधान भी फर्जी प्रमाणपत्र के आधार पर राजनीति कर रहे हैं। सहसपुर के ग्राम प्रधान अनीस के हाई स्कूल के प्रमाण पत्र की जांच हुई, जो कथित रूप से फर्जी पाया गया है और ये जांच अभी फाइलों में दबी पड़ी है।
पछुवा देहरादून में बिना सरकार की अनुमति के दर्जनों मस्जिदों का निर्माण सरकारी भूमि पर अवैध कब्जा करके कर दिया गया। एक जानकारी के मुताबिक इस क्षेत्र में 100 से ज्यादा मस्जिद, करीब 40 मजारें यहां अवैध रूप से बन गईं, जबकि 2004 के सुप्रीम कोर्ट का आदेश कहता है कि बिना डीएम की अनुमति के कोई भी नया धार्मिक स्थल नहीं बन सकता। फिर भी यहां धड़ल्ले से मस्जिदों, मदरसों के निर्माण कार्य चल रहे हैं। हैरानी की बात ये भी है कि सड़क किनारे पीडब्ल्यूडी की जमीन पर भी मजारें, मस्जिदें बन गई हैं। जिसे कभी किसी सरकारी विभाग ने रोकने की कोशिश तक नहीं की है।
बहरहाल पछुवा देहरादून की जनसंख्या जो कभी हिंदू बाहुल्य थी अब मुस्लिम बाहुल्य हो चुकी है। ये जनसंख्या असंतुलन की बड़ी समस्या, देवभूमि उत्तराखंड के प्रवेश द्वार पर मुंह उठाए खड़ी है। जो राज्य की धामी सरकार को चुनौती भी दे रही है।
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