नई दिल्ली। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल देश-दुनिया में दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था का बखान करते हैं, लेकिन यह विडंबना ही है कि दिल्ली के शिक्षा मंत्री शराब नीति घोटाले में आरोपी पाए जाते हैं। अब दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था से जुड़ा एक और नया मामला सामने आया है। दिल्ली में ईडब्ल्यूएस श्रेणी के तहत बच्चों को स्कूलों में प्रवेश दिया जाता है। लेकिन बच्चों के प्रवेश से संबंधित ड्रॉ सूची में भेदभाव करने की शिकायत राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) को मिली है। यह शिकायत गंभीर है। शिकायत में बताया गया है कि ड्रॉ में 70 प्रतिशत बच्चे मुस्लिम समुदाय से हैं। एनसीपीसीआर ने शिकायत पर संज्ञान लिया है।
एनसीपीसीआर को मिली शिकायत में बताया गया है कि ईडब्ल्यूएस के तहत बच्चों के स्कूलों में प्रवेश के लिए जो ड्रॉ निकाला जाता है उसमें भेदभाव होता है। ड्रॉ में 70% बच्चे मुस्लिम समुदाय से हैं, जबकि 30% बच्चे हिंदू समुदाय से हैं। आयोग का कहना है कि प्रथमदृष्टया यह संविधान के अनुच्छेद 15 एवं निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 की धारा 12 (1) (c) का उल्लंघन प्रतीत होता है। एनसीपीसीआर ने शिक्षा विभाग के सचिव को इस संबंध में जांच कर दस दिनों के अंदर रिपोर्ट देने का निर्देश दिया है।
गौरतलब है कि राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग बाल अधिकार संरक्षण आयोग (सीपीसीआर) अधिनियम, 2005 की धारा-3 के तहत गठित एक वैधानिक निकाय है। आयोग को यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012, किशोर न्याय अधिनियम, 2015 तथा निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम, 2009 के उचित और प्रभावी क्रियान्वयन की निगरानी करने का कार्य सौंपा गया है। सीपीसीआर अधिनियम, 2005 की धारा 13 के तहत आयोग को देश में बाल अधिकारों और संबंधित मामलों के रक्षण और संरक्षण के लिए अधिदेशित किया गया है।
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