तालिबान के राज में महिला शिक्षा के पैरोकारों पर फिर से गाज गिरी है। कट्टर इस्लामवादी ‘शरिया के रखवाले’ बंदूकधारी लड़ाकों ने कल काबुल में मतिउल्लाह कोसो मवार नाम के वकील को गिरफ्तार कर लिया। यह वकील महिला शिक्षा और महिला अधिकारों की बड़ी पैरोकारी करता था, महिलाओं के हकों की मांग के साथ था। हालांकि तालिबान सरकार की तरफ से उसकी गिरफ्तारी की बाबत कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया गया है।
अफगानिस्तान में अगस्त 2021 में बंदूकधारी ‘शरिया के रखवाले’ मजहबी तालिबान का राज कायम होने के बाद से महिलाओं पर हर तरह की पाबंदियां लगाई जाती रही हैं। लड़कियों की तालीम भी ‘इस्लामी कानून के अनुसार’ फौरन बंद करा दी गई। उच्च शिक्षा तो क्या, उन्हें स्कूली शिक्षा तक से वंचित कर दिया गया है।
लेकिन ज्यादातर लड़कियां पढ़ना चाहती हैं, पर ‘कट्टर इस्लामी’ सत्ता इस मामले में दुनिया के किसी भी मंच, समूह, नेता की बात सुनने को तैयार नहीं है। लेकिन अफगानिस्तान में रहते हुए महिला शिक्षा के लिए लड़ते आ रहे मशहूर वकील पर भी अब गाज गिरी है। उसे गिरफ्तार किए जाने की पुष्टि भी किसी और ने नहीं, खुद अफगानिस्तान में सहायता कार्यों में लगे संयुक्त राष्ट्र के मिशन यूएनएएमए ने की है।
शरियाई तालिबान का कहना है कि इस्लाम के अनुसार, ‘महिला अधिकारों जैसी कोई चीज नहीं होती’। अफगान महिलाएं लगातार कराह रही हैं, लेकिन दुनिया चाहते हुए भी उनकी इस मामले में मदद नहीं कर पा रही है। देश में जो मतिउल्लाह जैसे बचे-खुचे लोग महिला अधिकारों के लिए खड़े होते हैं, उनकी आवाज भी दबाई जा रही है।
इस मामले पर तालिबान हुकूमत के सूचना मंत्रालय या गुप्तचर एजेंसी का कोई बयान सामने नहीं आया है। लेकिन यूएनएएमए ने कल अपने ट्वीट के माध्यम से यह सूचना देते हुए लिखा है कि सोमवार यानी 27 मार्च को काबुल में लड़कियों की तालीम के हक की आवाज उठाने वाले वकील मतिउल्लाह वेसा को गिरफ्तार किया गया है। इसी ट्वीट में तालिबान अफसरों से मांग की है कि वकील मतीउल्लाह के ठिकाने, उनकी गिरफ्तारी की वजहें सार्वजनिक की जाएं। मिशन ने मतिउल्लाह के परिवार की सुरक्षा के संदर्भ में भी अपनी चिंताएं व्यक्त की हैं।
कंधार के दक्षिणी प्रांत के रहने वाले मतिउल्लाह पिछले अनेक वर्ष से देश में लड़कियों की शिक्षा की पैरोकारी करते आ रहे हैं। वह अफगानिस्तान के देहाती इलाकों की लड़कियों के हित के लिए काम करते रहे हैं। उनका एक संगठन भी है जो ‘पेन पाथ’ के नाम से काम करता है। इस संगठन के माध्यम से उन्होंने जनजातीय बुजुर्गों की भलाई के अनेक कदम उठाए हैं। गांवों में स्कूल खोले जाने का मुद्दा उठाया है।
लेकिन अफगानिस्तान में तालिबान महिलाओं के अधिकारों को तार-तार करने की मानो कसमें खाए है। दुनियाभर से इस बारे में मिल रहीं आक्रोशपूर्ण प्रतिक्रियाओं की रत्ती भर परवाह नहीं करता है। तालिबान हुकूमत पर प्रतिबंध भी लगे हैं लेकिन तो भी उसे ‘शरिया ही लागू कराना है’।
अफगानी विष्वविद्यालयों में महिलाओं के दाखिले पर प्रतिबंध है। ऐसी हजारों सक्षम लड़कियां अब विदेशी विश्वविद्यालयों से ऑनलाइन पढ़ाई करने का मजबूर हैं। इसी तालिबान ने देश के कार्यरत सभी तरह के देसी-विदेशी गैर-सरकारी संगठनों से भी महिला कर्मचारियों को नौकरी से बाहर करवा दिया है। शरियाई तालिबान का कहना है कि इस्लाम के अनुसार, ‘महिला अधिकारों जैसी कोई चीज नहीं होती’। अफगान महिलाएं लगातार कराह रही हैं, लेकिन दुनिया चाहते हुए भी उनकी इस मामले में मदद नहीं कर पा रही है। देश में जो मतिउल्लाह जैसे बचे-खुचे लोग महिला अधिकारों के लिए खड़े होते हैं, उनकी आवाज भी दबाई जा रही है।
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