समझें कन्या पूजन की महत्ता !

- सनातन धर्म में कन्या पूजन की परंपरा सदियों से चली आ ही है। श्रीमददेवी भागवत महापुराण में स्पष्ट कहा गया है कि कन्या भोज के बिना नवरात्र अनुष्ठान पूरा नहीं होता।

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SHIVAM DIXIT

हमारी सनातन वैदिक संस्कृति के पर्व-त्योहारों की सबसे बड़ी खूबसूरती यह है कि पूजा- उपासना के विविध धार्मिक कर्मकांडों से सजे इन पर्वों के आयोजन सामाजिक समसरता के साथ आत्मिक उत्कर्ष का भी बड़ा सन्देश देते हैं। आत्मोत्थान की दृष्टि से ऋतु परिवर्तन की संधिबेला में पड़ने वाले चैत्र व आश्विन माह के नवरात्र पर्वों की विशिष्ट महत्ता हमारे तत्वज्ञ मनीषियों ने बतायी है। गायत्री महाविद्या के महामनीषी पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य अपने ग्रन्थ ‘उपासना के दो चरण : जप और ध्यान ‘ में लिखते हैं कि नवरात्र काल में वायुमंडल में दैवीय शक्तियों के स्पंदन अत्यधिक सक्रिय होते हैं तथा सूक्ष्म जगत के दिव्य प्रवाह भी इन दिनों वायुमंडल में तेजी से उभरते और मानवी चेतना को गहराई से प्रभावित करते हैं।

इसी कारण हमारे वैदिक ऋषियों ने इन संधिकालों की नवरात्रीय साधना में मां शक्ति की आराधना का विधान बनाया था। ऋषि कहते हैं कि मां आदिशक्ति का स्वरूप वस्तुत: शक्ति का विश्वरूप है और नवरात्र का अनुष्ठान शक्ति के साथ मर्यादा का अनुशासन और मां के सम्मान का संविधान।  हमारे मनीषियों ने प्रतिपदा से लेकर नवमी तक आयोजित किये जाने वाले देवी आराधना के इस नौ दिवसीय साधनात्मक अनुष्ठान को कन्या पूजन से जोड़ कर इसे अधिक देवत्वपूर्ण बना दिया है। नौ कुमारी कन्याएं वस्तुतः नौ देवियों का प्रतिबिंब मानी जाती हैं। सनातन धर्म में कन्या पूजन की परंपरा सदियों से चली आ ही है। श्रीमददेवी भागवत महापुराण में स्पष्ट कहा गया है कि कन्या भोज के बिना नवरात्र अनुष्ठान पूरा नहीं होता। देवी मां को जितनी प्रसन्नता कन्या भोज से मिलती है,  उतनी प्रसन्नता हवन और दान से भी नहीं मिलती। इसीलिए कन्या पूजन करके माँ भगवती की कृपा सहज ही पायी जा  सकती है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार यूं तो कन्या पूजन नवरात्र काल के दौरान कभी भी कर सकते हैं लेकिन अष्टमी और नवमी की तिथि  कन्या पूजन के लिए सर्वश्रेष्ठ मानी गयी है।

ऐसे शुरू हुई कन्या पूजन की परम्परा  

पंडित रामचंद्र जोशी के अनुसार कन्या पूजन के शुभारम्भ को लेकर यूं तो कई अलग-अलग मान्यताएं व पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं लेकिन इनमें जम्मू क्षेत्र के भक्त श्रीधर की कथा विशेष रूप से लोकप्रिय है। कथा के अनुसार श्रीधर नाम का एक निर्धन व संतानहीन पंडित माँ का परम भक्त था। एक बार उसके मन में नवरात्र साधना ने उपरांत कुमारी कन्याओं के पूजन और गाँव में भंडारा करने का विचार आया। पर गरीबी से लाचार श्रीधर कोई व्यवस्था न हो पाने के कारण काफी दुखी था। कुछ और न सूझने पर वह अपनी पत्नी के साथ माँ की प्रतिमा के आगे शीश नवाकर करुण स्वर में प्रार्थना करने लगा कि यदि यह इच्छा तूने मेरे मन में डाली है तो तू ही इसे कैसे भी पूरी कर। कथा कहती है कि जब वह इस तरह माँ से प्रार्थना कर रहा था कि तभी देखा कि अचानक एक छोटी सी सुन्दर कन्या उसके सामने मुस्कुराते हुए आकर खड़ी हो गयी और उसके चमत्कार से श्रीधर की कन्या पूजन व गाँव भर के सुस्वादु भंडारे की इच्छा आश्चर्यजनक रूप से सफल हो गयी। उस कन्या रूपी माँ ने अपनी आठ अन्य सखियों के साथ श्रीधर का पूजन व प्रसाद भी ग्रहण किया। यही नहीं, उस सफल आयोजन के साल भर के भीतर श्रीधर के घर एक कन्या का जन्म भी हुआ और उसे माँ वैष्णोदेवी के सिद्धपीठ के प्रथम पुरोहित होने का गौरव भी मिला। कहा जाता है कि तभी से नवरात्र व्रत के पारण के दिन कन्या पूजन की परम्परा शुरू हो गयी।

देवी माँ के विविध कन्या स्वरूप

देवी पुराण में उल्लेख मिलता है कि नवरात्र साधना की पूर्णाहुति पर दो से दस वर्ष तक की नौ कन्याओं का पूजन करना शुभ होता है। शास्त्र कहता है कि दो वर्ष की कन्या ‘कुमारी’ कहलाती है जिसके पूजन से दु:ख और दरिद्रता दूर होती है। तीन वर्ष की कन्या ‘त्रिमूर्ति’ मानी जाती है जिसके पूजन से घर में धन-धान्य और परिवार में सुख-समृद्धि आती है। चार वर्ष की कन्या को ‘कल्याणी’ माना जाता है जिसकी पूजा से परिवार का कल्याण होता है। पांच वर्ष की कन्या ‘रोहिणी’ कहलाती है जिसे पूजने से व्यक्ति रोगमुक्त हो जाता है। छह वर्ष की कन्या को ‘कालिका’ रूप कहा गया है जिसकी पूजा से विद्या, विजय, राजयोग की प्राप्ति होती है। सात वर्ष की कन्या का रूप ‘चंडिका’ का होता है जिसकी पूजा करने से ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। आठ वर्ष की कन्या ‘शाम्भवी’ कहलाती है जिसका पूजन करने से वाद-विवाद में विजय प्राप्त होता है। नौ वर्ष की कन्या ‘दुर्गा’ कहलाती है जिसका पूजन करने से शत्रुओं का नाश होता है तथा असाध्य कार्य पूर्ण होते हैं। दस वर्ष की कन्या ‘सुभद्रा’ कहलाती है जिसकी पूजा से व्यक्ति के सभी मनोरथ सुफल होते हैं।

माँ शक्ति की प्रसन्नता के लिए मातृशक्ति का सम्मान जरूरी

कितनी बड़ी विडम्बना है कि हमारे कन्या पूजन की दिव्य आध्यात्मिक विरासत वाले हमारे देश में आज माँ-बहनें ही नहीं, छोटी-छोटी बच्चियां तक असुरक्षित हैं। देश में कन्या भ्रूण हत्या, छेड़छाड़, एसिड हमले, यौन शोषण, दुष्कर्म, दहेज उत्पीड़न, ऑनर किलिंग, घरेलू हिंसा जैसे घृणित पापकर्म हमारे माथे पर लगे कलंक का ऐसा बदनुमा दाग हैं जो किसी भी भावनाशील देशवासी का सिर शर्म से नीचे झुकाने के लिए पर्याप्त हैं। यदि हम देशवासी सचमुच जगजननी मां दुर्गा को प्रसन्न कर उनसे शक्ति व भक्ति का अनुदान-वरदान पाना चाहते हैं तो उससे पूर्व अपनी मातृशक्ति की सुरक्षा व सम्मान सुनिश्चित करना ही होगा।

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