जैविक कृषि का काफी प्रचार-प्रसार हो रहा था। इससे आकर्षित होकर उन्होंने केंचुआ पालन के साथ जैविक खेती शुरू की।
45 वर्षीय भारत भूषण गर्ग पेशे से पत्रकार थे। लेकिन पत्रकारिता के साथ वह खेती भी करते थे। उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले के बहादुरगढ़ में रहने वाले भारत भूषण का कहना है कि रासायनिक विधि से खेती करने पर खर्च अधिक होता था, लेकिन लाभ कम मिलता था। इस कारण बमुश्किल केवल जरूरी खर्चे ही पूरे हो पाते थे।
भारत भूषण ने बताया कि वर्ष 2000 के आसपास तक उन्हें खेती से संतुष्टि नहीं मिल रही थी। उस समय जैविक कृषि का काफी प्रचार-प्रसार हो रहा था। इससे आकर्षित होकर उन्होंने केंचुआ पालन के साथ जैविक खेती शुरू की। प्रारंभ के चार-पांच वर्ष तो ठीक रहे, पर कुछ समय पश्चात खेती में घाटा होने लगा। इसी दौरान वे लोकभारती के संपर्क में आए और इस संस्था के सुझाव पर 2017 में लखनऊ में सुभाष पालेकर के प्राकृतिक कृषि शिविर में शामिल हुए। वहां गोवंश आधारित प्राकृतिक कृषि पद्धति को बारीकी से जाना। इसके बाद अपने बाग की एक एकड़ भूमि में प्राकृतिक खेती शुरू की।
अब पंचस्तरीय बागवानी के तहत आलू और दूसरी सब्जियों की खेती कर रहा हूं। इससे प्रति एकड़ ढाई से तीन लाख रुपये की आमदनी हो रही है। प्रत्येक वर्ष आम बेचकर लगभग एक लाख से अधिक की कमाई कर लेता हूं। आम के बगीचे में अदरख और हल्दी भी लगाता हूं। इससे भी हर साल लगभग एक लाख रुपये मिल जाते हैं।
पहले साल ही मेहनत का रंग दिखने लगा। खेत में गोबर और गोमूत्र की जरूरत थी, इसलिए उन्होंने देसी गाय भी खरीद ली। इससे शुद्ध दूध भी मिलने लगा। हालांकि शुरुआत में उनके लिए प्राकृतिक आसान नहीं रहा। आस-पड़ोस के लोग उनका मजाक उड़ाते थे। लेकिन उन्होंने इस पर ध्यान नहीं दिया।
उन्होंने बताया, ‘‘2017 से पहले मेरा दो एकड़ का आम का बाग 60-70 हजार रुपये में दो वर्ष के लिए ठेके पर जाता था। 2018 के बाद आमदनी दोगुनी हो गई। अब पंचस्तरीय बागवानी के तहत आलू और दूसरी सब्जियों की खेती कर रहा हूं। इससे प्रति एकड़ ढाई से तीन लाख रुपये की आमदनी हो रही है। प्रत्येक वर्ष आम बेचकर लगभग एक लाख से अधिक की कमाई कर लेता हूं। आम के बगीचे में अदरख और हल्दी भी लगाता हूं। इससे भी हर साल लगभग एक लाख रुपये मिल जाते हैं।’’
बकौल भारत भूषण, बीते दो-तीन साल में ही उनकी आय लगभग तीन से चार गुना बढ़ गई। अब उन्होंने खेती का दायरा दो एकड़ से बढ़ाकर पांच एकड़ कर लिया है। उन्होंने पंचस्तरीय बागवानी का एक विशेष मॉडल भी लोकभारती के सहयोग से तैयार किया है, जिसको देखने और सीखने के लिए आसपास के किसान लगातार आते रहते हैं। वह पंचस्तरीय बागवानी में वह फल और सब्जियां तो उगा ही रहे हैं, सरसों तेल के साथ हल्दी, अदरख का प्रसंस्करण करके उसे बेच भी रहे हैं।
इसके अलावा, अपने उत्पाद बेचने के लिए भारत भूषण ने सोशल मीडिया का सहारा लिया। अभी उनके परिवार के 25 सदस्य खेती में जुटे हुए हैं। अधिकतर उत्पाद खेत से ही बिक जाते हैं। वह कहते हैं कि जब उन्होंने प्राकृतिक कृषि प्रारंभ की तो उस समय तो पूरे जनपद में वह अकेले किसान थे। आज उनकी सफलता को देखकर अनेक किसान इस विधि से खेती कर रहे हैं। भारत के अनुसार, अब लोग अपने स्वास्थ्य को लेकर अत्यंत सजग हो गये हैं। खासकर कोरोना महामारी के बाद तो इस जागरुकता में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। अब लोगों को विषमुक्त प्राकृतिक कृषि उत्पादों की महत्ता समझ में आ रही है।
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