नई दिल्ली। बिहार के सारण जिले में बीते वर्ष जहरीली शराब से मौत का आंकड़ा प्रशासन ने छिपाया था। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) की रिपोर्ट में इसका दावा किया गया है कि सारण में जहरीली शराब से 42 नहीं, 77 लोगों की मौत हुई थी। आयोग की टीम, कांड की जांच के लिए 21, 22 और 23 दिसंबर को आई थी। उसने अपनी रिपोर्ट जारी कर दी है। 18 पन्नों की रिपोर्ट में कहा गया है कि शराब पीकर मरे 32 लोगों के शव बिना पोस्टमार्टम के जला दिए गए।
एनएचआरसी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि मरने वाले लोगों में अधिकतर किसान, मजदूर, ड्राइवर, चाय बेचने वाले, फेरी वाले या बेरोजगार थे। 75 प्रतिशत पिछड़ी जाति से थे। आयोग की जांच टीम को सुरक्षा और सहयोग नहीं मिला। उसने पीड़ितों से बात कर जानकारी जुटाई। आयोग ने पीड़ितों का पुनर्वास नहीं होने की बात कही है। आयोग के मुताबिक, मृतक के परिजनों को 4 लाख मुआवजा देना जिला प्रशासन का काम है। रिपोर्ट में पटना हाई कोर्ट की एक टिप्पणी का हवाला है, जिसमें पूर्ण शराबबंदी कानून को लागू करने में विफलता की बात है।
एनएचआरसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि शराबबंदी लागू करने में अफसर और विभाग अपनी तय जिम्मेदारियां सही तरीके से पूरी नहीं कर पाए और इसकी वजह से इतनी बड़ी संख्या में लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। अधिकांश मृतक, पीड़ित परिवार के एकमात्र कमाने वाले सदस्य थे। उनकी आर्थिक स्थिति बहुत खराब है।
एनएचआरसी की रिपोर्ट को नकारा
बिहार सरकार के मद्य निषेध, उत्पाद और निबंधन विभाग ने मानवाधिकार आयोग की इस बात को नकारा कि सारण शराब कांड में 77 मौतें हुईं हैं। विभाग के अनुसार, 42 लोगों की ही मौत हुई। विभाग ने आयोग की इस बात पर भी आपत्ति दर्ज की कि ‘शराबबंदी पूर्णता में कामयाब नहीं है।’ विभाग ने कहा कि शराबबंदी कानून तोड़ने वालों पर लगातार कार्रवाई हो रही है। हालिया सर्वे के अनुसार 1.82 करोड़ लोगों ने शराब पीनी छोड़ दी।
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