देवभूमि उत्तराखण्ड ने पर्यटकों तथा अध्यात्म प्रेमियों को सदैव अपनी ओर खींचा है। प्रख्यात समाजसेवी दयाचंद जैन ने देवभूमि उत्तराखण्ड के देहरादून को ही संगठन के माध्यम से सेवाकार्य के लिए अपनी गतिविधियों का केन्द्र बनाया था। उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन ही संगठन की सेवा में समर्पित कर दिया था। उन्होंने आजीवन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सच्चे स्वयंसेवक का कर्तव्य निभाते हुए भावी पीढ़ी के लिए आदर्श प्रस्तुत किया है।
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में संघकार्य में नींव और फिर आधार स्तम्भ के रूप में प्रमुख भूमिका निभाने वाले दयाचंद जैन का जन्म 12 जुलाई सन 1928 को ग्राम तेमला गढ़ी जिला बागपत उत्तर प्रदेश में माता अशर्फी देवी तथा पिता धर्मदास जैन के घर में हुआ था। बागपत के निकटवर्ती कस्बे दाहा से मिडिल तक की शिक्षा पाकर वह आगे पढ़ाई और कारोबार के लिए देहरादून आ गये थे। देहरादून में ही वह सन 1942 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक बने थे। सन 1948 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध के समय सत्याग्रह कर वह तीन माह आगरा जेल में रहे थे। प्रतिबंध के बाद देहरादून में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रायः सभी छोटे–बड़े कार्यकर्ता संघ कार्य से पीछे हट गये थे, ऐसे में एकदम विपरीत परिस्थितियों में दयाचंद जैन ने बिल्कुल नये सिरे से काम प्रारम्भ किया था। सन 1960 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तृतीय वर्ष के प्रशिक्षण के लिए नागपुर गये थे, विद्यालयी शिक्षा कम होते हुए भी नागपुर प्रशिक्षण में उन्होंने बौद्धिक परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया था। देश, धर्म और समाज पर आने वाले हर संकट तथा चुनौती में वह हमेशा अग्रणी भूमिका में रहते थे।
1967 में गोरक्षा के निमित्त आंदोलन में वह दिल्ली की तिहाड़ जेल में रहे थे। सन 1975 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर पुन: प्रतिबंध लगने पर वह प्रारम्भ में भूमिगत हो गये थे। किन्तु पुन: 15 अगस्त सन 1975 को वह सत्याग्रह के माध्यम से छह माह के कठिन कारावास लिए जेल में रहे थे। श्रीराम जन्मभूमि अयोध्या के राष्ट्रव्यापी आंदोलन के समय भी वह प्रत्येक आंदोलनकारी गतिविधियों में वह सदैव एक कदम आगे रहते थे। दयाचंद जैन बेहद साहसी और राष्ट्रवादी प्रकृति के व्यक्ति थे, इंदिरा गांधी की हत्या होने पर जब आक्रोशित कांग्रेसी कार्यकर्ता बाजार बंद कराने निकले, तो दयाचंद जैन ने अपना प्रतिष्ठान को बंद नहीं किया था। कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने जब जबरदस्ती दुकान बन्द कराने का प्रयास किया तो दयाचंद जैन ने राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं से कहा कि जिस महिला ने आपातकाल में पूरे देश को जेल बना दिया था, जिसके कारण मेरी दुकान साल भर बंद रही, उसकी मृत्यु पर मैं दुकान को बंद नहीं करूंगा। कांग्रेसी कार्यकर्ता अपना सा मुंह लेकर चुपचाप वहां से आगे चले गये थे।
दयाचंद जैन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में मुख्य शिक्षक से लेकर जिला कार्यवाह, जिला संघ चालक और प्रान्त व्यवस्था प्रमुख जैसी अनेक जिम्मेदारियों का निर्वहन किया था। वह किसी सूचना की प्रतीक्षा किये बिना स्वयं योजना बनाकर उसे क्रियान्वित करते थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के निर्धन कार्यकर्ताओं की बेटियों के सम्मानपूर्वक विवाह की वह विशेष चिन्ता करते थे। सामाजिक जीवन में उनका स्थान इतना महत्वपूर्ण था कि झंडा बाजार देहारादून में उनकी कपड़े की दुकान पर समाज के प्रत्येक तरह के लोग उनसे परामर्श करने आते थे। समाज के अनेक व्यक्ति तो हंसी–मजाक में कहते थे कि झंडे वाले बाबा के पास हर समस्या का समाधान रहता है। देहरादून में जब सरस्वती शिशु मंदिर विद्यालय का प्रारम्भ हुआ तो मोती बाजार स्थित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यालय में ही उसकी कक्षाएं प्रारम्भ कर दी गयीं थी। कुछ समय बाद जब तत्कालीन प्रांत प्रचारक भाऊराव देवरस वहां आये, तो उन्होंने सरस्वती शिशु मंदिर विद्यालय को वहां से स्थानांतरित करने को कहा था।
दयाचंद जैन ने उनकी आज्ञा को शिरोधार्य किया और एक अन्य स्थान खोजकर शिक्षा के नये सत्र में विद्यालय वहां पहुंचा दिया था। शिक्षा के महत्व को समझते हुए सरस्वती शिशु मंदिर विद्यालय के प्रसार का वह विशेष प्रयास करते रहते थे। देहरादून में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ परिवार की प्रत्येक संस्था से वह किसी न किसी रूप से जुड़े रहते थे। उनकी स्वस्थ सोच सदा सार्थक दिशा में रहती थी। जीवन अंतिम दिनों में वह जब चिकित्सालय में भर्ती थे, तो उनसे मिलने आये कुछ संघ कार्यकर्ता किसी की आलोचना कर रहे थे तो दयाचंद जैन ने तत्काल उन्हें रोकते हुए कहा कि सदैव अच्छा सोचो और अच्छा बोलो, तो परिणाम भी अच्छा ही निकलेगा। जीवन के 70 वर्ष तक समाज के प्रत्येक क्षेत्र में सक्रिय रहते हुए श्रेष्ठ सामाजिक संगठन कार्यकर्ता दयाचंद जैन का देहावसान 24 मार्च सन 2012 को हुआ था।
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