हम 2जी से 5जी तक आ चुके हैं और 6जी की तरफ बढ़ रहे हैं। लेकिन इन सब पर लागू होने वाला कानून आज भी वही है। हम इन्फॉरमेशन टेक्नॉलॉजी एक्ट 2000 से आगे नहीं बढ़े। जाहिर है कि नए हालात में पुराना कानून बदलने की जरूरत है और भारत सरकार ‘डिजिटल इंडिया एक्ट’ के जरिए यही करने जा रही है।
आज इंटरनेट और डिजिटल चुनौतियां वैसी नहीं हैं, जैसी चौथाई सदी पहले थीं। सोशल मीडिया का बढ़ता व्याप, फेक तथा असली खबरों में घटता फासला, प्राइवेसी व साइबर सुरक्षा के गंभीर खतरे, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ब्लॉकचेन, इंटरनेट आफ थिंग्स तथा बिग डेटा जैसी तकनीकें दुनिया को बदल देने पर आमादा हैं।
हम 2जी से 5जी तक आ चुके हैं और 6जी की तरफ बढ़ रहे हैं। लेकिन इन सब पर लागू होने वाला कानून आज भी वही है। हम इन्फॉरमेशन टेक्नॉलॉजी एक्ट 2000 से आगे नहीं बढ़े। जाहिर है कि नए हालात में पुराना कानून बदलने की जरूरत है और भारत सरकार ‘डिजिटल इंडिया एक्ट’ के जरिए यही करने जा रही है। अप्रैल में इसका प्रारूप आ जाएगा और शायद जुलाई तक इसे संसद में पेश कर दिया जाए।
वर्ष 2000 का कानून आज के साइबर मसलों से निपटने में नाकाफी है। उस समय भारत की 0.5 प्रतिशत आबादी इंटरनेट से जुड़ी थी। आज यह आंकड़ा सौ गुना बढ़कर लगभग 50 प्रतिशत है। आज भारत में लगभग एक अरब 20 करोड़ मोबाइल फोन उपभोक्ता हैं। इससे समझा जा सकता है कि कितने और किस किस्म के बदलाव इंटरनेट की दुनिया में आ चुके होंगे। हालांकि भारत में डेटा प्रोटेक्शन बिल 2021 लाया गया था लेकिन अगस्त 2022 में सरकार ने इसे वापस ले लिया था।
नए कानून का उद्देश्य भारत में खुले और सुरक्षित इंटरनेट को बढ़ावा देना है। वह यूजर्स के अधिकारों की सुरक्षा करने तथा आनलाइन दुनिया के खतरों पर अंकुश लगाने में मदद करेगा। कोशिश है कि वह तकनीकी नवाचार, अनुसंधान और विकास को बढ़ावा दे। वैसे फोकस दो चीजों पर दिखता है- डेटा की सुरक्षा व निजता को कायम रखना तथा सोशल मीडिया एवं तकनीकी साधनों का निर्बाध दुरुपयोग रोकना।
आज इंटरनेट पर फेक न्यूज, दुष्प्रचार, अवमानना, साइबर बुलिंग, ट्रॉलिंग, निजता के हनन, ब्लैकमेल, पहचान की चोरी, किसी की गोपनीय सूचनाएं सार्वजनिक करने (डॉक्सिंग), अनधिकृत रूप से वीडियो बनाने या चित्र लेने, सामाजिक शांति को नुकसान पहुंचाने, लोगों को डिजिटल मंचों से प्रतिबंधित करने और साइबर अपराधों की समस्या गंभीर हो चुकी है। लोगों के निजी डेटा का बेरोकटोक कारोबारी, राजनैतिक या दूसरे मकसद से इस्तेमाल किया जा रहा है।
आज इंटरनेट पर फेक न्यूज, दुष्प्रचार, अवमानना, साइबर बुलिंग, ट्रॉलिंग, निजता के हनन, ब्लैकमेल, पहचान की चोरी, किसी की गोपनीय सूचनाएं सार्वजनिक करने (डॉक्सिंग), अनधिकृत रूप से वीडियो बनाने या चित्र लेने, सामाजिक शांति को नुकसान पहुंचाने, लोगों को डिजिटल मंचों से प्रतिबंधित करने और साइबर अपराधों की समस्या गंभीर हो चुकी है। लोगों के निजी डेटा का बेरोकटोक कारोबारी, राजनैतिक या दूसरे मकसद से इस्तेमाल किया जा रहा है।
इनकी रोकथाम के दायरे में कौन आना चाहिए और कौन उत्तरदायी हो, इसका उत्तर भी इस कानून से मिलेगा। व्यक्तिगत के साथ-साथ क्या संबंधित सोशल मीडिया मंचों, इंटरनेट प्रदाता कंपनियों वगैरह की भी जिम्मेदारी बनती है, इस पर काफी समय से चर्चा चल रही है। पुराने कानून में इन कंपनियों के साथ लचीलापन बरता गया है। सोशल मीडिया कंपनियों को यूजर्स द्वारा पोस्ट सामग्री के विरुद्ध कानूनी सुरक्षा हासिल है। इसे ‘सेफ हार्बर’ (सुरक्षित पनाह) के नाम से जाना जाता है।
नए कानून से भारत में इंटरनेट सेवा प्रदाता कंपनियों के कामकाज के तरीकों में बड़ा बदलाव आ सकता है। गूगल, फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप्प, इंस्टाग्राम जैसे मंचों के साथ-साथ ईकॉमर्स सेवाएं, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सेवाएं आदि देने वाली कंपनियों के लिए दमदार प्रावधान आ सकते हैं। यही बात एअरटेल, रिलायंस जियो, वोडाफोन आइडिया जैसी इंटरनेट तथा संचार सेवाएं देने वाली कंपनियों पर भी लागू होती है। हो सकता है कि सर्च इंजन, न्यूज पोर्टल तथा तथ्यों की जांच करने वाली वेबसाइटें भी किसी रूप में इसके दायरे में आएं।
(लेखक माइक्रोसॉफ़्ट में निदेशक- भारतीय भाषाएं एवं सुगम्यता के पद पर कार्यरत हैं)।
टिप्पणियाँ