मंजिल पर तभी पहुंचा जा सकता है जब कदम बढ़ाया जाए। कदम कितने ही छोटे हों, यह मायने नहीं रखता, बस निरंतरता जरूरी है। बाबा महाकाल की नगर उज्जैन के रहने वाले गोपाल डोडिया 28 साल से जल संरक्षण के लिए कार्य कर रहे हैं। उनकी मेहनत रंग लाई और वह अकेले दम पर सात बड़े तालाब बना चुके हैं।
गोपाल डौडिया ने कक्षा सात तक ही पढ़ाई की है, लेकिन उनके व्यावहारिक ज्ञान की कोई तुलना नहीं है। वर्ष 1995 में क्षेत्र में बहने वाले नाले के जलभरण क्षेत्र से आने वाले अतिशेष पानी को इन्होंने तालाब में लाने के पहले एक गड्ढे में पहुंचाया। प्राकृतिक फिल्टर का कार्य करने वाला यह गड्ढा ओवरफ्लो होता है तो पानी तालाब में पहुंचता है। इससे मिट्टी और अन्य गंदगी तालाब में नहीं पहुंच पाती। जब यह तालाब पूरी तरह भर जाता है तो इससे पानी अगले तालाब में पहुंच जाता है।
डोडिया ने करीब 28 वर्ष पहले गांव के हनुमान मन्दिर में प्याऊ बनवाने के विचार से कुछ लोगों को साथ लिया। इसके बाद जानवरों की प्यास बुझाने के लिए इन्होंने एक तालाब बनाने की ठानी। तकनीकी विशेषज्ञ की तरह इन्होंने पशुओं के लिए साफ पानी के लिए एक फिल्टर टैंक बनवाया। नलकूप से रोज ताजा पानी इस टैंक में आता है और पाइपलाइन के जरिए तालाब में पहुंचता है। तालाब का स्तर और इस टैंक का स्तर समान रखने के लिए ऐसी व्यवस्था की गई है कि तालाब में अधिक पानी होने पर दूसरी पाइप लाइन के जरिए फिर से इस टैंक में लौट आता है और यहां से अशुद्ध जल खेतों की ओर भेज दिया जाता है।
श्रमदान पर करते हैं भरोसा
डोडिया ने स्वयं के परिश्रम और संसाधनों से काम शुरू किया जिसमें ग्राम मौलाना के रहने वाले हीरालाल पाटीदार और कुछ अन्य ग्रामीणों का सहयोग मिला। ये किसी से आर्थिक सहयोग नहीं लेते और न ही तालाब निर्माण के लिए मजदूर लगाते हैं। स्वयं श्रमदान करते हैं और सहयोग का प्रस्ताव देने वालों को कहते हैं कि स्वयं आएं तथा श्रमदान करें। सिर्फ धनराशि देने को वे सहयोग नहीं मानते, इसलिए उसे स्वीकार भी नहीं करते। वे कहते हैं ‘‘हमारी रुचि न सरकारी मदद में है और न ही चन्दे में।’’ डोडिया संपन्न कृषक भी नहीं हैं। मात्र 20 बीघा जमीन से वे अपने परिवार का भरण-पोषण भी करते हैं और तालाब निर्माण भी। डोडिया कहते हैं ‘‘जब समय होता है, तब श्रमदान करते हैं और जब पैसा होता है मुहिम को आगे बढ़ाते हैं।’’
डेढ़ हजार पौधे भी लगा चुके
उन्होंने तालाब के साथ पौधरोपण की आवश्यकता भी महसूस की और इसका नतीजा है कि 100 से ज्यादा किस्म के करीब डेढ़ हजार पौधों को वे वृक्ष में तब्दील कर चुके हैं। इन वृक्षों में कदम्ब, कृष्णबड़, गूलर और फिश पाम के साथ-साथ बहुतायत में नीम और पीपल शामिल हैं। पौधरोपण और तालाब निर्माण में आई लागत के बारे में वह कहते हैं कि कोई हिसाब नहीं रखा क्योंकि उससे अनावश्यक तनाव भी हो सकता था। सरकारी मदद अथवा अनुदान बिल्कुल नहीं लिया। निजी धन ऐसे कार्य में लगाया जो उनका व्यक्तिगत कार्य नहीं है और उससे होने वाला लाभ भी समाज के लिए ही है।
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