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जुनून ने दिलाया ‘कृषि अनन्य’ सम्मान

सहायक अभियंता की नौकरी छोड़ अजय रत्न प्राकृतिक खेती में जुटे। कम लागत में अच्छी कमाई करने के साथ गोबर व गोमूत्र से स्वयं ही खाद और कीटनाशक भी तैयार कर रहे

by सुनील शुक्ला
Mar 21, 2023, 01:15 pm IST
in भारत, हिमाचल प्रदेश
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प्राकृतिक विधि से खेती में बाजार से कुछ भी खरीदना नहीं पड़ता। स्वास्थ्य के लिए भी यह अच्छा है। आज वे 25 बीघा भूमि में खेती-बाड़ी कर रहे हैं। उनके सफल मॉडल को देख क्षेत्र के 250 किसान उनके साथ जुड़ चुके हैं।

हिमाचल प्रदेश में बिलासपुर जिले के घुमारवीं ब्लॉक के गांव निऊं के अजय रत्न सहायक अभियंता थे। उन्होंने 10 वर्ष तक नौकरी की, फिर गांव में खेती करने लगे। प्रारंभ में अजय सामान्य किसानों की तरह खेती करते थे। वे साल में लगभग 30,000 रुपये खर्च करते थे, पर कमाई 45,000 रुपये होती थी। बढ़ती कृषि लागत को देखते हुए उन्होंने कुछ नया कर किसानों के लिए सस्ता और टिकाऊ खेती मॉडल पेश करने की ठानी।

अजय रत्न बताते हैं कि शुरुआत में दूसरे किसानों की तरह वे भी रासायनिक खाद-कीटनाशक का प्रयोग करते थे। इससे उनकी सेहत खराब रहने लगी और अस्पताल के चक्कर लगाने पड़े। लिहाजा उन्होंने सोचा कि जब किसान की सेहत पर रसायनों का सीधा असर पड़ता है तो उपभोक्ता भी इसके प्रभावों से अछूता नहीं रहता होगा। अत: उन्होंने रसायनों के बिना खेती करने का प्रण लिया और गैर रसायनिक खेती विधि की तलाश में जुट गए। उनकी तलाश प्रकृति सम्मत, गैर रासायनिक सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती पर आकर खत्म हुई। अजय ने ‘सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती’ विधि को अपनाया और खेती की तस्वीर बदल डाली। उन्होंने इसका सफल मॉडल खड़ा किया।


इसमें अजय रत्न को पिता और परिवार का सहयोग मिला। इस खेती विधि के लिए सबसे जरूरी होती है देसी नस्ल की गाय, जो उनके पास नहीं थी। इसलिए उन्होंने इसे अपनाने से पहले अपने रिश्तेदारों से देसी गाय ली और अब खुद ही दो गायें खरीद कर उन्होंने न सिर्फ खेती के लिए प्राकृतिक आदान तैयार किये हैं, बल्कि दूर-दूर से आने वाले किसानों को भी इन्हें मुहैया करवा रहे हैं। अजय ने 2018 में 25 बीघा भूमि में प्राकृतिक खेती शुरू की।

5 बीघा जमीन में उन्होंने केवल सब्जियां उगाई। इनके भार, स्वाद और भंडारण अवधि में अप्रत्याशित वृद्धि ने उपभोक्ताओं को इनके द्वार पर ला दिया। पहले ही साल में इनकी लागत कम हुई और मुनाफा हुआ। अजय सब्जी व अनाज बेचने मंडी नहीं जाते, बल्कि उपभोक्ता ही उनके यहां आते हैं। अभी उनसे लगभग 200 उपभोक्ता जुड़े हुए हैं। अजय आसानी से हर साल 5 लाख रुपये तक कमा लेते हैं।

अजय बताते हैं कि प्राकृतिक विधि से खेती में बाजार से कुछ भी खरीदना नहीं पड़ता। स्वास्थ्य के लिए भी यह अच्छा है। आज वे 25 बीघा भूमि में खेती-बाड़ी कर रहे हैं। उनके सफल मॉडल को देख क्षेत्र के 250 किसान उनके साथ जुड़ चुके हैं। अभी तक अजय 1500 से अधिक किसानों को सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती विधि के बारे मे जागरूक कर चुके हैं। प्राकृतिक खेती का सफल मॉडल पेश करने के चलते अजय रत्न को वर्ष 2019 में प्रदेश के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने ‘कृषि अनन्य’ सम्मान से सम्मानित किया। वर्तमान में वे नीति आयोग, कृषि मंत्रालय, संयुक्त राष्ट्र खाद्य संगठन सहित विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय मंचों पर प्राकृतिक खेती के अग्रदूत बनकर इस खेती विधि के बारे में जानकारियों का प्रसार कर रहे हैं।

Topics: प्राकृतिक खेतीहिमाचल प्रदेशगोबरसुभाष पालेकरगोमूत्र
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