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साख के सौदागरों का सच से सामना

अभद्रता और हुड़दंग प्रतिपक्ष का अधिकार नहीं माना जा सकता है। न कांग्रेस को तर्क आधारित तरीकों से विपक्ष की तरह व्यवहार करना आता है, न कांग्रेस की बी टीमों को। सबको लगता है कि हुड़दंग ही उनकी निष्पत्ति है और भ्रष्टाचार पर आम माफी उनका अधिकार है।

by हितेश शंकर
Mar 21, 2023, 09:20 am IST
in सम्पादकीय
अमेरिका का सिलिकॉन वैली बैंक

अमेरिका का सिलिकॉन वैली बैंक

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दुनिया के सबसे बड़े अर्थतंत्र, सबसे बड़े इकोसिस्टम और तमाम थिंकटैंकों वाले अमेरिका में क्या किसी को आभास न हो सका कि उनके पैरों तले जमीन किस तरह खिसक चुकी है? जो हिंडनबर्ग बिना किसी भौतिक सत्यापन के भारत के अडाणी समूह के शेयरों को धराशायी करवा सकता है, क्या उसे या उस जैसे किसी को अमेरिका के बड़े-बड़े बैंकों के आसन्न पतन के बारे में कुछ नहीं पता था?

अमेरिका के दो बैंक धराशायी हो गए। कुछ अन्य के धराशायी होने की संभावना है। यूरोप के सबसे बड़े बैंकों में गिने जाने वाले क्रेडिट सुईस की साख मिट्टी में मिल रही है। अमेरिकी शेयर बाजार थरार्या हुआ है। तमाम सूचकांक पत्थर बांधे गोते खा रहे हैं।

प्रश्न उठता है कि दुनिया के सबसे बड़े अर्थतंत्र, सबसे बड़े इकोसिस्टम और तमाम थिंकटैंकों वाले अमेरिका में क्या किसी को आभास न हो सका कि उनके पैरों तले जमीन किस तरह खिसक चुकी है? जो हिंडनबर्ग बिना किसी भौतिक सत्यापन के भारत के अडाणी समूह के शेयरों को धराशायी करवा सकता है, क्या उसे या उस जैसे किसी को अमेरिका के बड़े-बड़े बैंकों के आसन्न पतन के बारे में कुछ नहीं पता था? या उसका उद्देश्य सिर्फ अल्पकालिक सट्टेबाजी करके भारत की कंपनी को नुकसान पहुंचाना और खुद फायदा कमाना था?

एक बात और। अडाणी समूह के शेयर गिरने पर एक राजनीतिक दल और उसके युवराज ने जी भरकर हो हल्ला मचाया। अब जब हिंडनबर्ग का नकाब पूरी तरह उतर चुका है, और उनके शोर की भी कलई खुल गई है, तो क्या हम भारतीयों को यह सीख नहीं लेनी चाहिए कि इस तरह की ओछी, हल्की और सस्ती बातों को सिरे से दरकिनार रखें। चाहे वे और उनका प्रायोजित मीडिया कितना भी शोर मचाए, चाहे उनका इकोसिस्टम कितनी भी रुदाली क्यों ना करे। भारत में विपक्ष होने का अर्थ जिस तरह अर्थहीन होता जा रहा है, वह विचारणीय है।

अमेरिका के विपक्ष ने सड़कों पर रैली निकाली, ना काले कपड़े पहन कर स्वांग किए और न सदनों को ठप्प करने की कोशिश की। न कोई अदालतों में पहुंचा और न किसी ने इसके लिए राष्ट्रपति बिडेन को जिम्मेदार ठहराया। उनके मीडिया ने भी ‘बैंकगेट’ जैसा कोई शब्द गढ़ने की रचनात्मकता नहीं दिखाई। क्या अमेरिका की जनता जानती है कि यह सिर्फ चंद स्वार्थी और सशक्त लोगों का आपसी मामला है, जिसमें उसका हिस्सा नाममात्र भी नहीं है।

अभद्रता और हुड़दंग प्रतिपक्ष का अधिकार नहीं माना जा सकता है। न कांग्रेस को तर्क आधारित तरीकों से विपक्ष की तरह व्यवहार करना आता है, न कांग्रेस की बी टीमों को। सबको लगता है कि हुड़दंग ही उनकी निष्पत्ति है और भ्रष्टाचार पर आम माफी उनका अधिकार है। ऐसे विपक्ष से लोकतंत्र भले ही प्रभावित न हो, लेकिन संसद के सदनों की उपयोगिता पर लगा प्रश्न जरूर गहराता जाएगा। सदानीरा चुनावों ने, चुनाव सुधारों के प्रतिरोध ने इस स्थिति को और जटिल बनाया है। विडंबना यह है कि उनका इकोसिस्टम यह भी सुनिश्चित करता है कि स्थिति में सुधार न होने पाए और इसे ही लोकतंत्र माना जाए।

उधर देखिए, इतना बड़ा वित्तीय संकट पैदा होने के बावजूद न तो अमेरिका के विपक्ष ने सड़कों पर रैली निकाली, ना काले कपड़े पहन कर स्वांग किए और न सदनों को ठप्प करने की कोशिश की। न कोई अदालतों में पहुंचा और न किसी ने इसके लिए राष्ट्रपति बिडेन को जिम्मेदार ठहराया। उनके मीडिया ने भी ‘बैंकगेट’ जैसा कोई शब्द गढ़ने की रचनात्मकता नहीं दिखाई। क्या अमेरिका की जनता जानती है कि यह सिर्फ चंद स्वार्थी और सशक्त लोगों का आपसी मामला है, जिसमें उसका हिस्सा नाममात्र भी नहीं है।

चाहे जार्ज सोरोस हो, या कोई अन्य, अमेरिका का 90% से अधिक धन, आय और नियंत्रण सिर्फ दो-तीन प्रतिशत लोगों के पास है। यह खाई लगातार बढ़ रही है। किसी आर्थिक गतिविधि या औद्योगिक सफलता के कारण नहीं, बल्कि पूंजीवाद-बाजारवाद के नारे की आड़ में किए जा रहे अनियमित, अनैतिक घपलों के कारण, दूसरों और अपने लोगों की लूट के कारण। लोकतंत्र की असली हत्या तो वहां हो रही है, जहां लोकतंत्र के नारे को दूसरे देशों में हस्तक्षेप करने का औजार समझा जाता है। तंत्र की ही नहीं लोक की भी हत्या।

नकली साख का पानी उतरने और अमीरी के ढहते दरकते किलों के बीच प्रश्न यह है कि अपनी असलियत छुपाते और बाकियों पर उंगली उठाते आखिर वे कौन लोग हैं जो भूख के सूचकांक में अफगानिस्तान-पाकिस्तान को भारत से बेहतर बताते हैं? उस भारत को, जिसने कोरोना की पूरी अवधि के दौरान 80 करोड़ लोगों को दो वर्ष तक मुफ्त अनाज दिया और आज भी दे रहा है। उस भारत को, जिसने दुनिया भर के कई देशों को अपनी वैक्सीन मुफ्त में दी। भारत को चुनौती देने वालों के पंजे भारत में भी गड़े हैं। एक पूरा तंत्र है और लड़ाई विमर्श के मोर्चे पर है। राजनीतिक और आर्थिक पहलुओं को समेटे यह लड़ाई वैचारिक और मानसिक भी है।
एक देश और समाज के रूप में हमें यह मानसिक संघर्ष लंबा लड़ना होगा।

@hiteshshankar

Topics: HindenburgAmerica's big bankscredit dealers face the truthAdani Groupअडाणी समूहजार्ज सोरोसदुनिया के सबसे बड़े अर्थतंत्रहिंडनबर्गअमेरिका के बड़े-बड़े बैंकWorld's largest economy
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