दुनियाभर में मशहूर सवाई माधोपुर में इन दिनों बड़ी संख्या में महिलाएं अचार, पापड़, आंवला तेल आदि बनाने में लगी हुई हैं। एक जमाना था कि जब इस इलाके में खेती के नाम पर ज्वार-बाजरा ही होता था, लेकिन अब खाद्य प्रसंस्करण और मूल्य संवर्धन के जमाने में यहां भी खाद्य प्रसंस्करण की क्रांति हो रही है।
अपनी टाइगर सफारी के लिए दुनियाभर में मशहूर सवाई माधोपुर में इन दिनों बड़ी संख्या में महिलाएं अचार, पापड़, आंवला तेल आदि बनाने में लगी हुई हैं। एक जमाना था कि जब इस इलाके में खेती के नाम पर ज्वार-बाजरा ही होता था, लेकिन अब खाद्य प्रसंस्करण और मूल्य संवर्धन के जमाने में यहां भी खाद्य प्रसंस्करण की क्रांति हो रही है।
यहां शबरी नाम का आर्गेनिक फार्म चलाकर इलाके की महिलाओं को रोजगार देने वाली अर्चना मीणा बताती हैं कि रोजगार देने और किसानों की आमदनी बढ़ाने में कृषि प्रसंस्करण बहुत ही महत्वपूर्ण है। इस प्रसंस्करण के जरिए ही हमने यहां किसानों के सामने आमदनी कई गुना बढ़ाने का उदाहरण पेश किया है। हमने यहां अपने 30 एकड़ के फार्म में उगाए गए आंवले को बेचा नहीं, बल्कि उसमें कुछ अन्य जड़ी-बूटियां मिलाकर उसका सिर का तेल बनाया और फिर उसे बेचा। जहां कच्चा आंवला बाजार में 7-8 रुपये किलो में बेचा जाता है, वहीं ये तेल 300 रुपये लीटर से ज्य़ादा का आसानी से बेचा जा सकता है। साथ ही, इसको अगर कोई ब्रांड बना दें तो इसकी कीमत और बढ़ जाती है।
हमारे फार्म में फूलों की खेती होती है, लेकिन हम फूल बाजार में नहीं बेचते बल्कि इनसे अगरबत्ती और दूसरे उत्पाद बनाकर बाजार में बेचते हैं। आनलाइन बाजार आने के बाद इन उत्पादों को दुनिया के किसी भी कोने में बेचना अब काफी आसान हो गया है। इससे हमने ना सिर्फ यहां की महिलाओं को रोजगार दिया है, बल्कि हमारा उदाहरण देखकर यहां बहुत से युवाओं ने अपने उत्पाद बनाने शुरू कर दिए हैं। इससे इस इलाके से पलायन भी कम हो गया है।
पिछले कुछ सालों में भारत में किसान और कस्बों के लोगों में ये समझ आ गई है कि सिर्फ फसल बेचने से काम नहीं चलेगा, बल्कि उसमें कुछ मूल्य संवर्धन करने से उसकी अच्छी कीमत मिलेगी। ये बात सिर्फ लोगों को ही नहीं, बल्कि व्यवसाय करने वालों को भी अच्छे से समझ में आ गई है। तभी तो पिछले कुछ सालों में प्रसंस्करण इकाई लगाने में काफी तेजी आई है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि भारत में काफी बड़ी आबादी है, जिसकी मांग को पूरा करने के लिए भारी मात्रा में खाद्य पदार्थ और अन्य वस्तुओं की जरूरत होती है। साथ ही भारत में बहुत सारी कृषि उपज तो होती ही है, बहुत सारे मामलों में भारत विश्व का सबसे बड़ा उत्पादक देश भी है। लेकिन अभी तक भारत में लगभग 30 प्रतिशत के आसपास फल और सब्जियां प्रसंस्करण और लॉजिस्टिक के अभाव में बर्बाद हो जाती थीं। लेकिन अब सरकार की लगातार कोशिशों और प्रसंस्करण इकाइयों के बढ़ने से ये काफी कम होने लगा है।
खाद्य प्रसंस्करण में भारी निवेश
केंद्र की मोदी सरकार ने खाद्य प्रसंस्करण की जरूरतों को देखते हुए प्रधानमंत्री एफएमई परियोजना को शुरू किया है। इसमें 2025 तक कुल 35 हजार करोड़ रुपये का निवेश किया जाएगा। दरअसल ये योजना युवाओं को प्रसंस्करण में कारोबार करने के लिए प्रेरित करने के लिए है। भारत दुनिया के बाजारों में प्रतिस्पर्धा करते हुए आत्मनिर्भर बन सकें, इसी उद्देश्य से प्रसंस्करण उद्योगों पर सरकार भारी सब्सिडी दे रही है।
खाद्य प्रसंस्करण में सहायक निदेशक रविंद्र सिंह ने बताया कि पीएफएमई-प्रधानमंत्री फॉर्मलाइजेशन आफ माइक्रो फूड प्रॉसेसिंग इंटरप्राइजेज योजना में अपने छोटी फूड कंपनियों या स्टार्टअप को बढ़ावा देने के लिए 35 प्रतिशत सब्सिडी के साथ बैंक ऋण उपलब्ध कराया जा रहा है। इस योजना का फायदा केवल उन्हीं लाभार्थियों को दिया जाएगा जो केवल खाद्य उद्योग में अपना छोटा या बड़ा कारोबार शुरू करना चाहते हैं।
उन्होंने बताया कि नमकीन बनाने, कोल्ड ड्रिंक, खोया पनीर, बेकरी इकाई – बर्गर, बिस्किट, ब्रेड, केक, अचार बनाने की इकाई, सरसों से तेल निकालने की मिल, पापड़ बनाने का व्यवसाय, दाल बनाने का व्यवसाय, मशीन मसाला पिसाई इकाई, आलू या केले के चिप्स बनाने की इकाई, लहसुन या अदरक की पेस्ट बनाने की इकाई, सोयाबीन से पनीर बनाने की इकाई, गेहूं बाजरा का दलिया, मैदा-आटा बनाने की इकाई, हलवाई का व्यवसाय, आंवला से मुरब्बा बनाने की इकाई के लिए इस योजना के तहत कर्ज मिलेगा। बैंक से ऋण लेने पर 35 प्रतिशत सब्सिडी के तहत ज्यादा से ज्यादा 10 लाख रुपये तक दिए जाने का प्रावधान है।
इस तरह की योजनाओं के कारण ही देश में अभी तक कुल 41 मेगा फूड पार्क बन चुके हैं। इन पार्क में बड़ी-बड़ी खाद्य कंपनियों ने फैक्टरियां लगाई हुई हैं जहां आटा से लेकर तरह-तरह के पैकेटबंद खाद्य तैयार हो रहे हैं जहां से ये देश से लेकर विदेशों तक भेजे जा रहे हैं। दुनियाभर में भारत के खाद्य की काफी मांग भी है। भारत से प्रसंस्करित गेहूं-चावल और उसके उत्पादों के साथ-साथ अब मोटे अनाजों की भी भारी मांग है।
देश के शहरी इलाकों में रेडी मिक्स्ड या इंस्टेंट मिक्स्ड फूड का भी खासा चलन हो गया है। इसकी वजह से खाद्य क्षेत्र की कंपनियां काफी अच्छा व्यवसाय कर रही है। खाद्य क्षेत्र में आम कारोबारियों की रुचि का बड़ा कारण इस क्षेत्र में भारी विकास है। खुदरा खाद्य क्षेत्र हर शहर, हर गांव में तेजी से बढ़ रहा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक अगले एक साल में खुदरा खाद्य बाजार 12 बिलियन डॉलर यानी करीब एक लाख करोड़ रुपये का हो जाएगा। ऐसे में दुनियाभर की बड़ी कंपनियों से लेकर भारत के बड़े व्यावसायिक घराने भी खाद्य खुदरा कारोबार में आ रहे हैं। इसके बावजूद छोटे कारोबारियों के लिए भी इस क्षेत्र में काफी जगह बची हुई है। यही वजह है कि देश की करीब 12 प्रतिशत आबादी इस कारोबार से रोजगार पा रही है।
खाद्य प्रसंस्करण में भारत के तेजी से बढ़ते कदमों की वजह से भारत अब दुग्ध उत्पादन में शीर्ष पर है। दुनिया के कुल दुग्ध उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी 23 प्रतिशत हो गई है जबकि प्रसंस्करण के अभाव में पहले बहुत दूध बेकार हो जाता था। तटीय राज्यों में मछली पालन और उसकी पैकिंग और निर्यात का काम भी काफी बढ़ गया है। देश में अब मछली उत्पादन 16 मिलियन मीट्रिक टन पहुंच गया है, जो एक रिकॉर्ड है।
किसानों को खाद्य प्रसंस्करण और खेती के लिए सर्टिफिकेट देने वाली सिक्किम की सरकारी संस्था ससोका के सीईओ सुधीर गिरी के मुताबिक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लगातार खाद्य प्रसंस्करण पर जोर देने और सरकार के इस सेक्टर के लिए नई योजनाओं के बाद अब इस सेक्टर में काफी काम हो रहा है। हमारे राज्य सिक्किम में भी अब किसान बड़ी इलाइची को कच्चा बेचने के बजाय इसको प्रसंस्कृत करके बेचते हैं, इससे उन्हें इसकी अच्छी कीमत मिलने लगी है। लद्दाख, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और हरियाणा में भी बड़ी संख्या में प्रसंस्करण का काम हो रहा है।
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