माधुरी बड़थ्वाल देवभूमि उत्तराखंड के लोक संगीत से जुड़ी एक सुप्रसिद्ध लोक गायिका हैं। वह ऑल इंडिया रेडियो में पहली महिला संगीतकार के रूप में जानी जाती हैं। माधुरी बड़थ्वाल को सन 2019 के अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर “नारी शक्ति पुरस्कार” से सम्मानित किया गया था। लोकगीतों और लोक संगीत के संरक्षण और प्रचार के लिए भारत सरकार ने 2022 में डॉ. माधुरी बड़थ्वाल को पद्मश्री से सम्मानित किया है। उत्तराखंड के लोक संगीत के संरक्षण के लिए वह बरसों से काम कर रही हैं।
माधुरी बड़थ्वाल का जन्म 19 मार्च 1953 में देवभूमि उत्तराखण्ड में यमकेश्वर, पौड़ी गढ़वाल हुआ था। इनके पिता चंद्रमणि उनियाल भारत के स्वतंत्रता प्राप्ति संग्राम के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे। माधुरी के पिता एक गायक और सितार वादक भी थे अतः उनको भी बचपन से ही संगीत से लगाव था।। माधुरी ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा लैंसडाउन से प्राप्त की थी। उन्होंने लैंसडाउन से हाईस्कूल की परीक्षा पास करने के बाद संगीत प्रभाकर की डिग्री ली थी। संगीत प्रभाकर की शिक्षा के बाद माधुरी ने इलाहबाद संगीत समिति से संगीत का प्रशिक्षण लिया था। उन्होंने आगरा यूनिवर्सिटी से संगीत में डिग्री हासिल की और अपनी आगे पढ़ाई भी व्यक्तिगत माध्यम से करती रहीं। उन्होंने रुहेलखंड यूनिवर्सिटी से हिंदी में परास्नातक की डिग्री हासिल की थी। माधुरी बड़थ्वाल ने गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर गढ़वाल से सन 2007 में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की थी।
डॉ. माधुरी बड़थ्वाल को बचपन से ही संगीत में अगाध रूचि थी, उस समय लोग लड़कियों का गाना-बजाना गलत समझते थे। इसी रूढ़िवादी विचारधारा को ख़त्म करने के लिए उन्होंने मन में निश्चय किया कि महिलाओं को संगीत के क्षेत्रों में आगे बढ़ाने के लिए वह स्वयं प्रयास करेंगी। अपनी पढ़ाई जारी रखते हुए उन्होंने आकाशवाणी नजीबाबाद के लिए भी कार्य किया था। उनको ऑल इंडिया रेडियो नजीबाबाद की प्रथम महिला संगीतकार के रूप में भी जाना जाता है। आकाशवाणी नजीबाबाद से प्रसारित होने वाले कार्यक्रम ‘धरोहर’ के द्वारा उन्होंने लोकगीत संगीत और लोक गाथाओं का प्रचार व प्रसार किया था। महिलाओं के प्रति रूढ़िवादी विचारधारा का अंत करने के लिए माधुरी बड़थ्वाल ने पारम्परिक मंगल टीमें बनाई थी। उन्होंने ढोल वादन में पुरुषों के वर्चस्व को चुनौती दी थी। चुनौती भरे जीवन में इस कार्य के लिए उनके पति डॉ. मनुराज शर्मा बड़थ्वाल का भरपूर साथ मिला था। 32 वर्ष तक आकाशवाणी के साथ काम करने के बाद भी वह चुप नहीं बैठीं। उन्होंने उत्तराखण्ड के लोक संगीत के संरक्षण में अपने अथक प्रयासों को बढ़ाये रखा। उन्होंने मंगल टीमों द्वारा महिलाओं को ढोल वादन में पारंगत किया था।
वर्तमान में उनके माध्यम से प्रशिक्षित महिलाओं का बैंड एक मिसाल है। लोक गीतों और संगीत में माधुरी बड़थ्वाल को 50 वर्षों के समय के शोध का अनुभव है। इस शोध समय में उन्होंने सैकड़ों बच्चों को संगीत की शिक्षा प्रदान की है। उत्तराखंड के अनेक जानेमाने कलाकारों से लेकर अनजान कलाकारों को भी उन्होंने रिकॉर्ड भी किया है। उन्होंने उत्तराखंड के दुर्लभ वाद्य यंत्रों को दस्तावेज स्वरूप में सहेजने और संजोने का महत्वपूर्ण कार्य किया है। वह उत्तराखंड में इस्तेमाल होने वाले प्रत्येक वाद्य यंत्र को जानती हैं। उन्होंने उत्तराखंड के लोक संगीत को भारतीय शास्त्रीय संगीत के साथ मिलाकर लोक संगीत को एक नया रूप दिया है। माधुरी बड़थ्वाल अपनी संस्था ‘मनु लोक सांस्कृतिक धरोहर संवर्धन संस्थान’ के द्वारा लोक संगीत, लोक परम्पराओं और लोक वाद्यों व लोक संस्कृति के संरक्षण में सदा प्रयासरत हैं।
डॉ. माधुरी बड़थ्वाल को सन 2019 में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य पर भारत के महामहिम राष्ट्रपति द्वारा ‘नारी शक्ति पुरस्कार’ से सम्मानित किया था। माधुरी को उक्त सम्मान को भारत के महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने संगीत, प्रसारण और शिक्षण के लिए समर्पित साठ वर्षों की पहचान के रूप में प्रस्तुत किया था। प्रशस्ति पत्र में उल्लेख किया गया है कि उसने संगीत के संरक्षण के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया है। डॉ माधुरी बड़थ्वाल को 2022 में भारत सरकार द्वारा लोकगीतों और लोक संगीत के संरक्षण और प्रचार के लिए सर्वोच्च नागरिक अलंकरण पद्मश्री से सम्मानित किया था। मूलतः पौड़ी गढ़वाल जिले के यमकेश्वर निवासी डॉ. माधुरी बर्थवाल वर्तमान में उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से अपने पुण्य प्रयास पर अग्रसर हैं।
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