अब ईरान से आ रही खबरों से दुनिया हैरान है। हिजाब के विरुद्ध आंदोलन में महसा अमीनी की सितंबर, 2022 में पुलिस हिरासत में मौत के बाद बहुत सी स्कूली छात्राएं इस आंदोलन में कूद पड़ी थीं। दिसंबर से स्कूली लड़कियों के स्कूलों में बेहोश होने, सांस न ले पाने की शिकायतें आने लगीं।
अक्तूबर, 2012 में पाकिस्तान के खैबर-पख्तूनख्वा के स्वात में 14 वर्ष की एक बच्ची पढ़ना चाहती थी। पढ़ना चाहने के इस ‘गुनाह’ की सजा इस्लामी आतंकवादियों ने उस पर हमला करके दी। यह बच्ची बुरी तरह जख्मी हुई, उसकी जान बचाने के लिए उसे ब्रिटेन ले जाया गया और किसी तरह यह बच्ची बची। यह मलाला युसुफजई थी जो आज ‘वोक’दुनिया की एक आइकन है। पूरी दुनिया ने इस हमले की लानत-मलानत की थी। मलाला को बाद में नोबेल से भी सम्मानित किया गया। परंतु क्या इससे इस्लामी कट्टरवादियों ने कोई सबक लिया?
मलाला पर हमले की घटना को 10 वर्ष से अधिक बीत चुके हैं। अब ईरान से आ रही खबरों से दुनिया हैरान है। हिजाब के विरुद्ध आंदोलन में महसा अमीनी की सितंबर, 2022 में पुलिस हिरासत में मौत के बाद बहुत सी स्कूली छात्राएं इस आंदोलन में कूद पड़ी थीं। दिसंबर से स्कूली लड़कियों के स्कूलों में बेहोश होने, सांस न ले पाने की शिकायतें आने लगीं। अभिभावकों ने इसका विरोध किया तो जांच बैठा दी गई। लेकिन तीन महीने बीत गए, अब तक कोई जांच रिपोर्ट नहीं आई।
ईरान के उप स्वास्थ्य मंत्री यूनुस पनाही ने फरवरी के आखिर में पुष्टि की थी कि घोम, बोरुजर्ड जैसे शहरों में नवंबर से ही श्वसन प्वाइजनिंग के सैकड़ों मामले सामने आए हैं। उनका कहना है कि स्कूलों के पानी में घातक रसायन मिलाया जा रहा है जिससे यह समस्या आई है। पनाही ने कहा कि इससे पता चलता है कि कुछ लोग लड़कियों की शिक्षा को रोकना चाहते हैं और बालिका विद्यालयों को बंद कराना चाहते हैं। आश्चर्यजनक रूप से ईरान के 30 में से 21 प्रांतों में संदिग्ध मामले मिले हैं और तकरीबन सभी घटनाएं बालिका विद्यालयों की हैं। गृह मंत्री अहमद वाहिदी ने 4 मार्च को कहा कि जहर की संदिग्ध घटनाओं से कम से कम 52 स्कूल प्रभावित हुए हैं। ईरान की मीडिया ने स्कूलों की संख्या 60 बताई है। कम से कम एक बाल विद्यालय भी प्रभावित हुआ है।
ईरान के कई मंत्री इस पर अपनी सफाई देकर सरकार की इसमें किसी तरह की भूमिका होने से इनकार कर चुके हैं। लेकिन लोगों का आक्रोश थमने का नाम नहीं ले रहा है। गुस्साए अभिभावक सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन कर रहे हैं तो अनेक स्कूलों के दरवाजों पर आंसू बहा रहे हैं। कुल 12,000 से अधिक छात्राओं का अस्पताल में इलाज चल रहा है। रासायनिक हमले से आहत छात्राओं का अस्पतालों में पहुंचना जारी है। कई की हालत बहुत ज्यादा खराब है। वे पूरे शरीर में सुन्नपन, बेचैनी और गफलत की शिकायत कर रही हैं। कुछ स्कूली शिक्षिकाओं का भी कहना है कि उस रसायन की गंध से रह—रहकर बेहोशी छा रही है। अभिभावक अलग अस्पतालों के चक्कर काट रहे हैं।
महिलाओं के लिए दिमागों में जहर भरते वीडियो
डॉ. सोनाली मिश्र
एक वीडियो, जिसे 4 मार्च को एक यूजर ने ट्विटर पर अपलोड किया, उसमें एक बच्चे से एक व्यक्ति प्रश्न करता दिखाई दे रहा है कि ‘दस गुनाहगार औरतें कौन सी हैं?’ तो उसमें वह बच्चा कहता हुआ दिखाई दे रहा है
गत मार्च को पूरे विश्व ने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया है और महिलाओं को लेकर तमाम बातें की गई हैं। कई वादे-इरादे निर्धारित किए गए हैं और न जाने क्या-क्या कहा गया होगा। परन्तु इसी बीच भारत के पड़ोसी पाकिस्तान से और अफगानिस्तान से दो ऐसे वीडियो सामने आए हैं, जो बहुत ही अधिक चौंकाने वाले हैं। ये दोनों ही वीडियो महिलाओं की आजादी को लेकर ऐसा कथानक रचते हैं, ऐसा दृश्य रचते हैं, जो कहीं से भी सभ्य नहीं कहा जा सकता है।
एक वीडियो, जिसे 4 मार्च को एक यूजर ने ट्विटर पर अपलोड किया, उसमें एक बच्चे से एक व्यक्ति प्रश्न करता दिखाई दे रहा है कि ‘दस गुनाहगार औरतें कौन सी हैं?’ तो उसमें वह बच्चा कहता हुआ दिखाई दे रहा है कि ‘वे हैं – बेपर्दा औरत, तेज जबान औरत, दीन का मजाक उड़ाने वाली औरत, चुगलखोर औरत, अहसान जतलाने वाली औरत, खाविंद (पति) की नाफरमानी करने वाली औरत, बाल खोलकर चलने वाली औरत और बगैर जरूरत के घर से बाहर निकलने वाली औरत!’
यह वीडियो इसलिए और भी अधिक चौंकाने वाला है क्योंकि इसमें बच्चे के दिमाग में भरा जा रहा है कि ‘अच्छी औरतें’ कौन सी हैं? अच्छी का निर्धारण कौन करेगा? जो बच्चा अभी से यह कह रहा है कि बेपर्दा वाली औरतें गुनाहगार औरतें हैं, और बाल खोलकर चलने वाली औरतें गुनाहगार औरतें हैं, तो क्या वह कभी यह समझ पाएगा कि ईरान में आखिर लड़कियां क्यों अपनी जान दे रही हैं? वह क्यों विरोध कर रही हैं? उसके मन में बालपन से ही यह बैठा दिया गया है कि बेपर्दा औरतें और अपने खाविंद की नाफरमानी करने वाली औरतें गुनाहगार होती हैं।
खाविंद को लेकर अफगानिस्तान से भी एक बहुत ही हैरान करने वाला वीडियो सामने आया है। इसमें एक मौलाना अहमद फिरोज अहमदी यह कह रहा है कि ‘यदि घर में आग भी लगी है और शौहर ने जिस्मानी इच्छा जाहिर की है, तो भी बीवी को इनकार नहीं करना चाहिए। अगर वह खाना पका रही है और शौहर हमबिस्तर होने की इच्छा जाहिर करता है तो उसे इनकार नहीं करना चाहिए, क्योंकि वही उनका कार्य है।
जब पूरे विश्व में महिला दिवस मनाया गया तो क्या किसी ने इन तमाम महिलाओं के विषय में चिंता की? या फिर इस बात को लेकर चिंता की कि जो जहर बच्चों के दिमागों में भरा जा रहा है, वह क्या प्रभाव उत्पन्न कर सकता है? वह कितना प्रभावित कर सकता है? शायद नहीं!
खाविंद की हमबिस्तर होने की इच्छा को तब भी औरत मना नहीं कर सकती है जबकि वह ऊंट पर बैठी हो।’ इस विषय में भी एक मौलाना का वीडियो वायरल हुआ था। ऊंट पर बैठने का अर्थ था प्रसव के अंतिम दिन।
यह उस अफगानिस्तान का वीडियो है, जहां हाल ही में महिलाओं पर तमाम तरह के प्रतिबन्ध लगा दिए गए हैं। यहां तक कि महिलाओं को बच्चा पैदा करने वाली मशीन मानते हुए महिलाओं के गर्भनिरोधक उपायों पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया है। तालिबान के अनुसार गर्भनिरोधकों का महिलाओं द्वारा विरोध एक पश्चिमी षड्यंत्र है। अफगानिस्तान में तमाम प्रतिबन्ध महिलाओं पर लगाए जा चुके हैं, जिनकी गिनती ही शायद संभव नहीं होगी। पिछले दिनों जब पूरे विश्व में महिला दिवस मनाया गया तो क्या किसी ने इन तमाम महिलाओं के विषय में चिंता की? या फिर इस बात को लेकर चिंता की कि जो जहर बच्चों के दिमागों में भरा जा रहा है, वह क्या प्रभाव उत्पन्न कर सकता है? वह कितना प्रभावित कर सकता है? शायद नहीं!
इन तमाम महिलाओं को विमर्श से बाहर क्यों कर दिया है, जिन्हें सार्वजनिक पटल से अनुपस्थित पहले ही किया जा चुका है? बहरहाल महिला दिवस पर ऐसे दो वीडियो का सामने आना और उस पर मौन रह जाना, बहुत कुछ कहता है क्योंकि इन्हीं दिनों ईरान में बच्चियों को जहर देने के मामले भी सामने आ रहे हैं, जब वे तालीम पाने की राह में आगे बढ़ना चाहती हैं। प्रश्न यही है कि इन पीड़ाओं पर बोलना कब आरम्भ किया जाएगा?
हालांकि समाचार यह भी है कि अपनी बेटियों की बदहाली देखकर गुस्साए माता—पिताओं से पुलिस बर्बरता से पेश आ रही है। वायरल हुए एक वीडियो में एक छात्रा की मां के सरकार विरोधी नारे लगाने पर पुलिस वाले उसके बाल खींचते और उसे पुलिस की गाड़ी की तरफ धकेलते हुए दिख रहे हैं। पुलिस वालों ने सादा कपड़े पहने हुए हैं। शहर कुद्स में इसार गर्ल्स स्कूल पर रासायनिक हमले के बाद एक मां ने कहा कि ‘वे (स्कूल प्रशासन) छात्राओं को स्कूल से बाहर भी नहीं आने दे रहे हैं।’ रामहॉरमोज स्थित जैनब गर्ल्स स्कूल में रासायनिक हमले की शिकार छात्राओं की स्थिति बहुत खराब बताई जा रही है। ट्विटर पर फरवरी के अंतिम दिनों से लगभग प्रतिदिन दो-चार स्कूलों पर रासायनिक हमले की खबरें लगातार मिल रही हैं। शिकार छात्राओं और उनके बिलखते अभिभावकों, अभिभावकों से बदसलूकी करते पुलिसकर्मियों के वीडियो से ट्विटर अटा पड़ा है।
इस मामले में अब तक किसी ने जिम्मेदारी नहीं ली है, परंतु कई ईरानी पत्रकारों ने ‘फिदायीन विलायत’ नाम के एक समूह के बयान का हवाला दिया है, जिसमें कहा गया है कि लड़कियों की शिक्षा को ‘प्रतिबंधित माना जाता है’ और धमकी दी है कि अगर उनके स्कूल खुले रहेंगे तो पूरे ईरान में लड़कियों को जहर दिया जाएगा। वहीं ईरानी अधिकारियों का कहना है कि उन्हें ‘फिदायीन विलायत’ नाम के समूह के बारे में जानकारी नहीं है।
शिया देश के सुप्रीम नेता अयातुल्ला अली खामेनेई ने कहा है कि ये ऐसा अपराध है जिसके लिए अपराधी को माफ नहीं किया जा सकता। खामेनेई ने छात्राओं पर हो रहे रासायनिक हमले को घोर अपराध की संज्ञा दी है। अपने इसी वक्तव्य में उन्होंने ईरान की गुप्तचर एजेंसी और पुलिस विभाग को हुक्म दिया कि वे अपराधियों की जल्दी से जल्दी पहचान कर उन्हें दंडित करवाएं। ईरान के न्यायपालिका प्रमुख गुलाम हुसैन मोहसेनी ने अपनी तरफ से कहा है कि इस जैसा अपराध करने वालों को मौत की सजा दी जाएगी। उन्होंने कहा कि इस मामले में जल्दी ही अदालत सुनवाई शुरू करेगी। लेकिन अभी तक यह सिर्फलीपापोती साबित हुई है।
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