एक रपट के अनुसार नक्सलियों ने इन दोनों गांवों को आने वाले सभी रास्तों पर बारूदी सुरंगें बिछा रखी हैं। इस कारण इन दोनों गांवों में न तो कोई बाहरी व्यक्ति जा पा रहा है और न ही गांव के लोग कहीं निकल पा रहे हैं। इस रपट के लिखे जाने तक खबर यह थी कि दोनों गांवों को मुक्त करने के लिए सीआरपीएफ सक्रिय हो गई है।
झारखंड सरकार दावा कर रही है कि राज्य में नक्सली गतिविधियों में कमी आई है, लेकिन इन दिनों पश्चिमी सिंहभूम जिले में जो हो रहा है, वह सरकार के दावे को झुठला रहा है। बता दें कि तुंबा हाका और सरजमबुरू नामक दो गांव लगभग दो महीने से नक्सलियों के कब्जे में हैं। ये दोनों टोंटो थाना क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं। एक रपट के अनुसार नक्सलियों ने इन दोनों गांवों को आने वाले सभी रास्तों पर बारूदी सुरंगें बिछा रखी हैं। इस कारण इन दोनों गांवों में न तो कोई बाहरी व्यक्ति जा पा रहा है और न ही गांव के लोग कहीं निकल पा रहे हैं। इस रपट के लिखे जाने तक खबर यह थी कि दोनों गांवों को मुक्त करने के लिए सीआरपीएफ सक्रिय हो गई है।
इन गांवों में ‘हो’ जनजाति के लोग रहते हैं। नक्सलियों ने लगभग 500 की आबादी को घरों में ही कैद कर रखा है। नक्सलियों के कारण तुंबा हाका का प्राथमिक विद्यालय भी बंद है। जिला शिक्षा विभाग के अनुसार विद्यालय के शिक्षकों ने लिखित में सूचित किया है कि गांव में नक्सलियों का कब्जा है। इसलिए वहां जाना और विद्यालय चलाना संभव नहीं है। एक अन्य रपट के अनुसार 16 जनवरी को जिला मुख्यालय से दो शिक्षकों को विद्यालय खोलने के लिए भेजा गया था, लेकिन उन दोनों को नक्सलियों ने डरा-धमका कर वापस भेज दिया। यह भी कहा जा रहा है कि तुंबा हाका गांव से लगभग एक किलोमीटर पहले मुख्य सड़क पर पेड़ काटकर रखे गए हैं और उनमें भी विस्फोटक लगाए गए हैं। यह भी कहा जा रहा है कि गांव से कुछ ही दूरी पर जंगलों में नक्सली जमे हुए हैं। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार इसकी पुष्टि ड्रोन कैमरे से ली गई तस्वीरें भी कर रही हैं।
इतना सब होने के बाद भी प्रशासन खुलकर कुछ बोलने से कतरा रहा है। पश्चिमी सिंहभूम के पुलिस अधीक्षक आशुतोष शेखर परोक्ष रुप से स्वीकार करते हुए कहते हैं, ‘‘नक्सलियों द्वारा पूरे गांव को कब्जे में नहीं लिया गया है, बल्कि कुछ जगहों पर उनका बसेरा है। ग्रामीणों को सुरक्षा मुहैया कराने और रास्ते में बिछाई गई बारूदी सुरंगों को निष्क्रिय करने का प्रयास किया जा रहा है।’’
नक्सलियों ने लगभग 500 की आबादी को घरों में ही कैद कर रखा है। नक्सलियों के कारण तुंबा हाका का प्राथमिक विद्यालय भी बंद है। जिला शिक्षा विभाग के अनुसार विद्यालय के शिक्षकों ने लिखित में सूचित किया है कि गांव में नक्सलियों का कब्जा है। इसलिए वहां जाना और विद्यालय चलाना संभव नहीं है। एक अन्य रपट के अनुसार 16 जनवरी को जिला मुख्यालय से दो शिक्षकों को विद्यालय खोलने के लिए भेजा गया था, लेकिन उन दोनों को नक्सलियों ने डरा-धमका कर वापस भेज दिया।
लेकिन कुछ लोग सवाल उठा रहे हैं कि नक्सली इतने दुस्साहसी कैसे हुए! फिर इसका उत्तर भी वहीं लोग बताते हैं। कहते हैं कि राज्य सरकार पर नक्सलियों के विरुद्ध कार्रवाई न करने का भारी दबाव है, लेकिन जब नक्सली लोगों की जान लेने लगते हैं, तब आम लोगों के गुस्से को शांत करने के लिए राज्य सरकार को उनके विरुद्ध कुछ कार्रवाई करनी पड़ती है।
बता दें कि इस क्षेत्र में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट सेंटर (एमसीसी) के हत्यारों का दबदबा है। ये लोग आए दिन कुछ ऐसा करते हैं कि उनके विरुद्ध सुरक्षाबलों को अभियान चलाना पड़ता है। एक ऐसा ही अभियान जनवरी में भी चला था। उस दौरान सुरक्षाबलों और नक्सलियों के बीच भीषण मुठभेड़ हुई थी। मुठभेड़ के दौरान आईईडी विस्फोट में छह सुरक्षाकर्मी घायल हो गए थे। सूत्रों के अनुसार उस समय सुरक्षाबलों को नक्सली मिसिर बेसरा के दस्ते की जानकारी मिली थी। इसके बाद टोंटो के जंगलों में बड़ा अभियान चलाया गया था। कहा जा रहा है कि उस अभियान के बाद नक्सली और अधिक सक्रिय हो गए और उन्होंने प्रशासन को चुनौती देने के लिए इन दोनों गांवों पर कब्जा कर लिया।
पश्चिमी सिंहभूम जिला मुख्यालय चाईबासा से तुंबा हाका की दूरी लगभग 35 किलोमीटर है। चाईबासा से नरसंडा मोड़, सोनुवा, बरकेला, जोजोहातु, अंजदबेड़ा, माईपी, स्वयंबा, पालातरुब होते हुए तुंबा हाका जाया जाता है। स्वयंबा के आगे रास्ता नहीं है। गांव वाले तुंबा हाका जाने के लिए पगडंडी का ही इस्तेमाल करते हैं। गोइलकेरा और टोंटो के बीच के रास्तों पर नक्सलियों ने बारुदी सुरंग बिछाई हुई हैं। इस कारण गांव के लोग दुनिया से कटे हुए हैं।
पुलिस हो या नक्सली, दोनों एक-दूसरे के खिलाफ रणनीतियां बनाते हैं और एक-दूसरे के लिए चुनौती भी समय-समय पर बनते रहते हैं। उन्होंने बताया कि नक्सलियों ने आक्रामक नीति बनाते हुए अब मोटरसाइकिल दस्ता बनाया है। ये कई स्थानों पर मोटरसाइकिल से पहुंचकर घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। ये झारखंड में नक्सली बच्चों और महिलाओं का भी इस्तेमाल करते रहे हैं।
कोल्हान के पुलिस उप महानिरीक्षक अजय लिंडा के अनुसार, ‘‘लगातार तलाशी अभियान चलाया जा रहा है। इस कारण मिसिर बेसरा और उसके साथी नक्सली ठिकाने बदल रहे हैं, लेकिन पुलिस चारों तरफ से उन्हें घेर चुकी है। अब नक्सली या तो मारे जाएंगे या फिर जेल के अंदर जाएंगे।’’ हालांकि उन्होंने गांव पर नक्सलियों का कब्जा होने की बात से इनकार किया है, लेकिन जो स्थितियां बनी हुई हैं, वे कुछ और ही बताती हैं।
सूत्रों के अनुसार गोइलकेरा और टोंटो के बीच के रास्तों पर नक्सलियों ने बम बिछाए हुए हैं। पिछले एक महीने में इन क्षेत्रों में 100 से अधिक विस्फोट हो चुके हैं। ऐसा ही एक विस्फोट गोइलकेरा थाना क्षेत्र के इचाहातु में 1 जनवरी को हुआ था, जिसमें 52 वर्षीय कृष्णा पूर्ति की मौत हो गई थी और उनकी पत्नी 45 वर्षीया नंदी पूर्ति घायल हो गई थीं। ये दोनों सुबह खेत में लगी अरहर की फसल को देखने जा रहे थे, तभी जमीन के अंदर विस्फोट हुआ। इस नक्सली हरकत पर झारखंड के पूर्व गृह सचिव और भाजपा नेता जेबी तुबिद कहते हैं, ‘‘नक्सलवाद की वजह से ग्रामीणों का जीवन अस्त-व्यस्त हो चुका है। लोग नक्सली हिंसा के पुराने दिनों को याद करने लगे हैं।’’ उन्होंने यह भी बताया कि जो सख्ती पूर्ववर्ती भाजपा सरकार में थी, वैसी ही सख्ती रहती तो आज यह स्थिति नहीं बनती। हालांकि जेबी तुबिद यह भी कहते हैं कि नक्सलियों और पुलिस के बीच हो रही लड़ाई में ग्रामीण बेवजह अपनी जान गंवा रहे हैं। इसलिए इस समस्या का स्थायी निदान निकलना ही चाहिए।
एक सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि पुलिस हो या नक्सली, दोनों एक-दूसरे के खिलाफ रणनीतियां बनाते हैं और एक-दूसरे के लिए चुनौती भी समय-समय पर बनते रहते हैं। उन्होंने बताया कि नक्सलियों ने आक्रामक नीति बनाते हुए अब मोटरसाइकिल दस्ता बनाया है। ये कई स्थानों पर मोटरसाइकिल से पहुंचकर घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। ये झारखंड में नक्सली बच्चों और महिलाओं का भी इस्तेमाल करते रहे हैं।
इस समय झारखंड के कई जिले नक्सलवाद से प्रभावित हैं। एमसीसी, पीएलएफआई, जेजेएमपी सहित कई नक्सली संगठन पूरे राज्य में सक्रिय हैं। रामगढ़, चतरा, हजारीबाग, पलामू आदि क्षेत्रों में ऐसी कई नक्सली घटनाएं हुई हैं, जो सरकार और समाज के लिए किसी बड़े खतरे से कम नहीं हैं। ल्लझारखंड सरकार दावा कर रही है कि राज्य में नक्सली गतिविधियों में कमी आई है, लेकिन इन दिनों पश्चिमी सिंहभूम जिले में जो हो रहा है, वह सरकार के दावे को झुठला रहा है। बता दें कि तुंबा हाका और सरजमबुरू नामक दो गांव लगभग दो महीने से नक्सलियों के कब्जे में हैं। ये दोनों टोंटो थाना क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं। एक रपट के अनुसार नक्सलियों ने इन दोनों गांवों को आने वाले सभी रास्तों पर बारूदी सुरंगें बिछा रखी हैं। इस कारण इन दोनों गांवों में न तो कोई बाहरी व्यक्ति जा पा रहा है और न ही गांव के लोग कहीं निकल पा रहे हैं। इस रपट के लिखे जाने तक खबर यह थी कि दोनों गांवों को मुक्त करने के लिए सीआरपीएफ सक्रिय हो गई है।
इन गांवों में ‘हो’ जनजाति के लोग रहते हैं। नक्सलियों ने लगभग 500 की आबादी को घरों में ही कैद कर रखा है। नक्सलियों के कारण तुंबा हाका का प्राथमिक विद्यालय भी बंद है। जिला शिक्षा विभाग के अनुसार विद्यालय के शिक्षकों ने लिखित में सूचित किया है कि गांव में नक्सलियों का कब्जा है। इसलिए वहां जाना और विद्यालय चलाना संभव नहीं है। एक अन्य रपट के अनुसार 16 जनवरी को जिला मुख्यालय से दो शिक्षकों को विद्यालय खोलने के लिए भेजा गया था, लेकिन उन दोनों को नक्सलियों ने डरा-धमका कर वापस भेज दिया। यह भी कहा जा रहा है कि तुंबा हाका गांव से लगभग एक किलोमीटर पहले मुख्य सड़क पर पेड़ काटकर रखे गए हैं और उनमें भी विस्फोटक लगाए गए हैं। यह भी कहा जा रहा है कि गांव से कुछ ही दूरी पर जंगलों में नक्सली जमे हुए हैं। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार इसकी पुष्टि ड्रोन कैमरे से ली गई तस्वीरें भी कर रही हैं।
इतना सब होने के बाद भी प्रशासन खुलकर कुछ बोलने से कतरा रहा है। पश्चिमी सिंहभूम के पुलिस अधीक्षक आशुतोष शेखर परोक्ष रुप से स्वीकार करते हुए कहते हैं, ‘‘नक्सलियों द्वारा पूरे गांव को कब्जे में नहीं लिया गया है, बल्कि कुछ जगहों पर उनका बसेरा है। ग्रामीणों को सुरक्षा मुहैया कराने और रास्ते में बिछाई गई बारूदी सुरंगों को निष्क्रिय करने का प्रयास किया जा रहा है।’’
लेकिन कुछ लोग सवाल उठा रहे हैं कि नक्सली इतने दुस्साहसी कैसे हुए! फिर इसका उत्तर भी वहीं लोग बताते हैं। कहते हैं कि राज्य सरकार पर नक्सलियों के विरुद्ध कार्रवाई न करने का भारी दबाव है, लेकिन जब नक्सली लोगों की जान लेने लगते हैं, तब आम लोगों के गुस्से को शांत करने के लिए राज्य सरकार को उनके विरुद्ध कुछ कार्रवाई करनी पड़ती है।
बता दें कि इस क्षेत्र में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट सेंटर (एमसीसी) के हत्यारों का दबदबा है। ये लोग आए दिन कुछ ऐसा करते हैं कि उनके विरुद्ध सुरक्षाबलों को अभियान चलाना पड़ता है। एक ऐसा ही अभियान जनवरी में भी चला था। उस दौरान सुरक्षाबलों और नक्सलियों के बीच भीषण मुठभेड़ हुई थी। मुठभेड़ के दौरान आईईडी विस्फोट में छह सुरक्षाकर्मी घायल हो गए थे। सूत्रों के अनुसार उस समय सुरक्षाबलों को नक्सली मिसिर बेसरा के दस्ते की जानकारी मिली थी। इसके बाद टोंटो के जंगलों में बड़ा अभियान चलाया गया था। कहा जा रहा है कि उस अभियान के बाद नक्सली और अधिक सक्रिय हो गए और उन्होंने प्रशासन को चुनौती देने के लिए इन दोनों गांवों पर कब्जा कर लिया।
पश्चिमी सिंहभूम जिला मुख्यालय चाईबासा से तुंबा हाका की दूरी लगभग 35 किलोमीटर है। चाईबासा से नरसंडा मोड़, सोनुवा, बरकेला, जोजोहातु, अंजदबेड़ा, माईपी, स्वयंबा, पालातरुब होते हुए तुंबा हाका जाया जाता है। स्वयंबा के आगे रास्ता नहीं है। गांव वाले तुंबा हाका जाने के लिए पगडंडी का ही इस्तेमाल करते हैं। गोइलकेरा और टोंटो के बीच के रास्तों पर नक्सलियों ने बारुदी सुरंग बिछाई हुई हैं। इस कारण गांव के लोग दुनिया से कटे हुए हैं।
कोल्हान के पुलिस उप महानिरीक्षक अजय लिंडा के अनुसार, ‘‘लगातार तलाशी अभियान चलाया जा रहा है। इस कारण मिसिर बेसरा और उसके साथी नक्सली ठिकाने बदल रहे हैं, लेकिन पुलिस चारों तरफ से उन्हें घेर चुकी है। अब नक्सली या तो मारे जाएंगे या फिर जेल के अंदर जाएंगे।’’ हालांकि उन्होंने गांव पर नक्सलियों का कब्जा होने की बात से इनकार किया है, लेकिन जो स्थितियां बनी हुई हैं, वे कुछ और ही बताती हैं।
सूत्रों के अनुसार गोइलकेरा और टोंटो के बीच के रास्तों पर नक्सलियों ने बम बिछाए हुए हैं। पिछले एक महीने में इन क्षेत्रों में 100 से अधिक विस्फोट हो चुके हैं। ऐसा ही एक विस्फोट गोइलकेरा थाना क्षेत्र के इचाहातु में 1 जनवरी को हुआ था, जिसमें 52 वर्षीय कृष्णा पूर्ति की मौत हो गई थी और उनकी पत्नी 45 वर्षीया नंदी पूर्ति घायल हो गई थीं। ये दोनों सुबह खेत में लगी अरहर की फसल को देखने जा रहे थे, तभी जमीन के अंदर विस्फोट हुआ। इस नक्सली हरकत पर झारखंड के पूर्व गृह सचिव और भाजपा नेता जेबी तुबिद कहते हैं, ‘‘नक्सलवाद की वजह से ग्रामीणों का जीवन अस्त-व्यस्त हो चुका है। लोग नक्सली हिंसा के पुराने दिनों को याद करने लगे हैं।’’ उन्होंने यह भी बताया कि जो सख्ती पूर्ववर्ती भाजपा सरकार में थी, वैसी ही सख्ती रहती तो आज यह स्थिति नहीं बनती। हालांकि जेबी तुबिद यह भी कहते हैं कि नक्सलियों और पुलिस के बीच हो रही लड़ाई में ग्रामीण बेवजह अपनी जान गंवा रहे हैं। इसलिए इस समस्या का स्थायी निदान निकलना ही चाहिए।
एक सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि पुलिस हो या नक्सली, दोनों एक-दूसरे के खिलाफ रणनीतियां बनाते हैं और एक-दूसरे के लिए चुनौती भी समय-समय पर बनते रहते हैं। उन्होंने बताया कि नक्सलियों ने आक्रामक नीति बनाते हुए अब मोटरसाइकिल दस्ता बनाया है। ये कई स्थानों पर मोटरसाइकिल से पहुंचकर घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। ये झारखंड में नक्सली बच्चों और महिलाओं का भी इस्तेमाल करते रहे हैं।
इस समय झारखंड के कई जिले नक्सलवाद से प्रभावित हैं। एमसीसी, पीएलएफआई, जेजेएमपी सहित कई नक्सली संगठन पूरे राज्य में सक्रिय हैं। रामगढ़, चतरा, हजारीबाग, पलामू आदि क्षेत्रों में ऐसी कई नक्सली घटनाएं हुई हैं, जो सरकार और समाज के लिए किसी बड़े खतरे से कम नहीं हैं।
दस वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। राजनीति, सामाजिक और सम-सामायिक मुद्दों पर पैनी नजर। कर्मभूमि झारखंड।
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