मौर्य काल
मौर्य काल की पहचान लगभग 70 सेमी के व्यास और लगभग 2.20 मीटर की उपलब्ध ऊंचाई वाले टेराकोटा के एक रिंगवेल द्वारा की गई है। इन छल्लों की औसत ऊंचाई 15 सेमी है। इस अवधि में दोनों तरफ टेराकोटा टाइलों से घिरे एक परनाले का भी पता लगाया गया है। हो सकता है कि यह पश्चिम से पूर्व की ओर बहता हो। साथ ही मिट्टी के बर्तनों के छोटे टुकड़े, कटोरे के टुकड़े, किनारे वाले कटोरे प्राप्त हुए हैं। इसके अलावा पुरावशेषों में पहाड़ियों, चंद्रमा और मेहराबों आदि जैसे प्रतीकों के साथ टेराकोटा सीलिंग, टेराकोटा मोती, पहिया,गेंद आदि की महत्वपूर्ण खोज हुई है।
शुंग काल
शुंग काल की संरचनाएं मिट्टी की ईंटों के साथ-साथ कंकड़-पत्थर से बनी थीं। इसके अलावा इस अवधि में कुछ जले हुए स्थान भी देखे गए हैं। लाल बर्तन के टुकड़े, घुमावदार कटोरे, भंडारण के बर्तन, फूलदान, ढक्कन, चित्रित धूसर मृदभांड के टुकड़े भी पाए गए हैं। इस काल के महत्वपूर्ण पुरावशेषों में तांबे के सिक्के, टेराकोटा, मनके, नर एवं मादा मूर्ति, पहिया, गेंद, लोहे, तांबे की वस्तुएं, पत्थर के मोती आदि चीजें मिली हैं।
कुषाण काल
इस कालखंड के एक गृह परिसर का पता चला है, जिसमें कम से कम तीन कमरे थे। मिट्टी की ईंटों के अलावा अधिकांशत: पक्की ईंटों से दीवारों का निर्माण किया गया था। इन ईंटों का प्रयोग दीवारों को आपस में बांटने और फर्श बिछाने में किया गया। इसमें एक पंक्ति पूर्व-पश्चिम में चलती देखी जा सकती है, जो शुंग और कुषाण काल, दोनों से संबंधित मिश्रित मिट्टी के बर्तनों से बनी हुई है। इसके साथ ही इस कालखंड में भी लाल मिट्टी के बर्तन, ढक्कन, नक्काशीदार कटोरे, फूलदान आदि चीजें पाई गई हैं। पुरावशेषों में अधिक मात्रा में तांबे के सिक्के शामिल हैं। इसके अलावा सुपारी के आकार के मनके, पहिया, गेंद, लोहे और तांबे की वस्तुएं, एवं कांच के मनके मिलते हैं।
गुप्त काल
गुप्त काल में संरचनाओं के निर्माण के लिए कुषाण काल की ईंटों का फिर से उपयोग होते देखा गया है। इसके साथ ही किनारेदार कटोरे, ढला हुआ कटोरा, कछुए के खोलनुमां मिट्टी के बर्तन, फूलदान मिले हैं। पुरावशेषों में टेराकोटा सीलिंग महत्वपूर्ण खोज हैं, जिनमें से एक में संस्कृत में ‘ब्रह्ममित्र’ का उल्लेख है। टेराकोटा मुहर, पहिया, गेंद, पासा, मानव और पशु मूर्तियां, पक्षी मूर्ति, गज लक्ष्मी का टेराकोटा का चिन्ह, पत्थरों के मोती, कांच के मोती, शेर की आकृति का चमकता हुआ लॉकेट, मनका एवं नक्काशीदार ईंट खुदाई में मिली हैं।
उत्तर-गुप्त काल
इस काल के अवशेषों में मनके आदि चीजें मिली थीं। इनमें मिट्टी के बर्तन, टुकड़े और एक टोंटी, तेज धार वाले रिम कटोरे, फूलदान आदि शामिल हैं। पुरावशेषों में टेराकोटा पहिया, गेंद, तांबे की वस्तु, पत्थर के मोती और टेराकोटा की एक महिला मूर्ति मिली है।राजपूत काल
राजपूत काल के तीसरे चरण में पत्थर की एक दीवार, जो आधी तैयार है, मिली है। इस दीवार की चौड़ाई सामान्य से काफी अधिक है। ऐसे में यह असामान्य चौड़ाई राजपूत काल की संभावित किलेबंदी का संकेत देती है। इसके पास ही एक गड्ढे में पालतू पशु का कंकाल भी बरामद हुआ है। साथ ही इन दीवारों के पूर्व में बड़ी मात्रा में मिट्टी के बर्तन, विभिन्न आकार के धार वाले कटोरे, व्यंजन, हांडी, फूलदान आदि खुदाई में मिले। पुरावशेषों में पत्थर के बाट, टेराकोटा चम्मच / करछुल, गेंद, लोहे की वस्तुएं, टेराकोटा पशु मूर्ति, भगवान विष्णु की पत्थर की छवि, पत्थर के मनके इस अवधि के उल्लेखनीय पुरावशेष हैं।
सल्तनत काल
इस काल की तीन बेतरतीब कंकड़-पत्थर की दीवारें मिली हैं। दो स्थानों पर चूने के फर्श के निशान का पता लगा है। साथ ही इसके नीचे मिट्टी के गारे से बनी एक पत्थर के मलबे की दीवार है, जो इस अवधि के प्रथम चरण के उत्तर-दक्षिण में चलती है। सल्तनत काल की विशेषता चमकता हुआ बर्तन है, जो 1192 ईस्वी में पृथ्वी राज चौहान से लड़ाई के बाद 13वीं शताब्दी की शुरुआत से उपयोग में था। साथ ही कटोरियां और थालियां बहुतायत में मिली हैं। लम्बे आकार के फूलदान के कुछ टुकड़े भी मिले हैं। इस काल की अन्य मिट्टी के बर्तनों के साथ विभिन्न आकार की चिलम भी शामिल हैं। पुरावशेषों में पत्थर के बाट, पत्थर के वास्तुशिल्प, मूसल, टेराकोटा पहिया, लोहे और तांबे की वस्तुएं, मानव और पशु मूर्तियां, कांच के मोती, तांबे के सिक्के मिले हैं।
मुगल काल
इस अवधि के उल्लेखनीय पुरावशेष पत्थर के स्थापत्य हैं। टेराकोटा की बनी पशुओं की मूर्ति, मानव मूर्ति, गणेश की छोटी पत्थर की छवि, पत्थर की माला, कांच के मनके और तांबे के सिक्के शामिल हैं। इसके अलावा सतह से एक और चीज मिली है, जो है टेराकोटा का मानव सिर।
टिप्पणियाँ