दिल्ली में ‘इंद्रप्रस्थ’ की खोज
May 22, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • संस्कृति
  • पत्रिका
होम भारत

दिल्ली में ‘इंद्रप्रस्थ’ की खोज

कई इतिहासकारों ने लिखा है कि शेरशाह सूरी ने इंद्रप्रस्थ टीले को घेरकर पुराना किला बनाया। अब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण यहां उत्खनन कर यह पता लगाने का प्रयास कर रहा है कि क्या यही स्थान इंद्रप्रस्थ था, क्या यही पांडवों की राजधानी थी?

by अरुण कुमार सिंह and अश्वनी मिश्र
Mar 15, 2023, 08:51 pm IST
in भारत, संस्कृति, दिल्ली
पुराने किले में उत्खनन करवाते डॉ. वसंत कुमार स्वर्णकार (ऊपर) और खुदाई का वह स्थान, जहां मौर्य काल, शुंग काल, कुषाण काल आदि के प्रमाण मिले हैं (बाएं)

पुराने किले में उत्खनन करवाते डॉ. वसंत कुमार स्वर्णकार (ऊपर) और खुदाई का वह स्थान, जहां मौर्य काल, शुंग काल, कुषाण काल आदि के प्रमाण मिले हैं (बाएं)

FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

वामपंथी इतिहासकारों ने झूठ फैलाया, ‘‘दिल्ली मुगलों की बसाई हुई है। इसके पहले दिल्ली का न तो कोई इतिहास था और न ही भूगोल।’’ इन लोगों ने बार-बार इस बात को स्थापित करने की विफल कोशिश की। इस कारण आज के अनेक युवा इसी बहकावे में हैं कि ‘दिल्ली को मुगलों ने बसाया’, लेकिन यह सत्य नहीं है। दिल्ली हजारों वर्ष पूर्व भी थी। महाभारत काल में इसे ‘इंद्रप्रस्थ’ के नाम से जाना जाता था। आज भी दिल्ली में अनेक स्थान और संस्थान ‘इंद्रप्रस्थ’ के नाम से हैं। इतना सब होते हुए भी वर्षों तक पुरातात्विक दृष्टि से इंद्रप्रस्थ की ‘खोज’ नहीं की गई। वामपंथी इतिहासकारों ने इसका लाभ उठाया। उन्होंने एक षड्यंत्र के अंतर्गत इसे दबाया और झूठे तथ्य गढ़े। अब इन दबाए हुए तथ्यों को पुरातात्विक दृष्टि से सामने लाने का प्रयास हो रहा है।

महाभारत काल से दिल्ली का क्या संबंध है? इंद्रप्रस्थ कहां था? ऐसे ही कुछ सवालों के उत्तर तलाशने के लिए इन दिनों पांडव किले (पुराना किला) में उत्खनन चल रहा है। यह उत्खनन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) कर रहा है। हालांकि इससे पहले भी एएसआई ने यहां 1954-55, 1969-73, 2013-14 और 2017-18 में बीच उत्खनन करवाया था। उस दौरान मौर्य काल से लेकर मुगल काल तक की विभिन्न संस्कृतियों के प्रमाण मिले थे। महत्वपूर्ण पुरावशेषों में मौर्य काल के टेराकोटा, मोती और खिलौने, शुंग काल की यक्षी मूर्ति, कुषाण काल के टेराकोटा और तांबे के सिक्के, गुप्त काल की मुहरें, सिक्के, मूंगा, क्रिस्टल विभिन्न प्रकार के मनके और छोटे बलुआ पत्थर शामिल हैं। राजपूत काल की विष्णु प्रतिमा, सल्तनत काल की चमकदार प्लेटें, सिक्के और चीनी शिलालेख के साथ चीनी मिट्टी के बर्तन, कांच की शराब की बोतलें और मुगल काल की एक सोने की बाली मिली है।

एएसआई के निदेशक डॉ. वसंत कुमार स्वर्णकार के अनुसार, ‘‘पुराने किले के बारे में अलबरूनी और शेरशाह के दरबारी इतिहासकारों ने भी लिखा है कि उसने (शेरशाह) इंद्रप्रस्थ के टीले को घेरकर किला खड़ा किया। यह टीला सदियों से है। इसलिए यहां निश्चित रूप से कुछ न कुछ है।’’ उन्होंने बताया, ‘‘पद्म पुरस्कार से सम्मानित प्रो. बी.बी. लाल ने भी इस स्थल की उत्खनन कराई थी। यही नहीं, उन्होंने उन सभी स्थानों की उत्खनन कराया, जो महाभारत काल से जुड़े थे। इन सभी स्थानों से उन्हें सबसे निचले स्तर से चित्रित धूसर पात्र (मिट्टी के बर्तन) मिले। ये पात्र महाभारत कालीन पात्र परंपरा से संबंधित हैं। पात्रों की परंपरा से ही हमने कालखंडों का पता लगाया है।’’ उन्होंने यह भी बताया, ‘‘पुराना किला भी महाभारत काल से जुड़ा है, लेकिन यहां पहले किए गए उत्खनन में चित्रित धूसर पात्र नहीं मिले थे। इसलिए 2014 में मैंने एक बार फिर से पुराने किले में उत्खनन शुरू करवाया। उस समय उत्खनन के दौरान हम लोग मौर्य काल से एक मीटर नीचे गए तो हमें बाढ़ के साक्ष्य मिले। उसी में चित्रित धूसर पात्र के कुछ टुकड़े भी मिले हैं।’’

पुरातत्वविद् इसे महाभारतकाल से जोड़ रहे हैं। तब साहित्य बताता है कि महाभारत काल में निचक्षु (कुरु वंश के अंतिम राजा) के समय भीषण बाढ़ आई थी। इस बाढ़ से हस्तिनापुर और इंद्रप्रस्थ भी नष्ट हो गए। तब इस वंश ने अपनी राजधानी प्रयाग (कौशांबी) स्थानांतरित कर ली थी।

पुरावशेषों का काल-वार विवरण

मौर्य काल
मौर्य काल की पहचान लगभग 70 सेमी के व्यास और लगभग 2.20 मीटर की उपलब्ध ऊंचाई वाले टेराकोटा के एक रिंगवेल द्वारा की गई है। इन छल्लों की औसत ऊंचाई 15 सेमी है। इस अवधि में दोनों तरफ टेराकोटा टाइलों से घिरे एक परनाले का भी पता लगाया गया है। हो सकता है कि यह पश्चिम से पूर्व की ओर बहता हो। साथ ही मिट्टी के बर्तनों के छोटे टुकड़े, कटोरे के टुकड़े, किनारे वाले कटोरे प्राप्त हुए हैं। इसके अलावा पुरावशेषों में पहाड़ियों, चंद्रमा और मेहराबों आदि जैसे प्रतीकों के साथ टेराकोटा सीलिंग, टेराकोटा मोती, पहिया,गेंद आदि की महत्वपूर्ण खोज हुई है।

शुंग काल
शुंग काल की संरचनाएं मिट्टी की ईंटों के साथ-साथ कंकड़-पत्थर से बनी थीं। इसके अलावा इस अवधि में कुछ जले हुए स्थान भी देखे गए हैं। लाल बर्तन के टुकड़े, घुमावदार कटोरे, भंडारण के बर्तन, फूलदान, ढक्कन, चित्रित धूसर मृदभांड के टुकड़े भी पाए गए हैं। इस काल के महत्वपूर्ण पुरावशेषों में तांबे के सिक्के, टेराकोटा, मनके, नर एवं मादा मूर्ति, पहिया, गेंद, लोहे, तांबे की वस्तुएं, पत्थर के मोती आदि चीजें मिली हैं।

कुषाण काल
इस कालखंड के एक गृह परिसर का पता चला है, जिसमें कम से कम तीन कमरे थे। मिट्टी की ईंटों के अलावा अधिकांशत: पक्की ईंटों से दीवारों का निर्माण किया गया था। इन ईंटों का प्रयोग दीवारों को आपस में बांटने और फर्श बिछाने में किया गया। इसमें एक पंक्ति पूर्व-पश्चिम में चलती देखी जा सकती है, जो शुंग और कुषाण काल, दोनों से संबंधित मिश्रित मिट्टी के बर्तनों से बनी हुई है। इसके साथ ही इस कालखंड में भी लाल मिट्टी के बर्तन, ढक्कन, नक्काशीदार कटोरे, फूलदान आदि चीजें पाई गई हैं। पुरावशेषों में अधिक मात्रा में तांबे के सिक्के शामिल हैं। इसके अलावा सुपारी के आकार के मनके, पहिया, गेंद, लोहे और तांबे की वस्तुएं, एवं कांच के मनके मिलते हैं।

गुप्त काल
गुप्त काल में संरचनाओं के निर्माण के लिए कुषाण काल की ईंटों का फिर से उपयोग होते देखा गया है। इसके साथ ही किनारेदार कटोरे, ढला हुआ कटोरा, कछुए के खोलनुमां मिट्टी के बर्तन, फूलदान मिले हैं। पुरावशेषों में टेराकोटा सीलिंग महत्वपूर्ण खोज हैं, जिनमें से एक में संस्कृत में ‘ब्रह्ममित्र’ का उल्लेख है। टेराकोटा मुहर, पहिया, गेंद, पासा, मानव और पशु मूर्तियां, पक्षी मूर्ति, गज लक्ष्मी का टेराकोटा का चिन्ह, पत्थरों के मोती, कांच के मोती, शेर की आकृति का चमकता हुआ लॉकेट, मनका एवं नक्काशीदार ईंट खुदाई में मिली हैं।

उत्तर-गुप्त काल
इस काल के अवशेषों में मनके आदि चीजें मिली थीं। इनमें मिट्टी के बर्तन, टुकड़े और एक टोंटी, तेज धार वाले रिम कटोरे, फूलदान आदि शामिल हैं। पुरावशेषों में टेराकोटा पहिया, गेंद, तांबे की वस्तु, पत्थर के मोती और टेराकोटा की एक महिला मूर्ति मिली है।

राजपूत काल
राजपूत काल के तीसरे चरण में पत्थर की एक दीवार, जो आधी तैयार है, मिली है। इस दीवार की चौड़ाई सामान्य से काफी अधिक है। ऐसे में यह असामान्य चौड़ाई राजपूत काल की संभावित किलेबंदी का संकेत देती है। इसके पास ही एक गड्ढे में पालतू पशु का कंकाल भी बरामद हुआ है। साथ ही इन दीवारों के पूर्व में बड़ी मात्रा में मिट्टी के बर्तन, विभिन्न आकार के धार वाले कटोरे, व्यंजन, हांडी, फूलदान आदि खुदाई में मिले। पुरा

मुगल काल
इस अवधि के उल्लेखनीय पुरावशेष पत्थर के स्थापत्य हैं। टेराकोटा की बनी पशुओं की मूर्ति, मानव मूर्ति, गणेश की छोटी पत्थर की छवि, पत्थर की माला, कांच के मनके और तांबे के सिक्के शामिल हैं। इसके अलावा सतह से एक और चीज मिली है, जो है टेराकोटा का मानव सिर।

डॉ. स्वर्णकार बताते हैं, ‘‘2014 के बाद 2017 में फिर एक बार पुराने किले में उत्खनन किया गया। उन दिनों कई ऐसे साक्ष्य मिले जो प्रमाणित करते हैं कि दिल्ली शहर का इतिहास काफी पुराना है। यहां उत्खनन के दौरान 2-3 मीटर नीचे यानी मौर्य काल के नीचे गाद का एक मोटा जमाव मिला है। हालांकि, उस समय बारिश के मौसम के कारण इस स्तर से नीचे की उत्खनन नहीं किया जा सका, लेकिन इस बार इससे नीचे तक का उत्खनन किया जा रहा है। यहां यह भी इंगित करना है कि हस्तिनापुर जैसे समकालीन स्थलों पर उत्खनन से काले और लाल बर्तनों और गेरुए रंग के बर्तनों के अलावा इसी तरह की जमी हुई गाद के नीचे चित्रित धूसरित पात्र संस्कृति का पता चला है।’’

इस बार का उत्खनन डॉ. स्वर्णकार के निर्देशन में चल रहा है। उन्होंने बताया, ‘‘यहां मुगल, राजपूत काल, गुप्त काल, कुषाण काल, शुंग काल, मौर्य काल एवं पूर्व मौर्य काल के साक्ष्य मिले हैं। विभिन्न पुरासामग्री के साथ ही यहां से गेहूं और एवं कुछ अन्य अनाजों के जले हुए नमूने मिले हैं।’’

इस बार यह जानने की कोशिश की जा रही है कि जहां बाढ़ के साक्ष्य मिले हैं, क्या वहां इससे पहले कोई गांव या बसावट थी? क्या अन्य कोई सभ्यता यहां रही है? यहां कौन लोग रहा करते थे? सबसे पहले यहां कौन आकर रह रहा था? क्या मौर्य काल ही इस नगर की सबसे पहले की सभ्यता है? या उसके पहले भी सभ्यताएं हैं? यह भी हो सकता है कि महाभारत काल तक यह सभ्यता चली जाए, क्योंकि यह जो स्थान है, वह अनेक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। नदी, व्यापारिक मार्ग सब कुछ इसके इर्द-गिर्द है। यानी हर तरह से यह स्थान ठीक है। इसके सभी प्रमाण स्थापित हो रहे हैं। यहां हर कालखंड के स्पष्ट साक्ष्य मिलते हैं। हमें विश्वास है कि जैसे-जैसे उत्खनन का काम आगे बढ़ेगा, वैसे-वैसे इतिहास और स्पष्ट होता जाएगा।’’

विशेषज्ञों की देखरेख में उत्खनन करते श्रमिक (दाएं) पुराने किले के खुदाई से मिली वस्तुएं, जो 3,000 वर्ष से भी पुरानी हैं

इतिहासकार भी इस उत्खनन से प्रसन्न हैं। भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद (आई.सी.एच.आर.) के निदेशक (शोध एवं प्रशासन) डॉ. ओमजी उपाध्याय बताते हैं, ‘‘पुराने किले का क्षेत्र 1910 तक राजस्व विवरण में मौजा ‘इंदरपथ’ के नाम से दर्ज है। यही इंद्रप्रस्थ है, इसमें कोई संशय नहीं है। यह लंबे समय तक भारत का केंद्र स्थल या हृदय स्थल रहा है। बौद्ध ग्रंथों में 16 महाजनपदों की चर्चा मिलती है। इनमें काशी, कोशल, अंग, मगध, वज्जि, मल्ल, चेदि, वत्स, कुरु, पांचाल, मत्स्य, शूरसेन, अश्मक, अवन्ती, गांधार तथा कंबोज हैं। इस सबके अलावा कई इस्लामिक कागजातों में भी इंद्रप्रस्थ का उल्लेख मिलता है।’’ वे यह भी बताते हैं, ‘‘महाभारत का युद्ध टालने के लिए भगवान कृष्ण दुर्योधन से पांच ग्राम मांगते हैं। इनमें से एक गांव है-व्याध्रप्रस्थ, जिसे आज बागपत कहते हैं। दूसरा, इंद्रप्रस्थ यानी दिल्ली। तीसरा, तिलप्रस्थ, जो आज तिलपत (फरीदाबाद) के नाम से है। चौथा, पांडुप्रस्थ, जो आज पानीपत के नाम से जाना जाता है और पांचवां, स्वर्णप्रस्थ जो आज का सोनीपत है।’’ वे आगे कहते हैं, ‘‘इतना सब होने के बाद भी अचानक एक विमर्श खड़ा किया जाता है कि दिल्ली की पहचान तो सल्तनकाल-मुगलकाल की है। दिल्ली का अपना कोई इतिहास-भूगोल है ही नहीं। जब ऐसी बातें कही जाती हैं तो हंसी आती है। एक वर्ग ने जान-बूझकर, षड्यंत्रपूर्वक इतिहास-भूगोल, हमारे गौरव के केंद्रों को मिटाने का काम किया।’’

पलवल में महाभारतकालीन अवशेष

इन दिनों हरियाणा के पलवल जिले में भी उत्खनन चल रही है। मानपुर गांव के पास कसेरूआ खेड़ा के टीले में हो रही उत्खनन के दौरान महाभारतकालीन अवशेष मिले हैं। उत्खनन कार्य में लगे पुरातत्वविद् डॉ. गुंजन कुमार श्रीवास्तव के अनुसार उत्खनन में महाभारत और गुप्तकलीन सभ्यताओं के अवशेष के संकेत मिल रहे हैं। बता दें कि यहां भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का एक दल 28 जनवरी से उत्खनन कर रहा है। खुदाई से यह भी पता चला है कि टीले की मिट्टी लगभग 3,000 वर्ष पुरानी है। यहां कुछ कच्चे मकान के अवशेष भी मिले हैं।

डॉ. उपाध्याय कहते हैं, ‘‘हमारे तिथिक्रम के बारे में बहुत खिलवाड़ हुआ है। पहले एक बड़ा शक्तिशाली वर्ग था जो रामायण और महाभारत को मिथक बताता था, क्योंकि यह सब उनकी समझ में आने वाली चीज नहीं थी। इसलिए जो चीज उनकी समझ में नहीं आई, वह सब काल्पनिक हो गई। जो अंग्रेजों ने नहीं किया, वह 60-70 साल में भारत के कथित इतिहासकारों ने कर दिया। इन लोगों ने अपनी पूरी ऊर्जा भारत के मान बिंदुओं की भर्त्सना में, उन्हें भुलाने में, सच को नकारने में, निंदा करने में और झूठ बोलने में लगाई।’’ वे आगे कहते हैं, ‘‘हमारा विश्वास है कि 5,100 वर्ष पहले महाभारत हुआ था। उसके अनुसार देखें तो पिछले कुछ समय में जो उत्खनन हुए हैं, उन्होंने 1,000 साल तक की यात्राएं और पूरी की हैं। अभी जो बात हम 3,000 साल तक ले जा पाए थे, वह अब बड़े आराम से लगभग 4,000 साल तक चला गया है। सिनौली, राखीगढ़ी और बागपत से जो चीजें मिलीं, वे इसका प्रमाण हैं। अब सिर्फ 1,000 वर्ष की दूरी रह गई है। इसी को जानने के लिए उत्खनन हो रहा है।’’ इस खुदाई से इतिहासकारों को बहुत उम्मीद है। उन्हें पूरा विश्वास है कि आज नहीं तो कल यह सिद्ध हो जाएगा कि आज जो दिल्ली है, वही इंद्रप्रस्थ है।

इस खबर को भी पढ़ें-

Topics: सल्तनतDiscovery of 'Indraprastha' in DelhiShungaMahabharata periodGupta PeriodLeftistPost-GuptaIndraprasthaSultanateSher Shah SuriMughal Period Period-wise description of antiquitiesArchaeological Survey of India Maurya Periodभारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभागदिल्ली में ‘इंद्रप्रस्थ’ की खोजवामपंथीमहाभारत कालशुंगइंद्रप्रस्थगुप्त कालशेरशाह सूरीउत्तर-गुप्तमुगल काल पुरावशेषों का काल-वार विवरण
Share3TweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

अदालत ने संभल की शाही जामा मस्जिद का सर्वेक्षण करने का दिया था आदेश

संभल की मस्जिद जुमा, जामी या फिर जामा, कई नाम पर ASI ने जतायी आपत्ति, मुस्लिम पक्ष को लग सकता है झटका

त्रिपुरी अधिवेशन को कांग्रेसी इतिहासकारों और वामपंथी लेखकों ने जान-बूझकर दबाया, सुभाष चंद्र बोस से जुड़ा है मामला

चंदौसी में बावड़ी और सुरंग की खुदाई में हुए चौंकाने वाले खुलासे, जानिए अब तक क्या-क्या मिला?

UP के संभल में दूसरे दिन भी ASI का सर्वे जारी, कल्कि विष्णु मंदिर पहुंची टीम

कट्टरता की आग में झुलसता बांग्लादेश

बांग्ला, बंग भूमि, वंग साम्राज्य और महाभारत कालीन पहचान मिटाता बांग्लादेश

सम्भल का पुराना मानचित्र, इसमें सम्भल के सभी तीर्थ स्थल दर्शाए गए हैं, बीच में घेरे में हरिहर मंदिर है, जिस पर मुसलमानों का अवैध कब्जा है

एएसआई की रिपोर्ट- यहां मंदिर ही था

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

State bank of India language dispute

कर्नाटक में भाषा विवाद: SBI मैनेजर का हिंदी बोलने पर ट्रांसफर

जिम्मेदार बने मीडिया और सोशल मीडिया

Donald trump Syril Ramafosa South Africa

श्वेत किसानों के नरसंहार का मुद्दा उठा दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा से भिड़े ट्रंप

Hands child holding tree with butterfly keep environment on the back soil in the nature park of growth of plant for reduce global warming, green nature background. Ecology and environment concept.

Biodiversity Day Special : छीजती जैव विविधता को संजोने की जरूरत

उत्तराखंड में 5 और बांग्लादेशी हुए गिरफ्तार, पूछताछ जारी

supreme court

वक्फ कानून पर 97 लाख लोगों से राय ली, याचिकाकर्ता पूरे मुस्लिम समाज के प्रतिनिधि नहीं : सुप्रीम कोर्ट में सरकार

National Herald case : राहुल-सोनिया ने अपराध से कमाए 142 करोड़, ED ने लगाए बड़े आरोप

Jyoti Malhotra Pakistan Spy

नहीं मिले Jyoti Malhotra के आतंकी संगठन से जुड़े होने के सबूत, जांच जारी

भाखड़ा डैम पर केन्द्रीय बल की तैनाती : पंजाब-हरियाणा जल विवाद को लेकर गृह मंत्रालय का बड़ा फैसला

24 घंटे के अन्दर भारत छोड़ दें… : पाकिस्तान उच्चायोग का एक और अधिकारी ‘पर्सोना नॉन ग्रेटा’ घोषित

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies